खुद्दार दिल

खुद्दार दिल

-मंजु वशिष्ठ-

प्यार कर वो पार उतरे हम किनारे रह गए
सत्य का कर के भरोसा हम सहारे रह गए
चंद सपने थे संजोए साथ तेरे सजना
टूट चकनाचूर सारे वो नजारे रह गए
चांद फैला गर्दिशों में चांदनी का नूर ले
देख आलम बेबसी का चुप सितारे रह गए
था बड़ा खुद्दार दिल क्यों पराया हो गया
वक्त से मजबूर शायद हो तुम्हारे रह गए
बात दिल की हम दबा कर रह गए
डर जमाने से उन्हें हम बस निहारे रह गए
जल रही थी आग इंतकामों की कहीं
दे हवा वो चल दिए घर जले हमारे रह गए।।

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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