अबला …

अबला …

-राजेश माहेश्वरी-

तुम कौन हो
किसलिये हो
क्या चाहते हो
वह मौन है
क्यों, किसलिए, क्या, कारण
अनेक प्रश्न है
वह फिर भी मौन है
वह समाज से पीडित है
उसके हृदय में टीस है
वेदना है
तन को तो वह भूल ही चुकी है
समाज की सोच में परिवर्तन चाहती है
जीवन में सुख व शांति चाहती है
वासना की मूर्ति बनकर नहीं
पूजा के थाल के समान
अबला बनकर नहीं
सबला बनकर जीना चाहती है।

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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