तुम कह दो….
तुम कह दो….
एस.के. गुडेसर ‘अक्षम्य’

प्रेम की नदी का जहाँ से उद्गम होता है
मेरे उस हृदय के अन्तःपुर पर-
हक़ तुम्हारा है
तू जो चाहे कर मेरे साथ
मुझे आँख मूँद कर स्वीकार है
पर कहने की पहल तुम करो
कि दिन नहीं गुज़रता कब से
रातों को बस तेरा इंतज़ार है
तू साथ तो धरती पर स्वर्ग
तेरे ख़्वाब के बग़ैर तो…
नीदें भी बेकार हैं
आजा गले लगा ले यार
मुझे तुझसे प्यार है…..
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट