जम्मू-कश्मीर: मीरवाइज उमर फारूक के ‘हुर्रियत चेयरमैन’ पदनाम हटाने पर विवाद, जारी किया स्पष्टीकरण…

जम्मू-कश्मीर: मीरवाइज उमर फारूक के ‘हुर्रियत चेयरमैन’ पदनाम हटाने पर विवाद, जारी किया स्पष्टीकरण…

कश्मीर के प्रमुख धर्मगुरु और अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारूक ने अपने आधिकारिक ‘एक्स’ हैंडल से ‘अध्यक्ष, सर्वदलीय हुर्रियत सम्मेलन’ का पदनाम हटा दिया। उनके इस कदम की सोशल मीडिया पर जमकर चर्चा हो रही है। कुछ लोगों ने मीरवाइज उमर फारूक को उनके आदर्शों और विश्वासों से समझौता बताते हुए निशाना बनाया।

मीरवाइज के आधिकारिक कार्यालय मीरवाइज मंजिल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर विस्तृत पोस्ट जारी कर इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। बयान में कहा गया, “यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ अवसरवादी लोगों का एक ग्रुप, जिन्हें सब जानते हैं, इस बारे में ‘नैतिकता’ का पाठ पढ़ा रहा है। मीरवाइज कश्मीर के ‘एक्स’ हैंडल से हुर्रियत प्रमुख के पदनाम हटाने को गलत सोच के तहत ऐसे पेश किया जा रहा है जैसे उन्होंने अपने आदर्शों और विश्वासों को छोड़ दिया हो।”

कार्यालय ने स्पष्ट किया कि मीरवाइज ने पहले ही इस डिलीशन के बारे में तथ्य बता दिए हैं। इसे सिद्धांत छोड़ने के रूप में तोड़-मरोड़कर पेश करना गुमराह करने वाली और दुर्भावनापूर्ण कोशिश है। मीरवाइज एक महान विरासत के उत्तराधिकारी हैं और वे ऐसे तत्वों के प्रति नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर के लोगों और अल्लाह के प्रति जवाबदेह हैं।

बयान में आगे कहा गया कि मीरवाइज को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाने की अपनी निराशा में ये लोग जम्मू-कश्मीर की जनता के दर्द, भ्रम और निराशा के प्रति थोड़ी भी चिंता नहीं दिखाते, जो दशकों से संकट झेल रही है। कार्यालय ने इन लोगों से आग्रह किया कि वे संदेह और गलतफहमियां पैदा कर सार्वजनिक माहौल को और खराब न करें। भले ही उन्हें लगे कि ऐसी चालें उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाएंगी, मीरवाइज प्रार्थना करते हैं कि वे व्यक्तिगत लाभ के बजाय जम्मू-कश्मीर के लोगों की सच्ची सेवा में सफल हों।

इससे पहले मीरवाइज ने खुद शुक्रवार को पोस्ट कर बताया कि अधिकारियों ने उन पर दबाव डाला था कि वे हुर्रियत चेयरमैन का पदनाम हटाएं, क्योंकि सभी घटक संगठन (उनकी अवामी एक्शन कमेटी सहित) यूएपीए के तहत प्रतिबंधित हैं, जिससे हुर्रियत एक प्रतिबंधित संगठन बन गया है। यदि ऐसा न किया तो उनका हैंडल डिलीट कर दिया जाएगा। उन्होंने इसे मजबूरी का फैसला बताया, क्योंकि जनता से संवाद के लिए यह प्लेटफॉर्म उनके लिए बहुत कम बचे विकल्पों में से एक है।

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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