शिवलिंग की परिक्रमा में इस बात का रखें ध्यान वरना नहीं मिलेगा शुभ फल..

शिवलिंग की परिक्रमा में इस बात का रखें ध्यान वरना नहीं मिलेगा शुभ फल..

मंदिरों में पूजा करते समय अक्‍सर लोग शिवलिंग की परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा करने में कोई दोष नहीं है, लेकिन जहां तक संभव हो शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। दरअसल शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद वह जिस रास्‍ते से होकर बहकर जाता है उसे निर्मली कहते हैं। जहांसे निकल कर जल मीन में बने गड्डे से आगे जाता है। एेसे में यदि निर्मली ढंकी हो और गुप्त रूप से बनी हो तो पूरी परिक्रमा करने में कोर्इ दोष नहीं लगता, लेकिन एेसा ना हो तो फिर कठिनार्इ होती है। शिवलिंग की निर्मली न लांघनी पड़े इसीलिए अर्ध-परिक्रमा की जाती है। जिन शिवालयों में निर्मली की समुचित व्यवस्था नहीं होती, जल साधारण खुली नालियों की तरह बहता है उसे कदापि नहीं लांघना चाहिए। इससे दोष लगता है।

क्या है दोष
निर्मली लांघने के दोष को लेकर एक दंतकथा है। पुष्पदत्त नाम का गन्धर्वों का एक राजा था। वह भगवान शंकर का अनन्य भक्त था। इस राजा की आदत थी कि वह भगवान शिव को प्रतिदिन पुष्‍प अर्पित करता था। उत्तम सुगंध वाले फूल लाने के लिए वह किसी की पुष्प वाटिका में जाया करता था और वहां से प्रतिदिन सुंदर-सुंदर फूल चुरा लाता था। रोजाना फूलों की चोरी को लेकर वाटिका का माली काफी परेशान रहता था। उसे बगीचे में कोर्इ आते-जाते भी नहीं दिखार्इ देता था। उसने इस संबंध में बगीचे के स्वामी से बातचीत की आैर फूलों की चोरी को रोकने के लिए एक गुप्तचर की व्यवस्था करने के लिए कहा। ताकि पता किया जा सके कि कौन बगीचे से अच्छे-अच्छे फूल चोरी करता है। इसके बाद भी चोरी होती रही, क्‍योंकि पुष्‍पदत्‍त को अदृश्‍य होने की शक्‍ित प्राप्त थी।

दोष के चलते समाप्‍त हुर्इ शक्‍ति
सब कुछ सुचारु रूप से चल रहा था जब एक बार गन्धर्वराज भूलवश शिवलिंग की निर्मली यानि जल प्रवाहिका को लांघ गया। इसके परिणाम स्वरूप उसके अदृश्य होने की शक्ति समाप्त हो गई। ये बात उसे पता नहीं चल सकी। जब दूसरे दिन वह पुष्प वाटिका में पुष्प लेने गया तो उसे पुष्प तोड़ते समय गुप्तचर ने उसे पकड़ लिया। उसने अदृश्य होने का प्रयास किया पर सफल न हो सका। किसी तरह वह वहां से बच कर आने में सफल हुआ और अगले दिन सुबह पूजा के पश्चात उसने भगवान से इसका कारण पूछा। तब शंकर जी ने उसकी अदृश्य होने की शक्ति लुप्त हो जाने का रहस्य बतलाया आैर तब से ये कहा गया कि निर्मली लंघन कोर्इ ना करे।

फाइनेंस में एमबीए करना सही विकल्प
सबसे अधिक पढ़ाई जनरल मैनेजमेंट की अगर छात्र किसी खास उद्योग जैसे कि वाइन, स्पोट्स आदि में काम करने को इच्छुक हैं तो एक स्पेशियलिटी वाला एमबीए प्रोग्राम आपको बेहतरीन मौका उपलब्ध करा सकता है। बशर्ते वे अपने रास्ते से ना भटकें। एमबीए का पाठयक्रम अनेक छात्रों के लिए जीवन बदल देने वाला होता है। ऐसे में आप नहीं चाहेंगे कि कोई इंडस्ट्री एक समय के बाद आपके लायक नहीं रहे और आप उसमें घुटन महसूस करें। यही कारण है कि सारी दुनिया में एमबीए प्रोग्राम का एक बड़ा हिस्सा जो कि 95 फीसदी से ज्यादा है, जनरल मैनेजमेंट का है।

