पुस्तक/पत्रिका समीक्षा : विचारों की भावनात्मक अभिव्यक्ति करते कटोच…
पुस्तक/पत्रिका समीक्षा : विचारों की भावनात्मक अभिव्यक्ति करते कटोच…

डा. कुशल कटोच का नया काव्य संग्रह ‘सपनों के प्रतिबिंब’ प्रकाशित हुआ है। दि पेनमैन प्रेस से प्रकाशित इस कहानी संग्रह में 128 पृष्ठों पर 84 कविताएं संकलित हैं। इस किताब की कीमत 225 रुपए रखी गई है। संग्रह के बारे में कवि का कहना है कि ‘अपने विचारों को, चाहे वे आसपास के समाज की घटनाएं हों अथवा उनका गुणगान, समाज की कुरीतियां हों अथवा बनते-बिगड़ते रिश्ते हों, मैंने उन्हें कलमबद्ध कर आपके सामने रखने की कोशिश की है।’ अपने को ढूंढने की कोशिश में ‘खुद की तलाश’ नामक कविता में कवि कहता है, ‘वर्षों से है खुद की तलाश/खुद से खुद मिल जाएं/यह जरूरी तो नहीं/निकल पड़े हैं मंजिल के लिए/रास्ते मंजिल तक ले जाएं/यह जरूरी तो नहीं…।’ इसी तरह ‘दुनियादारी’ में कवि कहता है, ‘जिम्मेदारियां सब निभाई/पर दुनिया अपनी हुई नहीं/अब सब कहते हैं ‘कुशल’/दुनियादारी की तुम्हें समझ नहीं।’
‘शहीदों को सलाम’ में आदरांजलि देते हुए कवि कहता है, ‘भारत मां का सपूत कर्म चंद कर गया ऐसा काम/श्रद्धांजलि आज हम दे रहे स्मरण कर वह आत्मा महान।’ घर के मुखिया का दर्द उकेरते हुए कवि कहता है, ‘पैसे से खिलता बीवी का चेहरा/वरना तू तू मैं मैं मेरा तेरा/बच्चे भी करते पापा पापा/जब पिता ले आए पैसा/वरना तू कंजूस कहाए/कितना भी लुटा दे चाहे पैसा।’ ‘बीवी महंगी या महंगाई’ नामक कविता के यही भाव हैं। ‘सपनों के प्रतिबिंब’ नामक कविता में यह समझाया गया है कि सपने कैसे पूरे होते हैं? कवि कहता है, ‘मन में मचलते अरमान/और दिमाग में बनती बिगड़ती/तस्वीरें/जब एक हो/आंखों से छलकती हैं/तो सपनों के साकार/होने की उम्मीद/जगती है…।’ घर नामक कविता में कुशल कटोच यह समझाते हुए लगते हैं कि क्यों अब घर, रेलवे स्टेशन की तरह लगता है। इसी तरह ‘ऊंचे मकान’ का भाव देखिए, ‘कभी पहली किरण चूमती थी मेरे घर को/अब तरस जाते हैं सूरज के दीदार को।’ बूढ़े लोगों के प्रति संवेदना जगाती हुई कविता ‘बुढ़ापा कट जाता है’ का भाव देखिए, ‘बुढ़ापे में अगर हो साथ/बुढ़ापा कट जाता/बुढ़ापे में हो कोई करने को बात/बुढ़ापा कट जाता है/बुढ़ापे में कोई समझे बिना कहे/बुढ़ापा कट जाता है…।’ समग्र कविता संग्रह समकालीन परिदृश्य को भावनाओं के साथ पेश करता है।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट