साथ रहो सिर्फ तुम…

साथ रहो सिर्फ तुम…

-विमलेश त्रिपाठी-

आकाश में एक तारा
काफी है पूरी रात अंजोर के लिए
एक बीज से पूरे खेत में
उग सकते हैं असंख्य गेहूं के पौधे
एक अक्षर भर से
लिख सकता हूं महाकाव्य
उम्र का एक कतरा
जिंदा रह सकता है असंख्य नक्षत्र वर्षों तक
कोई ईश्वर नहीं
साथ रहो सिर्फ तुम आंगन की ताख पर
मिट्टी के पुराने दिये की तरह
और मेरी कविताएं जिंदा
बस…।
2 चुप हो जाओगे एक दिन जब
चुप हो जाओगे एक दिन
जब बोलते-बोलते तुम
तब यह पृथ्वी अपने चाक पर रूक जाएगी
हवा में जरूरी ऑक्सिजन लुप्त
और दुनिया से हरियाली अलोपित हो जाएगी
फूलों का खिलना बंद होगा
चिडियों के गीत जज्ब हो जाएंगे
समय के पंजे में
एक बहुत पुराना गीत होंठो पर आकर बार-बार फिसल जाएगा
और सदियों से लिखी जा रही
एक जरूरी कविता अधूरी छूट जाएगी।

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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