चतुर्दशपदी
चतुर्दशपदी
-रवि प्रकाश-

धूप के चैगान जब ख़ामोशियां गाने लगें,
चांद का संदेस लेकर चांदनी छाने लगे।
झींगुरों की गीत गाती टोलियां भी थक चलें,
और आले में पड़े दीपक कहीं डगमग जलें।
गांव भर की रहगुजर में दूर तक हलचल न हो,
मैकदा भी अनमना हो जाम हो छलछल न हो।
पेड़ हों लिपटे खड़े जब मौन अपनी छांव से,
कल्पना का कांच भंगुर गिर गया हो पांव से।
क्या तुझे भी श्वास कोई स्पन्दनों से भर गया,
या नयन के भार से सुकुमार सपना मर गया।
नींद की निस्सीमता में रंग परिचित उड़ गया,
भावना की भूल में या और कोई जुड़ गया।
छीन ले न राग तेरा वाद्य न कोई चुरा ले,
प्रियतमे,तू प्रीत रहते गीत सारे आज गा ले।।
(साभार: रचनाकार)
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