भूख की आग…
भूख की आग…
-इंदर भोले नाथ-

बहुत पहले की बात है किसी राज्य मे एक राजा रहता था। राजा बहुत ही बहादुर, पराकर्मी होने के साथ-साथ घमंडी और दुष्ट प्रवृति का भी था। उसने बहुत से राजाओं को हराकर उनके राज्य पर कब्जा कर लिया। उसके बहादुरी और दुष्टता के किस्से दूर-दूर तक फैले हुए थे। वो किसी भी साधु-महात्मा का कभी सत्कार नहीं करता था, बल्कि उनसे ईर्ष्या करता था।
एक बार उसने किसी राज्य पर आक्रमण किया और वहां के राजा को बंदी बनाकर उसके राज्य पर कब्जा कर लिया। जीत की खुशी में उसने एक बहुत बड़े जश्न का आयोजन किया, जिसमें उसने अन्य राज्य के राजाओं, राजकुमारों, बड़े-बड़े उद्योगपतियों और व्यापारियों को आमंत्रित किया। उसने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया कि जश्न मे सिर्फ उन्हें ही आने दिया जाए जो किसी राज्य के राजा, राजकुमार, उद्योगपति या व्यापारी हों, अन्यथा और किसी को न आने दिया जाए। वरना उसके साथ-साथ कर्मचारियों को भी सजा दी जाएगी।
उसी दिन एक महात्मा जो किसी दूर राज्य से चलकर उस राज्य मे प्रवेश किए थे। दो-तीन दिनों से कुछ खाया नहीं था, भूख और प्यास से उनका बुरा हाल था। तभी दूर वो जश्न नजर आया उन्हें, लंबे-लंबे कदम भरते हुए वो भी उसमे शामिल होने पहुंचे। मगर राजा के कर्मचारियों ने उन्हें, अंदर जाने से मना कर दिया बोले हमारे राजा का हुक्म है कि सिर्फ राजा, राजकुमार, उद्योगपत्तियों और व्यापारियों को ही अंदर जाने दिया जाए। अन्यथा वो उसके साथ-साथ हमें भी सजा देंगे। महात्मा ने बड़े अनुनय-विनय किए कर्मचारियों से, मगर वो भी क्या करें उन्हें भी तो हिदायत दी गई थी। महात्मा वापस लौट आए, मगर पेट की आग उन्हें मजबूर कर रही थी, भूख की आग अब सही नहीं जा रही थी । और दूर से पकवान की खुश्बू उन्हें और मजबूर कर रही थी, वहां जाने को। दूसरे रास्ते से कर्मचारियों से छुपते-छुपाते वो किसी तरह वहां पहुंच गये जहां पकवान खिलाया जा रहा था। तभी किसी कर्मचारी ने उन्हें देख लिया और पकड़ के राजा के पास ले गया।
राजा ने उस महात्मा को बड़े ही घृणा भरी दृष्टि से देखते हुए, कहा तुम कैसे महात्मा हो जो थोड़ी सी भूख बर्दाश्त नहीं कर पाए और चोरी से हमारे जश्न में शामिल हो गये। तुम महात्मा नहीं चोर हो, और भी खरी-खोटी सुनाते हुए राजा ने महात्मा को बिना खाना खिलाए ही अपने सैनिकों को आदेश दिया कि महात्मा को १०० कोड़े लगाकर राज्य से बाहर कर दिया जाए।
बहुत दिनों बाद एक दिन राजा अपने सैनिकों के साथ जंगल मे शिकार खेलने गया। घना जंगल दूर-दूर तक फैला हुआ था।
शिकार की तलाश मे राजा काफी दूर निकल आया। सैनिक भी कहीं पीछे छूट गये थे, घना जंगल था राजा रास्ता भूल गया और जंगल मे भटक गया। काफी कोशिश की राजा ने रास्ता ढूंढने की और अपने सैनिकों से मिलने की मगर नाकामयाब रहा!
जंगल मे इधर-उधर भटकते हुए राजा काफी थक गया, भूख और प्यास भी लग गई थी। राजा खाना और पानी की तलाश में भटकता रहा, मगर ना ही उसे खाने के लिए फल मिले और ना ही जंगल में कोई झरना दिख रहा था जिससे वो अपनी प्यास बुझा सके। बुरा हाल था राजा का एक तो सफर करते-करते थक गया था, ऊपर से भूख और प्यास ने राजा को ब्याकुल कर दिया। जंगल में भटकते-भटकते रात होने लगी, तभी कहीं दूर राजा को हल्की सी रोशनी दिखाई दी। लंबे-लंबे कदम भरते हुए राजा रोशनी के पास पहुंचा। एक छोटी सी झोंपड़ी के अंदर दीपक जल रहा था। राजा ने झोंपड़ी के पास जा के देखा, एक महात्मा ध्यान मग्न थे। राजा झोंपड़ी के समीप ही मुंह के बल जमीन पे गिर गया। एक तो थकावट और ऊपर से भूख-प्यास ने राजा को निर्बल बना दिया था। राजा के गिरने की आहट सुन कर महात्मा का ध्यान टूटा। बाहर आकर देखा झोंपड़ी के समीप कोई इंसान अधमरा सा मुंह के बल जमीन पर गिरा पड़ा है। महात्मा अंदर से जल लेकर आए और राजा के मुंह पे छींटे मारे। राजा होश में आया और उनके हाथ से जल का पात्र छीन सारा जल एक ही घूंट मे पी गया।
महात्मा ने उससे पूछा, कौन हो आप और इतनी रात गये इस जंगल मे क्या कर रहे हो?
राजा महात्मा के चरणों मे गिरते हुए बोला, हे महात्मा! पहले आप मुझे कुछ खाना खिलाएं, मैं भूख से मरा जा रहा हूं। उसके बाद मैं आपको सारा वृतांत बताऊंगा।
महात्मा ने कहा, पहनावा और कमर की तलवार बता रही है कि आप कहीं के राजा हो, अभी मेरे पास कुछ विशिष्ट तो नहीं है आपको खिलाने के लिए, एक पात्र जिसमें कुछ फल रखे हुए थे, उसकी तरफ इशारा करते हुए बोले, कुछ फल पड़े हुए हैं जिसे बंदरों ने जूठा कर दिया है, अगर आप चाहे तो३.
अभी महात्मा ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी, राजा उठा और फल का पात्र उठा के सारे फल खा गया और पानी पी के वहीं जमीन पर लेट गया। महात्मा ने कहा, हे राजन! अगर आप चाहो तो झोंपड़ी में विश्राम कर सकते हो।
राजा ने कहा, नहीं महात्मा आज मुझे सच्ची भूख, उन फलों से तृप्ति और गहरी नींद का एहसास इस जमीन पे हो रहा है। और राजा वहीं जमीन पर सो गया।
सुबह महात्मा ने राजा को उठाते हुए कहा, हे राजन! उठो सुबह हो गई, चलो झरने के शीतल जल मे स्नान कर के कुछ ताजे फल खालो।
राजा ने जैसे ही आंखें खोलीं, सामने महात्मा का चेहरा देख के हताश सा हो गया और उनके चरण पकड़ के क्षमा मांगने लगा।
हे महात्मा! क्षमा कर दीजिए हमें, हमने आपके साथ बड़ा ही दुष्ट व्यवहार किया था, हमसे बहुत बड़ा पाप हो गया था उस दिन। हमें क्षमा करें, हे महात्मा। हमने आपको बिना भोजन कराए, और 100 कोडे की सजा देकर अपने राज्य से निकाला था, मैं बहुत बड़ा पापी हूं, हे महात्मा मुझे क्षमा करें। भूख और प्यास की आग क्या होती है, ये मुझे कल पता चला, मुझे क्षमा करें हे महात्मा! राजा घंटों तक महात्मा के चरणों से लिपटा क्षमा मांगता रहा।
महात्मा ने कहा, हे राजन! मेरे मन मे तुम्हारे लिए कोई द्वेष या क्रोध नहीं है। मैंने तो तुम्हें उसी दिन क्षमा कर दिया था।
महात्मा ने राजा को झरने के शीतल जल में स्नान करा कर कुछ ताजे फल दिए खाने को। राजा फल खा रहा था, तब तक राजा के सैनिक भी राजा को ढूंढते हुए वहां पहुंच गये। राजा ने सैकड़ों बार महात्मा को अपने राज्य चलने को कहा, पर महात्मा ने मना करते हुए कहा, हे राजन आज तो नहीं मगर फिर कभी जरूर आऊंगा आपका आतिथ्य स्वीकार करने।
राजा ने महात्मा से विदा लेते हुए अपने किए हुए दुष्ट ब्यव्हार का फिर से क्षमा मांगी और अपने सैनिकों के साथ अपने राज्य वापस लौट आया।
फिर उसके राज्य के लोगों ने जिस राजा को देखा ये राजा वो राजा नहीं था, जिसमें घमंड और दुष्टता भरी हुई थी, जो साधु-महात्मा का सत्कार नहीं करता था और उनसे ईर्ष्या करता था। बल्कि उस राजा को देखा जो विनम्र था और अपने प्रजा के साथ अच्छा व्यव्हार करता था और साधु-महात्माओं का सत्कार और उनकी इज्जत करता था।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट