गुलाब का फूल (बाल कहानी)
गुलाब का फूल (बाल कहानी)
राजू का मन आज बहुत बेचैन था। आधी रात तक उसे नींद नहीं आई। जब सोया तो देखा, सपने में टूटे गुलाब की पंखुडियां उड़कर उसके सामने नाचने लगीं। उसने हाथ बढ़या तो सारी पंखुडियां उसकी हथेली पर आ बैठीं।
राजू के जन्मदिन पर दादाजी ने उसे गुलाब का एक पौधा दिया। दोनों ने मिलकर उसे गमले में लगाया। राजू ने नन्हे पौधे में पानी डाला। अब वह रोज बालकनी में जाकर पौधे को देखता और पूछता, दादाजी, फूल कब खिलेंगे? खिलेंगे-खिलेंगे बेटा! अभी थोड़ा धीरज रखो। ये पौधा धीरे-धीरे बड़ा होगा, उसके बाद इस पर फूल खिलेंगे। राजू..! मां की कड़कती आवाज कानों में पड़ते ही राजू भाग खड़ा हुआ।
आजकल राजू बहुत व्यस्त रहने लगा है। सेकेंड टर्म के एग्जाज जो सिर पर हैं। अब तो उसे दादाजी के कमरे में झांकने की भी फुरसत नहीं मिल पाती। इधर दादाजी के खांसने की आवाज अब बढ़ने लगी है, पर मां भी उस पर खूब पढ़ाई करने का दबाव बनाती रहती हैं।
दादाजी के कमरे के बाहर से गुजरते हुए कई बार राजू की निगाहें दादाजी की टुकुर-टुकुर ताकती निगाहों से टकराती हैं, पर एग्जाम्स का ख्याल आते ही वह आगे बढ़ जाता है।
एक दिन दोपहर को जब वह स्कूल से लौटा तो उसने बालकनी में गुलाब का फूल खिला देखा..चटख लाल गुलाब.. उसका मन झूम उठा। आज कई दिन बाद बरबस उसके पैर दादाजी के कमरे की ओर मुड़ गए।
दादाजी- वह पुकार उठा। दादाजी..दादाजी. देखिए लाल गुलाब.. पर पलंग खाली था। चलो, कपड़े बदल लो और खाना खा लो.. मां की आवाज कानों में पड़ी। मां, दादाजी कहां हैं? उसने पूछा। उन्हें पापा अस्पताल ले गए हैं इलाज के लिए। मां ने उत्तर दिया।
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आज राजू का मन उदास था। नींद भी बहुत देर से आई। अगले तीन-चार दिन सुबह-शाम वह बालकनी में जाकर फूल को देखता, हौले से उसे छूता और खुश होता। अब चार-पांच गुलाब की कलियां भी डाली पर चटखने लगी थीं। पांचवें दिन स्कूल से लौटकर राजू बालकनी में गया तो उसका नन्हा-सा दिल धक से रह गया। खिला हुआ लाल गुलाब डाली से टूट कर फर्श पर बिखरा पड़ा था। राजू का मन आज बहुत बेचैन था। आधी रात तक नींद नहीं आई। जब सोया तो देखा, सपने में टूटे गुलाब की
पंखुडियां उड़कर उसके सामने नाचने लगीं। उसने हाथ बढ़या तो सारी पंखुडियां उसकी हथेली पर आ बैठीं। एक पंखुड़ी बड़ी हो गई। उसमें दो आंखें उभर आईं, फिर आंसू की मोटी-मोटी बूंदें उनसे ढलकने लगीं। राजू! अब तुम हमें नहीं देखोगे.. क्योंकि न अब हममें खुशबू है, न रंग.. हम मुरझा गई हैं.. सूख रही हैं..। और पंखुड़ी फूट-फूट कर रोने लगी। राजू घबराकर उठ बैठा। अरे!.. यह तो सपना था..। पर फिर उसे नींद नहीं आई। आज सुबह अनमने मन से वह स्कूल गया। लौटा तो देखा, दादाजी के कमरे का दरवाजा खुला है।
दादाजी.. वह दौड़कर गया और दादाजी के शरीर से लिपट गया। दादाजी का मुरझाया चेहरा खिल उठा। राजू.. दादाजी की कमजोर आवाज खुशी से कांप रही थी। दादाजी! गमले में फूल खिला था। राजू चहका। सच! पर मुरझा गया.. टूटकर बिखर गया। राजू रुआंसा हो उठा। अरे पगले, तो क्या हुआ, दूसरा फूल खिलेगा..। दादाजी ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
सचमुच, राजू को बंद कलियों का स्मरण हो आया। वह उछलकर बालकनी में आया और खुशी से चिल्लाया.. आहा! कितने सारे फूल। तभी देखा, टूटे फूल की कुछ सूखी पंखुडियां अभी भी गमले में पड़ी थीं। फर्श पर बिखरी पंखुडियों को नौकरानी सुखिया ने कूड़े में फेंक दिया था। राजू ने गमले में पड़ी पंखुडियों को उठाया और उन्हें चूमकर अपनी किताब में रख लिया। फिर दौड़कर दादाजी के पास चला आया।
चार दिन बाद उसका जन्म दिन था। मां ने बड़े प्यार से राजू से पूछा कि इस बार उसे जन्मदिन पर क्या उपहार चाहिए। मां के गले में बांहे डालकर राजू ने कहा, मां! रोज शाम को दादाजी के साथ दो घंटे खेलूंगा और बाद में पढ़ाई करूंगा। बस मुझे यही उपहार चाहिए। मां उसकी बात सुन अवाक उसे देखती रह गई। उसके शब्दों ने दादाजी के कानों में शहद सी मिठास भर दी थी। मां ने राजू से कहा, ठीक है बेटा। पर हां, अपने एग्जाम्स की तैयारी अच्छे से करो और मुझे फुल मार्क्स लाकर दिखाओ।
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