अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस (01 मई) पर विशेष: मजदूरों के हितों को सुरक्षित करना होगा तभी मजदूर दिवस की सार्थकता होगी?
अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस (01 मई) पर विशेष: मजदूरों के हितों को सुरक्षित करना होगा तभी मजदूर दिवस की सार्थकता होगी?
-नरेन्द्र भारती-

बेशक देश में प्रतिवर्ष की तरह 1 मई को मजदूर 2025 दिवस मनाया जा रहा है। केवल मात्र एक दिन बडे़-बड़े सैमिनार, गोष्ठियां की जाती है मजदूरों के हितों को सुरक्षित करने के लिए बड़े दावे किये जातें है मगर 364 दिन मजदूरों के बारे में कोई नहीं सोचता कि मजदूरों के साथ कैसे-कैसे हादसे होते रहते है। प्रतिदिन समाचार पत्रों में मजदूरों के मरने की खबरें सुखियां बनती है मगर सरकारें मूकदर्शक बनी तमाशा देख रही हैं। देश के कारखानों में मजदूर मर रहे हैं हर जगह मजदूर काल का ग्रास बन रहे है। देश में मजदूरों के साथ हादसे कब थमेगें यह एक यक्ष प्रशन है। हर साल दिवस मनाए जाते है मगर धरातल की सच्चाइयां बहुत ही भयानक है मजदूरों का शोषण किया जाता है। मजदूरों के नाम पर सैकडों योजनाए चलाई जाती है मगर उन्हे उनका हक नहीं मिलता। देश में हर रोज मजदूर बेमौत मर रहे हैं। प्रतिदिन समाचार पत्रों में मजदूरों के मरने की खबरें सुखियां बनती है मगर सरकारें मूकदर्शक बनी तमाशा देख रही हैं। देश में मजदूरों के साथ हादसे थमने का नाम नहीं ले रहें हैं। हर साल दिवस मनाए जाते है मगर धरातल की सच्चाइयां बहुत ही भयानक है मजदूरों का शोषण किया जाता है। मजदूरों के साथ होने वाले यह हादसे बहुत ही त्रासदी है। कहीं उद्योगों में जलकर मारे जा रहे हैं। हादसों की बजह से बच्चे अनाथ हो रहे है। मगर केन्द्र व राज्य की सरकारों को जरा सा सदमा होता तो मजदूरों के हितों में कदम उठाती लेकिन सरकारें तो तब जागती हैं जब बड़ा हादसा घटित हो जाता है। देश में हर वर्ष लाखों मजदूर दबकर मारे जा रहे हैं उद्योगों में जलकर मारे जा रहे हैं। मगर केन्द्र व राज्य की सरकारों को जरा सा सदमा होता तो मजदूरों के हितों में कदम उठाती लेकिन सरकारें तो तब जागती हैं जब बड़ा हादसा घटित हो जाता है। देश के कारखानों में मजदूर मर रहे हैं, इमारतों के नीचे दबकर मजदूर काल का ग्रास बन रहे है। हादसों को देखकर रौगंटे खडे़ हो जाते हैं देश के राज्यों में चल रहे ईटों के भठठों में मजदूर मारे जा रहे हैं। मजदूरों के पसीने से ही ईटें पकती हैं मगर भठठा मालिक मजदूरों का शोषण कर रहे हैं मजदूर खून-पसीना बहाकर काम करते है। मगर बदले में मेहनताना नाममात्र दिया जाता है। मालिक मजदूरों के सिर पर करोड़ों रुपया कमा रहे है। आकडों के मुताबिक बीते सालों में देश में हजारों मजदूर मारे जा चुके है। हादसों नं सवाल खड़े कर दिये हैं कि बार-बार हो रहे इन हादसों के कारण क्या है इस घटना ने यह प्रमाणित कर दिया है कि बीती घटनाओं से न तो सरकार ने सबक सिखा और न ही लोगों ने सीखा। हांलाकि