पुस्तक समीक्षा: आग में झरिया…
पुस्तक समीक्षा: आग में झरिया...

पुस्तक: आग में झरिया
कवि: अमित राजा
प्रकाशक: बिरसा एमएमसी, बी-6 अभिलाषा
अपार्टमेंट, 11-ए, पुरूलिया रोड, रांची-01
सहयोग राशि: 25 रुपए
अमित राजा झारखंड के पत्रिकारिता की दुनिया के जाने-पहचाने चेहरे है जिनकी यह पहली शोध पर आधारित पुस्तक है। पत्रकारिता की शैली में लिखी गयी यह पुस्तक ‘आग में झरिया’ पढते हुए पाठक एक ही साथ जिंदगी की हलचल, सुख, दुख, आशा, निराशा, संघर्ष से गुजरते हुए महसूस करेंगे।
इस पुस्तक की यह विशेषता उल्लेखनीय है कि पाठाधारित विश्लेषण पद्धति के कारण जहां लेखक की स्थापनाएं विश्वसनीय और प्रामाणिक है वहीं शास्त्रीयता के बोझ से मुक्त लेखक की भाषा सृजनात्मक प्रवाह के साथ पाठकों को अपने साथ बहाए चलती है। अत्यंत सहज सरल भाषा में एक जलते हुए शहर का विवरण लेखक के निहायत ही संवेदनशील स्वभाव तथा शोध विषय पर उनकी गहरी समझ को प्रकट करती है।
लेखक अमित राजा पुस्तक में कहते है कि झरिया को किस्तों में मारने की जारी तैयारी को देखकर यही गुमान होता है कि जरूर इस बेकसूर शहर को किसी की नजर लग गयी होगी, वरना यह आबाद शहर तो सही मायने में अभी-अभी जवान हुआ था लेकिन इसी जवानी में अपने वजूद को बचाने की लड़ाई के हर मोर्चे पर पराजित हो रहा है। मौत के मुहाने पर खड़े इस शहर और अग्नि व भूधंसान प्रभावित इलाके के अध्ययन के क्रम में एक के बाद एक तथ्य उभर कर सामने आ रहे है। शहर को उजाड़ने के पीछे बीसीसीएल, कोयला मंत्रालय और सरकार की साजिश भी बेनकाब हुई है।
धधकते अंगारों पर चलने की कला सदियों से दुनिया को आश्चर्यचकित और रोमांचित करती रही है। झारखंड़ के अनके हिस्सों में यह कला आज भी जीवित है और लोगों की मान्यता है कि इसे वे ही लोग कर सकते है जिन्हें अलौकिक शक्ति प्राप्त है। झरिया कोयलांचल के लाखों लोग पिछले कई वर्षों से कोयला के धधकते अंगारों पर न सिर्फ चल रहे है बल्कि रह रहे हैं। हमें नहीं मालूम कि उन्हें कोई औलिकिक शक्ति प्राप्त है या नहीं पर यह जरूर पता है कि आग में जीवित लोगों को झोंकने वाली शक्तियां कौन है?
प्राचीन भारत में झरिया एक हरा-भरा वन क्षेत्र था। आधुनिक और विकसित भारत में अब झरिया एक फायर एरिया है। आग की लपटों से घिरा झरिया में जमीन के नीचे की आग तेजी से लपकती हुई सतह तक आ पहुंची है। लूट और पेट की आग बुझाने वाला झरिया कभी भी किसी एक दिन कब आग की भेंट चढ़ जाएगा, कोई नहीं जानता, लिहाजा पल-पल, सांस-दर-सांस मरना झरिया की नीयति है।
‘आग में झरिया’ जबरन आग में झोंक दिये गये एक शहर और समाज की कहानी है। यह पुस्तक हमें आधुनिक भारत के विकास की भयावह सच्चाई से रूबरू कराती है जो कि लूट और भ्रष्टाचार पर टिकी है। यह पुस्तक आग के उन कारणों को ढूंढ़ने का प्रयास है जिससे न सिर्फ झरिया बल्कि आज का दलित-आदिवासी भारत जूझ रहा है। ‘झरिया में आग’ आम जन की पीड़ा और जीजिविषा की भी कहानी है जो इस आग से लोहा लेने के लिए संगठित हो रहे है, हो चुके हैं। अथक शोध, अध्ययन और श्रम से इसे बिरसा एमएमसी के लिए दैनिक हिन्दुस्तान, धनबाद में कार्यरत कोयलांचल के अनुभवी युवा पत्रकार अमित राजा ने लिखा है, जो अभी दैनिक भास्कर, गिरिडीह के ब्यूरो प्रमुख है। बहरहाल आग में झरिया पुस्तक से गुजर कर सबकुछ धुंआ-धुंआ सा लग रहा है। सभी भारतवासियों के पढ़ने योग्य पुस्तक।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट