कहानी: बूंद बूंद पानी…
कहानी: बूंद बूंद पानी…
-रामनरेश उज्जवल-

चांद आसमान के ठीक बीचोंबीच आ गया है। हां, शायद बारह बजा होगा। मन ने अनुमान लगाया। बादल इधर-उधर दौड़ लगा रहे थे। काले, धुंआरे तथा सफेद बादलों के समूह बड़ी मस्तीप के साथ तैर रहे थे, लगता था जैसे, गश्त लगा रहे हों। ड्यूटी पूरी कर रहे हों। ड्यूटी पूरी करने की आदत अब समाप्तं हो रही है। चैकीदार भी दो चार सीटियां मार कर कहीं पसर जाता है। क्या करे वह भी, जमाना ही काम-चोरी का है। बस केवल खाना पूरी होती है।
मैकू का बेटा डमरू पुलिस में हुआ था। वही बताता था।चाचा ! बड़ी मस्तक जिन्दबगी है अपनी। जिधर जाओ, कुछ न कुछ मिल ही जाता है। जब चाहता हूं, दस, बीस, पचास बना लेता हूं। रात की ड्यूटी में तो और भी मजा है। सौ-पचास बनाकर सो जाता हूं।
कैसे बनावत हो बचवा। बैरागी ने पूछा था।
कैसे का? कानून का डंडा अपने पास है। जिस पर फटकार दो, दस-पचास तो बगैर कहे निकाल ही देता है।
जो न निकाले तो?
तो थाने खींच ले जाने की धमकी देता हूं। तुम तो जानते ही हो काका, थाने-कचहरी से अच्छेी-अच्छेै भागते हैं। डमरू ने अपनी बात को बड़े स्टाअइल और रुआब से मूंछों पर ताव देते हुए कहा था।
मूंछें मर्दों की शान होती हैं। बिन मूंछों का आदमी मर्द कम जनाना ज्याहदा लगता है। सरकारी मुलाजिमों की मूंछ हो या न हो, पर यह हमेशा ऊंची ही रहती है। कुत्ता यदि विलायती हो, तो पूंछ कटने पर भी कीमती होता है।
रात का दूसरा पहर लग गया, मगर बैरागी को नींद न आ रही थी। नजरें आसमान को घूर रही थीं। बादलों के चित्र अजीबो-गरीब बन जाते थे। यह सफेद बादल का रूप परिवर्तित हुआ। सर पर पगड़ी, बदन पर कुर्ता और तहमद बांधे हुए एक आदमी लोटा लिए खड़ा था। कलूटा बादल काले भालू सा लग रहा था। वह दो पैरों पर खड़ा था। वह खिलखिला कर हंस रहा था। इस दृश्यि को देख कर बैरागी मन ही मन बोला बहुत चर्बी सवार है। बहुत अमीरी सवार है। चार बूंद पानी नहीं दे सकता। चार जूता पड़े तो दिमाग शुद्ध हो जाए।
सूखे ने अबकी सबकी करनी खराब कर दी। खेत जोत-जोत कर सब परेशान हो गए, मगर पानी की कमी से बुवाई नहीं हो पाई। कुछ लोगों ने पम्प। से पानी भरा कर रोपाई की थी। सोचा था शायद बारिश हो जाए, पर पानी के अब कोई आसार नहीं थे। उधारी ले लेकर कहां तक धान सींचें? कर्जा वैसे कोई अच्छीह चीज थोड़े न है। फसल एकदम मुरझा गई है। पानी न मिला तो बीज भर का भी अनाज न होगा।
जेवर-गहने गिरवीं रखकर पैसे लगाए थे। पैसे की तंगी आदमी को जानवर बना देती है। पूरा खेत फावड़े से गोंड़ कर जुताई की थी। किसानी में किसान हर साल जुआ खेलता है। बड़े-बड़े लोग ही लाभ कमाते हैं। छोटे लोगों की जिन्दरगी कीड़ों सी होती है।
