बहिनजी का वाट्सअप…

बहिनजी का वाट्सअप…

स्कूल में बहिनजी अब स्वेटर नहीं बुनती, वे वाट्सएप चलाती हैं। वे दिन गए जब ‘बैठे-बैठे क्या करें करना है कुछ काम’ के नाम पर या तो मैडमें स्कूल में स्वेटर बुनती थीं या गप्पें हांका करती थीं। पप्पू की समझ में आज तक नहीं आया कि गप्पों को हांका कैसे जाता था। नहीं समझ में आया न, इसलिए तो तुम पप्पू हो यार! पर मैडमें ऐसा करती थीं। स्वेटर बुनने का समय सिर्फ ठंड में ही नहीं होता इस बात को स्कूल की मैडमों ने प्रमाणित करके दिखाया है।

स्वेटर बुनने का जुनून ऐसा कि ठंड लगे या न लगे वे बाहर बैठकर किसी के भी निकलने का इंतजार करती थीं और कोई स्वेटर पहने निकल भर जाए तो स्वेटर तो छोड़ो उसकी शर्ट तक उतरवा लेती थीं। कई बार तो पहनने वाले को ‘बहिनजी आप स्वेटर ही रख लें मुझे जरूरी काम से जाना है’ कह कर अपनी पहनी पहनाई स्वेटर छोड़ कर जाना पड़ती थी। लोग ठंड भर उस गली से निकलना छोड़ देते थे जहां स्कूल पड़ता है। हाय वे भी क्या दिन थे। दिन भर मैडम स्वेटर बुनने में या उसकी डिजाइन पर चर्चा करतीं और पप्पू जैसे विद्यार्थी टुकुर- टुकुर मैडमों को निहारा करते। वो पप्पू थे इसलिए उन्हें इस तरह निहार लेने में मैडमों को कोई आपत्ति नहीं थी वरना कोई उनकी ओर आंखें उठाकर देख ले ‘खूब लड़ी मर्दानी’ रूप ले लेती थीं। तब साड़ी से ज्यादा ‘क्रेज’ स्वेटर हुआ करती थी।

उनके पति चिल्लाते रहते ‘यार, इतनी स्वेटर वैसे ही है अब और क्यों बना रही हो’ पर हमेशा की तरह पतियों की बातों को कोई महत्व नहीं दिया जाता था। उनके लिए पति का सिर्फ इतना उपयोग था कि वे उनके साथ जाकर ऊन खरीद सकें और ‘ये कलर बहुत जमेगा’ कहकर जबरन अपनी बात जमवा सकें। पति को भले ही गधा रंग पसंद न हो पर वे उन्हें गधा रंग पहनाकर ही छोड़तीं। अब बेचारे पति को क्या गधा रंग और क्या लाल रंग। पति होने के बाद तो उन्हें यह भी भय नहीं रहता कि लाल रंग देखकर सांड भड़क जाता है। एक अच्छा पति बाहरी जानवरों के भय से मुक्त हो जाता है उसे न तो सांड का भय रहता और न ही कुत्ते के भौंकने का। वह बिल्ली के रास्ता काट जाने पर भी भय नहीं खाता उसके लिए ये सारे दुख छोटे हो जाते हैं।

बहिनजी के स्वेटर बुनने वाले दिन खत्म हो चुके हैं अब वे वाट्सएप चलाती हैं। स्कूल की प्रार्थना होने के बाद अपनी कुर्सी पर बैठने के साथ वाट्सएप को प्रणाम करती हैं और कुर्सी पर बैठकर बड़ी बेसब्री के साथ वाट्सएप खोलती हैं। ‘टुक-टुक-टुक’ कर मैसेज भराते जाते हैं। वे बड़े धैर्य के साथ यह सब होने देती हैं जब आवाज आना बंद हो जाती है तब वे एक-एक मैसेज को पढ़ती जाती हैं। वे बड़े प्यार से मैसेज के साथ आई फोटो खोलती हैं उन्हें डाउनलोड करती हैं। फिर जो अच्छी लगे उसे किसी दूसरे को भेजती हैं। इसे सेन्ड करना बोलती हैं। वे बहुत देर तक सेन्ड होने वाली फोटो को सेन्ड होते देखती रहती हैं। कई बार वे अपने दूसरे परिचितों को भी इसके लिए प्रेरित करती हैं कि वे अच्छी फोटो सेन्ड करें।

उन्हें फोटो सेन्ड कराने और करने दोनों में मजा आता है। कुर्सी पर बैठी मैडम मोबाइल हाथ में लेने के बाद सारी दुनिया को भूल जाती हैं उन्हें लगता है ‘अब दुनिया उनकी मुट्ठी में है।’ बच्चे पढ़ते रहते हैं ‘एक एकम एक… दो एकम दो…’ पढ़ते-पढ़ते बच्चे शोर मचाने लगते हैं पर मैडम की तंद्रा भंग नहीं होती। बच्चे समझने लगे हैं कि अर्जुन ने पक्षी की आंख में तीर किस तंद्रा में रहते हुए मारा था यदि उस समय मोबाइल होता और मोबाइल में वाट्सएप होता तो आंख का छोड़ो उसका तीर पूरे पक्षी तक को नहीं लग पाता। मोबाइल में आए सारे मैसेज पढ़ चुकने और फोटो सेन्ड कर देने के बाद उन्हें ध्यान आता कि वे स्कूल में हैं और सरकार उन्हें बच्चों को पढ़ाने का वेतन देती है। वे मन मारकर मोबाइल बंद कर देतीं और पढ़ाने का क्रम प्रारंभ करने वाली ही होतीं कि मोबाइल में फिर ‘टुक-टुक’ बज जाता। वे पढ़ाते-पढ़ाते रुक जातीं और पर्स से मोबाइल निकालकर पर्स बंद करतीं, मोबाइल को देखतीं ‘अगर जरूरी मैसेज हुआ तो?’ के भाव उनके चेहरे पर होते हैं हालांकि वे जानती हैं कि वाट्सएप पर कभी जरूरी मैसेज नहीं आते। वे पूरा मोबाइल चैक करतीं, पर्स खोलती और पर्स के अंदर मोबाइल रखती, अगर रखते-रखते फिर मोबाइल टुक-टुक कर बजता तो फिर से पूरा मोबाइल चेक करतीं इस पूरी प्रक्रिया के बाद वे फिर पढ़ाने का क्रम प्रारंभ करतीं। दोपहर में भी वे लंच के समय मोबाइल हाथ में लिए बैठी रहतीं और टुक-टुक होते ही वाट्सएप खोल लेतीं। वे बिना घंटी यूं भी वाट्सएप को निहारा करतीं।

लंच के बाद का समय वे वाट्सएप को ही समर्पित करतीं। वे मैसेज पढ़ते-पढ़ते कभी हंसती दिखती और कभी रोती। बच्चे समझ जाते कि मैडम पर वाट्सएप देवता सवार हो चुका है। जब कभी ऐन मौके पर नेट खत्म हो जाता तो बच्चे जान जाते कि ‘पानी के बाहर निकालते ही मछली कैसे तड़पती है’ (वैसे इसे भी शिक्षा देने की प्रक्रिया माना जा सकता है)। मैडम का मूड अपसेट हो जाता ‘अभी डलवाया था इतने जल्दी खत्म कैसे हो गया, भला मैं वाट्सएप चलाती ही कितना हूं।’ मैडम का पूरा शक कंपनी वालों पर होता ‘लूट मचा के रखी है’ कहकर अपनी भड़ास निकालती और फिर कक्षा के सबसे समझदार बच्चे को नेट डलवाने के लिए भेज देतीं। मैडम पति के बिना गुजारा कर सकती है पर नेट के बिना एक पल जीना पसंद नहीं है।

नेट आते ही उनके चेहरे पर मुस्कान आती और वे संकल्प ले लेतीं ‘इस बार वे वाट्सएप कम चलाएगी ताकि नेट ज्यादा चले’ वे प्रयास भी करती है फिर ‘अब थोड़ा वाट्सएप देख लेने से नेट थोड़ी न खत्म हो जाएगा’ के भाव के साथ वाट्सएप में डूब जाती। मैडम घर पर भी वाट्सएप चलाती, वे खाना बनाते समय भी वाट्सएप चलाती रहती। इस चक्कर में कई बार दाल बगैर नमक की रह जाती या सब्जी में दो बार मिर्च पड़ जाती, वे दूध को गैस पर उबलता छोड़ वाट्सएप में रम जाती और दूध मलाई बन कर रह जाता है। वे देर रात तक वाट्सएप के साथ उलझी रहती इस कारण सुबह देर से नींद खुलती। वे भागते-भागते स्कूल पहुंचती। मैडम का पूरा जीवन वाट्सएप हो गया है, उन्हें भरोसा है कि अब उनका बुढ़ापा आराम से कट जाएगा।

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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