आज बगीचे में….

आज बगीचे में….

-हरीश कुमार-

आज बगीचे में
उमस के मौसम में हवा चली है
मैं आनंदित हूं
मन से तन से
एक तितली रंग बिरंगी
भिंडी के पौधे पर बैठी
हिलती पंख हिलाती
अच्छी सच्ची लग रही थी
मोहित होकर उसे पकड़ने को
बचपन की लालसा जगी थी
चुपचाप शिकारी की तरह मैंने
था कदम बढ़ाया किन्तु
रोक दिया इच्छा हाथ को
मन को भी झटकाया था
उड़ जाने दिया उसे पल में
मैं खुल के हंसा मुस्काया था।

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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