रास्ते गांव के…

रास्ते गांव के…

भावना गड़िया
कक्षा-12, उम्र-17
कन्यालीकोट, कपकोट
उत्तराखंड

बेचैन रास्ते एक गांव के,
जैसे किसी कदमों को पुकार रहे हों,
बंद दरवाज़े और मकानों के,
जैसे अन्दर से दस्तक मार रहे हों,
लोग आज सब कुछ छोड़कर,
शहरों में चल दिए हैं,
मानो गांव की नदियां रूठकर,
समुद्र की लहरों में चल दी हों,
वो गांव जहां कभी मेला हुआ करता था,
वो आंगन जहां कभी किलकारियां सुनाई पड़ती थी,
वो खेत जो मग्न होकर लहलहाया करते थे,
आज वह सब कुछ वीरान-सा है,
जैसे किसी को पुकार रहा हो,
लौट आओ फिर उसी मिट्टी में,
ये रास्ते, ये धरती कहे पुकार के,
बेचैन रास्ते एक गांव के।।

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

Related Articles

Back to top button