उदयपुर-श्रद्धा से भरा झीलों का शहर…

उदयपुर-श्रद्धा से भरा झीलों का शहर…

उत्तर पूर्वी के छोटे से राज्य त्रिपुरा के दक्षिण में स्थित उदयपुर एक छोटा पर प्रसिद्ध शहर है। यह दक्षिण त्रिपुरा जिले का मुख्यालय भी है। भले ही उदयपुर का नाम राजस्थान के अधिक लोकप्रिय शहर से मिलता है, लेकिन यह पश्चिम के रेगिस्थानी शहर से बहुत अलग है।

उदयपुर और उसके आस पास के पर्यटक स्थल:- उ..दयपुर शहर अपने अनेक मंदिरों के लिए जाना जाता है। भारी संख्या में श्रद्धालु मंदिरो के इस शहर में स्थानीय देवी, त्रिपुरा सुंदरी और अन्य कई देवताओं की पूजा करने आते हैं। उदयपुर को झीलों का शहर भी कहा जाता है क्योंकि यहां की कई झीलें शहर को और खूबसूरत बनाती हैं। उदयपुर की सारी झीलें कृत्रिम रुप से बनाई गई हैं, धानी सागर, महादेव दिघी, जगन्नाथ दिघी और अमर सागर उनमें से कुछ हैं। उदयपुर, अगरतला के बाद त्रिपुरा का दूसरा सबसे बडा शहर है साथ ही दक्षिण त्रिपुरा जिले का मुख्यालय भी है। शहर में बहती गुमटी नदी भूमि को उपजाऊ और कृषि के लिए उपयुक्त बनाती है। उदयपुर, अगरतला से 55 किमी दूर स्थित है तथा यहां तक किसी निजी वाहन या राज्य परिवहन की बसों द्वारा पहुंचा जा सकता है।

भुवनेश्वरी मंदिर:- भुवनेश्वरी मंदिर का वर्णन नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के प्रसिद्ध उपन्यास राजर्षि और नाटक बिशर्जन में किया गया था। ये मंदिर गोमती नदी के बगल में आज एक खंडहर में तब्दील हो चुके शाही महल के पास में स्थित है। ये मंदिर देवी भुवनेश्वरी को समर्पित है जिसे महाराजा गोविंदा माणिक्य द्वारा 17 वीं सदी में बनाया गया था।

बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 675-1660 ई के आस पास हुआ है। अगरतला के राजधानी स्थानांतरण से पहले उदयपुर माणिक्य राजवंश की राजधानी और राजा का सरकारी निवास स्थान था। ये सुन्दर मंदिर एक तीन फुट ऊंचे बरामदे में है।

इस मंदिर में एक सुन्दर छत, और द्वार पर स्तूप है जो इसे और भी अधिक खूबसूरत बनती है। इस मंदिर की वास्तुकला आज भी देखते ही बनती है। कहा जाता है कि इस मंदिर की कारीगरी अपने आप में एक आश्चर्य है। ये मंदिर एक प्रमुख धार्मिक गंतव्य है जहां हर साल हजारों लोग आते हैं।

नजरुल ग्रंथागार:- नजरुल ग्रंथागार, उदयपुर की एक प्रसिद्ध राष्ट्रीय पुस्तकालय है। यह प्रसिद्ध बंगाली कवि काजी नजरुल इस्लाम के नाम पर नामित है। यह राष्ट्रीय पुस्तकालय, काल्पनिक से लेकर कथेतर साहित्य की सभी प्रकार की किताबों का भंडारघर है।

नजरुल ग्रंथागार माणिक्य राजवंश की सांस्कृतिक समृद्धि के लंबे अनुस्मारक के रुप में खडा है और त्रिपुरा के लोगों को किताबों और साहित्य के महत्व को बताता है। हालांकि आज यह उदयपुर की गलियों में सिकुड सा गया है, जो राज्य की राजधानी से काफी दूर है, पर भारी संख्या में लोगा, ज्यादा तर छात्र और विद्वान नियमित रुप से इस पुस्तकालय में आते हैं।

जो सैलानी इस शहर की स्थानीय संस्कृति के बारे में पढ़ना पसंद करते हैं, उनके लिए नजरुल ग्रंथागार एक सही स्थान है। हजारों पुस्तकों से भरी, यह राष्ट्रीय पुस्तकालय अपनी तरह की एक है। क्योंकि यह प्रसिद्ध कवि के नाम पर नामित है, पुस्तकों का एक बडा वर्ग उन्हें समर्पित है।
त्रिपुरा सुंदरी मंदिर:- त्रिपुरा अवश्य देखें त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, त्रिपुरा के अत्यंत लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। हिंदू पौराणिक कथा अनुसार, त्रिपुरा सुंदरी मंदिर मां काली के 51 शक्ति पीठों में से एक है। इस मंदिर में मां काली के ‘सोरोशी’ रुप की पूजा की जाती है। मंदिर का स्वरुप कछुआ या कुर्मा के आकार जैसा दिखता है और इसलिए इसे ‘कुर्मा पीठ’ कहते हैं।