आसमान के काले बादल नाले के रूप में बदल गए और सफेद बादल कीड़ों की शक्लछ लेने लगे। क्याल दुनिया है? क्यान तकदीर है? एक आसमान है, एक जमीन है। दोनों का मिलना असम्भाव है। किन्तुन आदमी असम्भाव को सम्भ?व करने में ही लगा रहता है। धुंआरे बादलों ने गंगा महारानी का रूप धर लिया। जै गंगा मैया की। बैरागी ने कहा।
एक बड़ी सी पानी की बूंद माथे पर पड़ गई। जै गंगा महारानी। जै वर्षारानी, प्या सी धरती की प्याभस हरो। कष्टभ हरो। जन-जन की पीड़ा का निवारण करो।
अब बरसेगा। काले बादल गरज उठे। बिजली सी चमक गई। बादलों ने फिर रूप बदला। नहर बन गए। भूरा बादल ट्यूबवेल बन गया। सफेद बादल पम्पी की टोंटी से पानी की तरह झर रहा था।
हां, बारिश अवश्यी होगी। बैरागी उठा और आंगन में फैला हुआ सामान छाया में रख दिया। सबको आवाज लगाई, पर कोई न उठा। सब घोड़े बेच कर सोते हैं। जब मर जाऊंगा, तो जाने क्या करेंगे? अपनी चारपाई भी ओसारे में ले आया। पानी तड़तड़ा कर बरस रहा था। उसका मन खुशी से झूम रहा था।
अब पानी न लगाना पड़ेगा। फसल आसानी से हो जाएगी। भगवान बड़ा कारसाज है, वरना बड़ी मुसीबत हो जाती। कहां से लाता सिंचाई के पैसे? लड़के की फीस भी चुकानी है। पढ़ाई-लिखाई में तो और भी आग लगी है।
खैर जब ओखली में सर दिया है, तो मूसल से क्याच डरना? मानुष का जन्मत कष्ट भोगने के लिए ही होता है।
छप्पनर से पानी चू रहा था। उसने चारपाई खिसका कर बाल्टी् लगा दी। पानी उसमें चूने लगा। आंगन का पानी भी चारपाई के नीचे आने लगा। तुरन्तं फावड़ा उठाया। नाली को खोदकर गहरा किया। पानी बाहर जाने लगा। पानी से उसका शरीर भीग गया था। पानी काफी ठंडा था। बदन ठिठुर रहा था, किन्तुय उसे आनन्दा आ रहा था। इस पानी में अमृत की अनुभूति हो रही थी।
फसल ठीक-ठाक हो गयी, तो सारे कर्जे उतर जाएंगे। गहने छूट जाएंगे। आसमान से मूसलाधार बारिश हो रही थी। ऐसी बारिश पहले नहीं हुई थी। चारों तरफ हरा भरा चारा लहलहा रहा था। सारे जानवर चर कर ही पेट भर रहे थे। घर की नांद का चारा खाते ही न थे। जब हार-बाहर से ही पेट टन्न हो जाए, तो घर में भला कौन खाए? गाय-भैंस का दूध बढ़ गया था। दूध से आमदनी काफी बढ़ गई थी। वह एक ग्राहक से पैसे ले रहा था, कि किसी ने अचानक कसके झिंझोड़ दिया। वह हकबका कर बैठ गया। सामने लल्लूई खड़ा था- मास्टकर साहब ने स्कूरल से भगा दिया है। बिना फीस बैठने न देंगे।
बैरागी आश्च र्य चकित चारों ओर देख रहा था। धरती पर एक भी बूंद पानी न था। आसमान की ओर देखा। कलूटा बादल दो पैरों पर खड़ा हंस रहा था। सफेद बादल मर चुका था। उसकी अर्थी जा रही थी। भूरे बादल आंसू बहाकर स्यागपा कर रहे थे। सपना टूट गया था।
उसी समय पम्पं वाला आ गया। बोला- भाई बैरागी पैसे दो। जानवरों के लिए भूसा लाना है। हरेरी है नहीं, वरना उसी से काम चलाता।
