कविता ‘बुढ़ापा’-दिव्या यादव-

कविता ‘बुढ़ापा’ -दिव्या यादव- मां जब जब भी दर्द से कराहती है अजीब सी बेचैनियां मुझे घेरती, नकारती हैं असहाय सी हो जाती हूं मैं भी मां की आवाज जब पुकारती है बढ गया है शीत में मां के घुटनों का दर्द रातें हो गई हैं बेहद सर्द मां-बाबा की बेचैनी धिक्कारती है नहीं रुकती … Continue reading कविता ‘बुढ़ापा’-दिव्या यादव-