यह माना जाता है कि सती का दाहिना पैर कटकर यहां गिरा। हिंदू पौराणिक कथा अनुसार सती की मृत्यु से दुखी भगवान शिव ने उनके मृतक शरीर को अपने कंधो पर उठया और इतनी उग्रता से तांडव नृत्य करने लगे कि सारे देवता भयभीत हो गए। भगवान शिव को रोकने के लिए, भगवान विष्णु ने सती के शरीर को टुकडों में काटा जो भारत, पाकिस्तान, बर्मा और नेपाल में गिर गएं।

जिस स्थान पर उनका दाहिना पैर कटकर गिरा उसे पीठस्थान के रुप में पूजा जाता है। झोपडे के आकार की बनावट और शंक्वाकार की छत के कारण मंदिर की निर्माण शैली बंगाली वास्तुकला से मिलती है। त्रिपुरा सुंदरी मंदिर की पूर्वी दिशा में कल्याण सागर झील स्थित है।

कल्याण सागर:- त्रिपुरा आकर्षक स्थल त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के निकट स्थित कल्याण सागर एक बडी झील है। यह झील 5 एकड से भी ज्यादा क्षेत्र में फैली है, और यह 224 गज लंबी तथा 160 गज चैडी है। त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के निर्माण के 124 साल बाद यह झील खुदवाई गई। यह झील सन् 1501 ई. में यहां के राज रहे महाराजा कल्याण माणिक्य के जमाने की है।

कल्याण सागर झील में कई प्रकार की मछलियां और जल प्रजातियां पाई जाती हैं। इस झील में कछुओं की कई दुर्लभ प्रजातियों के साथ-साथ मछलियां भी पाई जाती है। झील में मछली पकडना मना है, लेकिन मंदिर के दर्शन करने आए श्रद्धालु मछलियों को मुरमुरे और बिस्कुट खिलाते हैं। यह झील केवल मंदिर के परिवेश को सुंदर ही नहीं बनाती, बल्कि श्रद्धालु इसे काफी पवित्र मानते हैं। कल्याण सागर झील शहर की अन्य झीलों में से है, जो उदयपुर को झीलों का शहर बनातीं हैं। आकर्षणों के अन्य स्थानों में से एक नजरुल ग्रन्थघर एक सार्वजनिक पुस्तकालय है, जिसका नाम बंगाल के प्रसिद्ध कवि काजी नजरुल इस्लाम के नाम पर रखा गया है।

कैसे पहुंचे उदयपुर:-

सड़क मार्ग:- राष्ट्रीय राजमार्ग उदयपुर के पर्यटक स्थलों के लिए एक जीवन रेखा है। त्रिपुरा की लंबाई और चैड़ाई में चलता एन.एच 44, अगरतला को उदयपुर से जोडता है। क्योंकि उदयपुर सबसे अधिक देखा जाने वाला शहर है, अगरतला से इस शहर तक परिवहन की कई सुविधाएं उपलब्ध हैं। सड़क की हालत भी काफी अच्छी है।

ट्रेन द्वारा:- अगरतला रेलवे स्टेशन उदयपुर के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है। इस राजधानी शहर से सिलचर-लामडिंग मार्ग के लिए भी ट्रेनों की सेवा उपलब्ध है। सैलाना गुवाहाटी से एक इंटर सिटी ट्रेन द्वारा लामडिंग या सिलचर पहुंचे और फिर वहां से अगरतला के लिए एक और ट्रेन लें। अगरतला से उदयपुर पहुंचने के लिए नियमित रुप से परिवहनों की सुविधा उपलब्ध है।

एयर द्वारा:- उदयपुर का अपना कोई हवाई अड्डा नहीं है। अगरतला हवाई अड्डा उदयपुर के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है। सिंगरबील हवाई अड्डा अगरतला शहर से 10 कि.मी दूर है जबकि अगरतला, उदयपुर से 55 किमी दूर है। सैलानियों के लिए सीधे अगरताल हवाई अड्डे से उदयपुर जाने के लिए नियमित बसों और टैक्सियों की सेवा उपलब्ध है।

उदयपुर जाने का सबसे बढिया समय:- अक्टूबर से लेकर मई महीने तक का समय उदयपुर की सैर के लिए बहुत बढिया है। उदयपुर शहर अपने मंदिरों के लिए जाना जाता है, अतः सैलानी इस शहर की सैर दीवाली के दौरान करें।

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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