इसयह कोई पहला हादसा नहीं है पिछले कई सालों से ऐसे दर्दनाक हादसे हो रहे हैं। फ़रवरी 2024 को बद्दी की परफ्यूम फैक्ट्री में घटित हुआ जहाँ 35 लोग झूलस गए और एक महिला की मौत हो गई चार लोगों को पीजआई में भर्ती किया है l अभी भी 20 लोग लापता हैं सर्च ऑपरेशन जारी है फैक्ट्री के प्रबंधक को गिरफ्तार कर लिया है आगजनी के समय करीब 50 कामगार मौजूद थे 30 कामगारों ने ऊपरी मंजिल से कूद कर अपनी जान बचा ली इनमे तीन की रीढ़ की हड्डी टूट गई मलिक पऱ लापरवाही बरतने का मामला दर्ज कर लिया है इससे पहले भी बद्दी में काफ़ी अग्निकांड हो चुके हैं लेकिन सबक नहीं सीख रहे हैं सरकारों को इस हादसे से संज्ञान लेना चाहिए l2019 में राजघानी दिल्ली में रानी झांसी रोड़ पर स्थिित अनाज मंडी में रविवार सुबह चार बजे आग लगने से 43 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी तथा कई लोग घायल हो गए थे। एडीआरएफ की टीम ने केवल 56 लोगों की जान बचा ली थी। यह भीषण आग सुबह साढे चार बजे के करीब लगी थी। आग लगने का कारण शार्टसर्किट था। भारतीय दंड सहिंता की धारा 304 के अंर्तगत मालिक के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज कर लिया है। यह मजदूर बिहार के समस्तीपुर के एक ही गांव के है। पलक झपकते ही अनाज मंडी शमशानघाट बन गई थी। लाशों के ढेर लग गए थे। चीखो पुकार मच गई थी। मजदूर खाक ह गए थे। कैसी विडंबना है कि कभी सुरगों व उद्योगों में बेमौत मारे जा रहे हैं। मगर केन्द्र व राज्य की सरकारों को जरा सा सदमा होता तो मजदूरों के हितों में कदम उठाती लेकिन सरकारें तो तब जागती हैं जब बड़ा हादसा घटित हो जाता है। 2025 के 4 महिनों में उद्योगों में आग के काफी मामले घटित हुए है। देश में मजदूरों के साथ होने वाले हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। कारखानों में जल कर मजदूर मर रहे हैं। गत वर्ष भी एक ही दिन में दो हादसों में 19 मजदूर मारें गए थे जब राजधानी दिल्ली के बाहरी जिले में स्थित बवाना औद्योगिक क्षेत्र में एक पटाखें की फैक्टरी के गोदाम में भीषण आग लगनें के कारण 17 लोगों की मौत हो गई थी और तीस लोग बुरी तरह झुलस गए थे। मरने वालों में 10 महिलाएं तथा 7 पुरुष थी। मजदूरों ने सपने में भी नही सोचा होगा कि यह पटाखा गोदाम शमशान बन जाएगा। पल भर में जिन्दा लोग राख में बदल गए यह बहुत ही त्रासदी है। लगभग तीन घंटे की मश्क्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका तब तक सब कुछ राख हो चुका था। आग के कारणो का पता नहीं चल पाया है। प्रशासन को चाहिए कि लापरवाही बरतने वालों को सजा दी जाए ताकि फिर एसे हादसे न हो सके। दूसरे हादसे में कानपुर में भी दो मजदूरों की मलबे में दबने से दर्दनाक मौत हो गई। एक दिन में ही 19 मजदूर मारे गए। यह बहुत ही दुखद है। । बीते वर्ष में रायबरेली के उंचाहार में एटीपीसी संयत्र का बायलर फटने से 30 मजदूरों की दर्दनाक मौत हो गई थी तथा 100के लगभग घायल हो गए थे। 500 मैगावाट इकाई के बायलर में यह हादसा हुआ था उस समय 200 कामगार मौजूद थे सरकारों ने मृतकों को मुआवजे की घोषणा करती है मगर मुआवजा इसका हल नहीं है। एक ऐसा ही हादसा जयपुर के पास खातोलाई गांव में घटित हुआ था जहां टाªसफारमर फटने से 14 लोगों की मौत हो गई थी। इन हादसों ने औद्याोगिक क्षेत्रों में मजदूरों की सुरक्षा पर प्रशनचिन्ह लगा दिया है इन हादसों पर संज्ञान लेना होगा तथा मजदूरों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने होगें ताकि भविष्य में ऐसे हादसों पर रोक लग सके। गत वर्ष जम्मू के उधमपूर से 80 किलोमीटर दूर रामबन जिले के चंद्रकोट में जम्मू-कश्मीर हाईवे पर टनल कर्मचारियों की बैरक में आग लगने से दस श्रमिक जिंदा जल गए थे। यह बैरक लोहे व फाईबर की बनी थी। यह बहुत ही दुखद हादसा था। आग लगने का कारण बिजली का शार्टसर्किट था। इस बैरक में 100 से अधिक लोग रहते थे। मगर छुटटी होने के कारण आसपास के लोग अपने घरों को चले गए थे। गनीमत रही की यह अपने-अपने घरों को गए थे वरना मृतको की संख्या 100 के लगभग होती। नया वर्ष इन मजदूरों के लिए यमराज बन कर आया था और बेचारे टनल में ही जिन्दा जलकर राख हो गए थे इन अभागों ने सपने मे भी नहीं सोचा होगा की नया साल उनके लिए घातक साबित होगा। मारे गए मजदूरों में एक मजदूर हिमाचल के कांगड़ा का था तथा एक पंजाब का था बाकि बनिहाल-रामबन क्षेत्र के निवासी थे। सुरगं में घटित इस दर्दनाक हादसे ने कई प्रशन खड़े कर दिए है कि आखिर यह हादसे कब रुकेगें। यह कोई पहला हादसा नहीं है देश में अब तक हजारों मजदूर बेमौत मारे जा चुके है। एक साल पहले हिमाचल के बिलासपुर में भी एक ऐसा ही हादसा घटित हुआ था जब फोरलेन का काम करते समय सुरंग ढह गई और तीन मजदूर उसमें दब गए मगर 12 दिन की कड़ी मशक्क्त के बाद दो मजदूरों को जिन्दा निकाला गया था। एक मजदूर हिरदा राम कोई पता नहीं चल पाया था कि वह जिन्दा था या मर चुका था लगभग 9 महीने बाद उसका शव बरामद हुआ था। हिमाचल के जिला किन्नौर में एक निर्माणाधिन प्रोजेक्ट की दीवार गिरने से चार मजदूर बेमौत मारे गए थे। यहां पर 11 मजदूर काम कर रहे थे कि अचानक दीवार गिर गई सात मजदूर तो भागकर बच गए मगर बेचारे चार मजदूर जिन्दा दफन हो गए। इन मजदूरों पर 42 मीटर लंबी दीवार गिर गई थी। हिमाचल में ऐसे बहुत हादसे हो रहे है हमीरपुर में भी गत दिनों दर्जनों मजदूर मारे गए थे। 2015 के फरवरी माह में एक सप्ताह में दो दर्दनाक हादसों में 10 मजदूर मारे गए और 20 मजदूर घायल हो गए। पहला हादसा हिमाचल के कुल्लु में हुआ तथा दूसरा मुम्बई में हुआ। मुम्बई के अलीबाग में एक पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से 9 मजदूर मारे गए थे और 19 घायल हो गए थे। और दूसरी घटना में 24 फरवरी 2014 को कुल्लु के मणीकर्ण में करंट लगने से एक मजदूर की मौत हो गई थी जो बिजली विभाग के एक ठेकेदार के पास काम कर रहा था इस दर्दनाक हादसे में एक अन्य मजदूर घायल हो गया था। गोवा के कनाकोना शहर में एक निर्माणाधीन इमारत गिरने से 7 लोगों की मोैेत हो गई थी और 40 से अधिक लोगों की इमारत के भितर दब गए थे। यह हादसा कनाकोना शहर में घटित हुआ था जो राजधानी पणजी से 80 किलोमीटर दूर था। यह हादसा दोपहर तीन बजे के करीब हुआ जब यह इमारत ढही उस समय 40 लोग काम कर रहे थे गत वर्ष महाराष्ट्र में एक इमारत के गिरने से 75 मजदूरों की असमय मौत गई थी और 60 मजदूर घायल हो गए थे आखिर कब तक मजदूर इमारतों में जमीदोज होते रहगें। यह बहुत ही दर्दनाक हादसा था जिसने एक साथ इतने लोगों को लील लिया था। भले ही प्रशासन मुआवजे का मरहम लगाता है मगर जो बेमौत मारे गये क्या वे लौट आएगें यह एक यक्ष प्रशन बनता जा रहा है। ऐसे हादसे पहले भी हो चुके है जिसमें सैंकड़ों लोग लापरवाही के कारण मारे जा चुके हैं। इमारतों के नीचे दबकर मजदूर काल का ग्रास बन रहे है। हादसों को देखकर रौगंटे खडे़ हो जाते हैं देश के राज्यों में चल रहे ईटों के भठठों में मजदूर मारे जा रहे हैं। मजदूरों के पसीने से ही ईटें पकती हैं मगर भठठा मालिक मजदूरों का शोषण कर रहे हैं मजदूर खून-पसीना बहाकर काम करते है। मगर बदले में मेहनताना नाममात्र दिया जाता है। मालिक मजदूरों के सिर पर करोड़ों रुपया कमा रहे है। आंकडे़ बताते है कि 2001 से 1 मई 2025 तक हजारों मजदूर मारे जा चुके हैं। इस घटना ने सवाल खड़े कर दिये हैं कि बार-बार हो रहे इन हादसों के कारण क्या है इस घटना ने यह प्रमाणित कर दिया है कि बीती घटनाओं से न तो सरकार ने सबक सिखा और न ही लोगों ने सीखा। पिछले कई सालों से ऐसे दर्दनाक हादसे हो रहे हैं सरकारें ऐसी घटनाओ के बाद मुआवजों की घोषणा करने तथा जांच के आदेश देने में देरी नहीं करती। देश में प्रतिदिन ऐसे मर्मातंक हादसे होते है मगर प्रकाश में नहीं आते। । इन हादसों में सैंकड़ों बच्चे अनाथ हो गए और कई मां-बहनों का सिदूर मिट गया और बहनों के भाई मारे गए। केन्द्र सरकार को इन हादसों के संदर्भ में छानबीन करवानी चाहिए तथा दोषियों को सजा देनी होगी। समय रहते इन घटनाओं को रोकने के लिए कारगर कदम उठाने होगें ताकि भविष्य में ऐसी दर्दनाक हादसों पर विराम लग सके। अगर अब भी सरकार ने लापरवाही बरती तो निदोर्ष लोग व मजदूर बेमौत मरते रहेगें। ऐसे हादसो पर रोक के लिए पुख्ता इंतजाम किए जाए ताकि भविष्य में ऐसे दर्दनाक की पुनरावृति न हो सके। बीते वर्ष में रायबरेली के उंचाहार में एटीपीसी संयत्र का बायलर फटने से 30 मजदूरों की दर्दनाक मौत हो गई थी तथा 100के लगभग घायल हो गए थे। 500 मैगावाट इकाई के बायलर में यह हादसा हुआ था उस समय 200 कामगार मौजूद थे सरकारों ने मृतकों को मुआवजे की घोषणा करती है मगर मुआवजा इसका हल नहीं है। एक ऐसा ही हादसा जयपुर के पास खातोलाई गांव में घटित हुआ था जहां टाªसफारमर फटने से 14 लोगों की मौत हो गई थी। इन हादसों ने औद्याोगिक क्षेत्रों में मजदूरों की सुरक्षा पर प्रशनचिन्ह लगा दिया है इन हादसों पर संज्ञान लेना होगा तथा मजदूरों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने होगें ताकि भविष्य में ऐसे हादसों पर रोक लग सके। गत वर्ष जम्मू के उधमपूर से 80 किलोमीटर दूर रामबन जिले के चंद्रकोट में जम्मू-कश्मीर हाईवे पर टनल कर्मचारियों की बैरक में आग लगने से दस श्रमिक जिंदा जल गए थे। गत वर्ष एक निर्माणाधिन प्रोजेक्ट की दीवार गिरने से चार मजदूर बेमौत मारे गए। यहां पर 11 मजदूर काम कर रहे थे कि अचानक दीवार गिर गई सात मजदूर तो भागकर बच गए मगर बेचारे चार मजदूर जिन्दा दफन हो गए थे। इन मजदूरों पर 42 मीटर लंबी दीवार गिर गई यह बहुत ही दुखद हादसा था। मुम्बई के अलीबाग में एक पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से 9 मजदूर मारे गए और 19 घायल हो गए थे। और दूसरी घटना में 24 फरवरी 2014 को कुल्लु के मणीकर्ण में करंट लगने से एक मजदूर की मौत हो गई थी जो के एक ठेकेदार के पास काम कर रहा था इस दर्दनाक हादसे में एक अन्य मजदूर घायल हो गया था। गोवा के कनाकोना शहर में फिर एक निर्माणाधीन इमारत गिरने से 7 लोगों की मोैेत हो गई थी। जब यह इमारत ढही उस समय 40 लोग काम कर रहे थे इस घटना ने सवाल खड़े कर दिये हैं कि बार-बार हो रहे इन हादसों के कारण क्या है इस घटना ने यह प्रमाणित कर दिया है कि बीती घटनाओं से न तो सरकार ने सबक सिखा और न ही लोगों ने सीखा। हांलाकि इसयह कोई पहला हादसा नहीं है पिछले कई सालों से ऐसे दर्दनाक हादसे हो रहे हैं गत वर्ष महाराष्ट्र में एक इमारत के गिरने से 75 मजदूरों की असमय मौत गई थी और 60 मजदूर घायल हो गए थे आखिर कब तक मजदूर इमारतों में जमीदोज होते रहगें। कुछ दिन पहले निर्माणाधीन यह इमारत ताश मे पतों की तरह ढह गई यहां ज्यादातर मजदूर ही रह रहे थे। यह बहुत ही दर्दनाक हादसा था जिसने एक साथ इतने लोगों को लील लिया। प्रशासन मुआवजे का मरहम लगाता है मगर जो बेमौत मारे गये क्या वे लौट आएगें यह एक यक्ष प्रशन बनता जा रहा है। सरकार ऐसी घटनाओ के बाद मुआवजों की घोषणा करने तथा जांच के आदेश देने में देरी नहीं करती लेकिन यदि पहले ही इन लोगों पर करवाई कर ली जाए तो ऐसे हादसे रुक सकते है मगर सरकारों की तन्द्रा तो हादसे के बाद ही टूटती है। आखिर कितने हादसों के बाद प्रशासन अपनी जिम्मेवारी निभायेगा इस प्रशन का जबाब सरकार को देना होगा। इमारतो का निर्माण करने वाले ठेकेदारों को सजा ए मौत देनी चाहिए जो इन हादसों के लिये प्रत्यक्ष रुप से जिम्मेवार है। जो चंद चादी के सिक्कों के की चाहत के लिए मजदूरों की जिन्दगियां ले रहे हैं ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ा संज्ञान लेना चाहिए जो मानव की जान लेने से भी नहीं हिचकचाते ऐसे जल्लादों को सरेआम फांसी देनी चाहिए। देश में प्रतिदिन ऐसे मर्मातंक हादसे होते है मगर प्रकाश में नहीं आते। केन्द्र सरकार को मजदूरों के हित में कदम उठाने होगें तभी ऐसे मजदूर दिवसों की सार्थकता होगी।
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