फाइनेंस में एमबीए करना सही ऑप्शन हो सकता है। पर यह भी सच है कि इसकी पढाई करने वाले स्टूडैन्टस को अमूमन किसी सीए की तुलना में क्वांटिटेटिव फाइनैंस, टैक्सेशन और ऑडिट जैसे अह्म टॉपिक्स की जानकारी कम ही होती है। जबकि मार्केट टेंड और मांग को देखते हुए इन्हें जानना भी काफी जरूरी है।

सुपर स्पेशियलिटी वाले एमबीए दरअसल एमबीए प्रोग्राम की फिलोसफी के ही खिलाफ जाते हैं, उदाहरण के लिए फाइनैंस में एमबीए को लें। इसे करने वाले छात्र को किसी सीए की तुलना में क्वांटिटेटिव फाइनैंस, टैक्सेशन और ऑडिट आदि की जानकारी कम होती है। इसके बावजूद कंपनियां अभी भी वित्त में एमबीए कोर्स किए हुए लोगों को नियुक्त करती हैं। यह साबित करता है कि एंप्लायर्स किसी खास टॉपिक की समझवाले एंप्लाई की जगह वास्ट नॉलेज वाले लोगों को रखना पसंद करते हैं। ऐसे में आज सुपर स्पेशियलिटी वाले एमबीए कार्यक्रमों से फिलहाल बचा जाए तो बेहतर है, क्योंकि ऐसे प्रोग्राम अमूमन किसी मैनेजमेंट प्रोग्राम की मूल भावना का उल्लंघन करते हैं।

कई भूमिका सीनियर मैनेजर्स की इंपीरियल कॉलेज बिजनेस स्कूल, लन्दन के एमबीए प्रोग्राम के डीन प्रोफेसर सायमन स्टॉकले के अनुसार स्पेशियलिटी वाले एमबीए अपवाद हैं दुनिया भर के कुछ टॉप बिजनस स्कूल अपने छात्रों को स्पेशियलिटी नहीं लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। यह इस तथ्य को मान्यता देता है कि सीनियर लेवल पर मैनेजमेंट की भूमिका को बांटा नहीं जा सकता है। हालांकि कोई खास इंडस्ट्री पूरी इकोनमी में बेहतर प्रदर्शन करता है, तो ऐसी स्थिति में मैनेजमेंट प्रोग्राम जल्दी ही बाहर भी हो जाते हैं और मीडियम या लांग टर्म के लिए सामान्य एमबीए ही बेहतर साबित होते हैं।

बिजनेस स्कूलों की ऐसी स्पेशियलिटी वाले प्रोग्राम तभी शुरू करने चाहिए, जब उनके पास इसके लिए सही रिसोर्सेज और इन्फ्रास्ट्रच्कर हों। अन्यथा बेहतर एजुकेशन की उम्मीद बेमानी ही है। भारत में वाले स्पेशियलिटी एमबीए कोर्स अनुभवी फैकल्टी के अभाव में प्रभावित होते हैं। इनके एजुकेशनल मॉडल परंपरागत बिजनस स्कूल से काफी अलग होते हैं। दरअसल ये प्रोग्राम्स किसी खास सेक्टर की जरूरत के अनुरूप बनाए जाते हैं। प्रोग्राम चलाने में और इसकी रूपरेखा तैयार करने में इंडस्ट्री की सक्रिय भागीदारी जरूरी होती है। छात्रों को इसके लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे क्लास में बनी समझ और शिक्षा को नियमित इंटर्नशिप और प्रोजेक्ट्स के दौरान अजमाएं और यह इस प्रकार के कार्यक्रम की पहचान भी होनी चाहिए।

सबसे अधिक पढ़ाई जनरल मैनेजमेंट की अगर छात्र किसी खास उद्योग जैसे कि वाइन, स्पोट्स आदि में काम करने को इच्छुक हैं तो एक स्पेशियलिटी वाला एमबीए प्रोग्राम आपको बेहतरीन मौका उपलब्ध करा सकता है। बशर्ते वे अपने रास्ते से ना भटकें। एमबीए का पाठयक्रम अनेक छात्रों के लिए जीवन बदल देने वाला होता है। ऐसे में आप नहीं चाहेंगे कि कोई इंडस्ट्री एक समय के बाद आपके लायक नहीं रहे और आप उसमें घुटन महसूस करें। यही कारण है कि सारी दुनिया में एमबीए प्रोग्राम का एक बड़ा हिस्सा जो कि 95 फीसदी से ज्यादा है, जनरल मैनेजमेंट का है।

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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