आज तो कुछ है नहीं। कल-परसों तक कुछ इंतजाम हो जाएगा।
नहीं भाई, बहुत हुआ? पानी लगाकर जब रोपाई की थी, तब से उधार पड़ा है। आखिर हमें भी जरूरत लगती है।
देखो, आज और पानी लगा देना। मैं दोनों का हिसाब कल-परसों में कर दूंगा।
ये कल-परसों अब न चलेगा। सीधे पैसा निकालो, या ये भूसे की झाल दे दो।
क्याग मजाक करते हो बनवारी? मेरे पास भी तो जानवर हैं।
मैं कुछ नहीं जानता? मुझे अपने जानवरों के लिए चारा लाना है। पैसा दो या भूसा।
पैसे तो थे नहीं, भूसा ही ले गया। बैरागी लड़के को लेकर स्कू ल गया। मास्टखर साहब ने भी फटकार दिया- खाने को पैसा है। डॉक्टरर के लिए पैसा है, पर पढ़ाई के लिए पैसा नहीं है।
बीमारी तो…..।
बहस मत करो। जब पैसा हो, तब भेजना लड़के को। यहां धर्मशाला नहीं खोल रखा है।
चल! खबरदार जो इस स्कूहल में कदम रखा। पढ़ाई-लिखाई से पेट नहीं भरता है। जाके जंगल से लकड़ी-वकड़ी बीन लाया कर। अब ऐसे न काम चलेगा। बैरागी ने लड़के को टीप लगाते हुए कहा।
लौटते समय वह फिर बनवारी के पास गया- दादा आज पानी जरूर चला दो।
न बाबा न, अगर नगद रोकड़ा हो, तो बात करो। वरना आगे बढ़ो। हमारे पास इतना बाढ़ा पानी ना है। बड़ी मुश्किनल से पिछला निकला है। अब और नहीं।
अगर पानी न लगा तो फसल सूख जाएगी।
माफ करो महाराज। फसल सूखे या आग लगे। मैं जिम्मेदार ना हूं।
देखिए बड़ा पैसा लगाया है, अगर पानी न मिला तो पूरी मेहनत अकारथ हो जाएगी।
बैरागी ने हाथ जोड़े। लेकिन उस पर कोई असर न हुआ। नहर में भी एक बूंद पानी न था। बैरागी मुंह लटका कर वापस घर आ गया। दरवाजे पर जानवर बंधे रम्भौ रहे थे। खूंटे के चारों ओर फेरे ले रहे थे। सबकी हड्डी-हड्डी दिख रही थी। सारे जानवर चारा न पाने से कमजोर हो गए थे। भूरी भैंस तो बीमार होकर मर ही गई थी।
उसे कुछ समझ न आ रहा था। उसने जानवरों को कनाई से खोल दिया। वह उन्हें। लेकर हार में पहुंचा। वहीं पास ही उसके खेत थे। उसकी बीवी खेत की निराई कर रही थी। खर-पतवार निकालने से फसल अच्छीे होती है।
बैरागी ने देखा। मैदान में घास भी न थी। उसने जानवरों को खेत की ओर खेद दिया। जानवर फसल चरने लगे और वह मेड़ पर बैठकर जाने क्याघ सोचने लगा? बीवी और लल्लूो दोनों भौचक्केह से रह गए।
चलो दो-चार दिन का चारा ही हुआ जानवरों का। वह सोचकर मुस्किराया। कुछ ही देर में अचानक आसमान में बादल दिखाई पड़ने लगे। धीरे-धीरे पूरा आसमान बादलों से भर गया। बिजली कड़क उठी और मूसलाधार बारिश होने लगी। पानी इतना बरसा, कि खेत-खलिहान, नहर, तालाब सब भर गए।
लड़के ने कहा- देखो बापू, आज कितना पानी गिरा।
का वर्षा, जब कृषि सुखाने। इतना कह कर उसने एक लम्बीर सी सांस भरी और दूर आसमान में फूटते- छिटकते बादलों को घूरने लगा।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट