मेरी अभिलाषा…
मेरी अभिलाषा…
-शशांक मिश्र भारती-

मेरी अभिलाषा
आज से ही नहीं सदियों से
यही रही है कि-
शान्त- स्निग्ध बने वातावरण
समृद्धिता पाये समाज
हर्षोल्लासित हो मनुष्य
और
समस्त प्राणी जगत
जिसके लिए प्रतिफल कामना रही है मेरी
प्रकृति से
संघर्ष भी किया है प्रतिकूल परिस्थितियों से।
निश्चय ही
सफलता मिलेगी मुझे
अपनी उत्कण्ठाओं को पूर्ण करने में
अपनी वर्षा से संचित
स्वर्ण रश्मियों सी कली को पूर्ण बनाने में
अब तो-
उत्साहित हूं मैं भी
संकेत मिलने से सफलता के
जिनसे आ चुका है मुझसे नवीन उत्साह
समाज को स्वच्छ परिवेश,गति,
व दिशा प्रदान करने के लिए
प्रकृति द्वारा प्राप्त मानव शरीर की
सार्थकता सिद्ध करने के लिए।।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट