वर्तमान….
वर्तमान....
-लक्ष्मी नारायण मधुप-

कुछ भी तो सही नहीं हो रहा है। जबसे पिताजी रिटायर्ड हुए हैं उनकी आंखों में सूनापन-सा छा गया है। एक भयावह खालीपन-सा जिसमें अनगिनत प्रश्न हैं, उत्तर की तलाश में। दफ्तर में कलम घिस कर उंगली का पोर उबड़-खाबड़ हो गया है। लेकिन अब उंगलियां घिसाने का वक्त कहां रहा? दफ्तर का सारा स्टॉफ अब कम्प्यूटर पर काम करता है। उसने भी सीख लेना चाहा था। मैनेजमेंट ने कहा था- वर्मा साहब, रहने दीजिए इस उलझन वाले काम को… थोड़े दिनों बाद तो रिटायर्ड हो ही जाना है।.. जैसे-तैसे समय बिताइए…
जी… कहकर वह बगल में फाइल दबाए निकल आया। एक दिन मौका देखकर वह साहब के केबिन में घुस गया। फाइल बंद करके सिंह साहब ने पूछा-कोई काम है?… हाथ जोड़कर वर्मा लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोला-सर! आपको तो पता ही है अब थोड़े दिन रह गए हैं इस दफ्तर में… सोचा, अपनी जगह लड़के की सिफारिश करवा दूं… साहब एकटक देखते रहे। वर्मा आगे बोलते गए-लड़के ने बीए. किया है।.. इंगलिश अच्छी है।.. कई साल से अनइम्पलाइड है।..
वेरी सॉरी वर्मा जी… सिंह साहब के चेहरे पर उनके प्रति सहानुभूति थी -पहले आपने कहा नहीं… यहां तो महीने पहले से ही आपकी कुर्सी खाली हो, बैठने को उतावले हैं।..
ऑफिस में ऐसा होनहार एम्पलाई नहीं मिलेगा सर!…
आप कैसे कह सकते हैं? -किंचित मुस्कराकर सिंह साहब बोले-अभी तो उसका नौकरी से वास्ता ही नहीं पड़ा है।..
मेरा मतलब था सर… ईमानदार और मेहनती है।..अंग्रेजी का जानकार होना इस कंपनी की पहली शर्त है।..
फिलहाल तो मुश्किल है।.. हां, एप्लीकेशन भिजवा दें…
सर! कहीं तो एडजस्ट करवा दें
भई! इतना पढ़ा-लिखा है।.. ढंग की नौकरी चाहिए… एटेन्डेंट के लिए तो कम पढ़ा-लिखा चल जाता है।.. थोड़ा इंतजार करके देखें… कोई ढंग का पोस्ट निकल आएगा तो…
सर, अभी तक तो मेरी नौकरी है।.. पेंशन भी मिल जाएगी तो क्या होगा? दो लड़कियां अनब्याही है।.. एटेंडेंट ही रखवा दें।
मैं समझ सकता हूं आपकी परेशानी मि. वर्मा… लेकिन यूनियन वाले इस पोस्ट के लिए बीसी के कोटे से कैन्डीडेट उपलब्ध करवाते हैं।.. हम कुछ नहीं कर सकते… इंटरव्यू में योग्यता से ज्यादा आरक्षण को महत्व दिया जाता है।.. आप तो जानते ही हैं।..
तभी फोन की घंटी ने वार्तालाप को विराम लगाने के लिए मजबूर कर दिया। ओ. के. वर्मा साहब, माफी चाहता हूं… लेकिन निराश मत होइए… प्लीज, फिर बात करेंगे… सिंह साहब फोन के संग व्यस्त हो गए… चुपचाप सिर झुकाए वर्मा जी बाहर आ गए। लंच का समय हो गया था। आज टिफिन लाने का मन नहीं हुआ था। सोचा, चाय पीते हैं कैंटीन में जाकर। लेकिन वहां भी सवालों के तीर से वे आहत ही होंगे। तरह-तरह के सवाल। रिटायमेंट न हुआ कोई सजा हो गई। वैसे भी सजा ही है। आराम से जिंदगी कहां गुजरती है? दिन बोझ बन कर दिमाग को थका देता है।
घर में मायूसी ने कब्जा कर लिया। किसी बात पर हंसी आती है तो भी वह हंसी ज्यादा टिकाऊ नहीं होती… हंसने के बाद सबको ऐसा लगता है कोई गुनाह कर दिया है। हंसना ही नहीं चाहिए था। सब ऐरे-गेरे हंसने लग पड़े तो रोएगा कौन? गरीबी-रेखा के नीचे बिलबिलाते लोग नहीं रहेंगे तो सत्ता-सुख भोगने वाले किसका उद्धार करने का संकल्प लेंगे…? ठंडे दिमाग से सोचें… इस तबके को रहना ही होगा… गरीबों का होना राजनीति की खेती-बाड़ी की खाद है।.. देखिए लहलहा रही है राजनीति की फसल.. है कि कहीं?…
गांव में एक माध्यमिक पाठशाला में टीचर की नियुक्ति होनी थी। पंचायत प्रधान को प्रार्थनापत्र देने रजनीगंधा पहुंची तो पता चला यह पद भूतपूर्व सैनिक के कोटे के लिए सुरक्षित है।..रजनीगंधा जैसी कई लड़कियां फफक पड़ी…अब वहां वह फौजी भाई पढ़ाता है।..आलरेडी वह पेंशनर है।..कहीं एक कमाई नहीं, कहीं दो-दो…भई! किस्मत है।..बी.टी. या बी.एड. करके इस कोटे का उपयोग कर लेता है और बी.एड. करके घर बैठी लड़कियां बूढ़ी होती जाती हैं।..सरकार साक्षरता-दिवस मनाकर ढिंढोरा पिटवाती है और स्कूलों में अध्यापकों की नियुक्ति करने में दिलचस्पी नहीं…कई बार समाचार पढ़कर हैरानी होती है।..स्कूल है, बच्चे हैं लेकिन अध्यापक नहीं है।
बाप खांसता है बरामदे में। सोचता रहता है। किसी बनिया की दुकान में बही खाता लिख लूं, कम से कम राशन पानी ही सही, मिल तो जायेगा। महंगाई ने हर आदमी को यह सोचने को विवश कर दिया…कि सरकार नाम की कोई चीज है भी या नहीं। शक होने लगता है। उन्हें तो अपना ही लाभ-हानि दिखता है। महंगाई तो इनको ज्यादा लगी है। वेतन बढ़ा रहे हैं, भत्ता बढ़ा रहे हैं।..सुख-सुविधाएं भोग रहे हैं।..इतना खर्चा करते हैं, तौबा-तौबा!…पेट्रोल की कीमत आसमान छू ले…उनका क्या जाता है?…उनको गाड़ी तो चलेगी…बाप ने थूका। खांसी से या घृणा से। पता नहीं। मां पानी का गिलास लेकर जाती है। पानी गटकने के बाद पूछता है-कुलदीपक आया क्या?…मां भौंचक्का मुंह ताकती है। गला साफ कर कहता है-पढ़ा-लिखा बेकार बेटा…आ गया?
बेचारे को क्यों कोसना? अपनी तरफ से कोशिश में लगा रहता है।..मां ने सफाई पेश की।
कोशिश से कुछ नहीं होगा…रिश्वत से होगा, सिफारिश से होगा…जात से होगा…है कोई जान-पहचान मिनिस्टर लेवल का?…नहीं न?…झाड़ू मारने का काम भी नहीं मिलेगा…
कितना रिश्वत लेते हैं? मां ने कुछ सोच कर पूछा।
सारा पी.एफ. झोंक दूं तब भी कम पड़ेगा…रिश्वत, भ्रष्टाचार, चोरी, गुंडागर्दी, महंगाई, नशा-पानी…यह है माई इंडिया। कहते-कहते हांफने लगे वर्मा तो श्रीमती वर्मा ने साध्वी की तरह कहा-सब ठीक हो जाएगा…चिंता करने से सेहत का ही कबाड़ा होगा… चिढ़ कर वर्मा ने कहा-सेहत ने ही तो कबाड़ा कर दिया है।..कोई काम-धंधा करने लायक नहीं रहा…उम्र इतनी जल्दी सिर पर बैठ जाती है आकर…बिना कमाए घर चलाना गरीब-गुरबा की ही बात नहीं, भिखारी भी बिना भीख मांगे कुछ पा नहीं सकता, कुछ खा नहीं सकता। श्रीमती ने फिर सांत्वना के दो बोल बोल दिये-काहे को झिख-झिख करते रहते हो…चलने दो जैसा चलता है।..भगवान का धन्यवाद करो…सरकारी नौकरी थी वर्ना पेंशन से भी जाते…सारी उम्र गलाने पर कहीं तो कुछ भी नहीं मिलता…जो है ठीक है।..चुप रहो अब…
वर्मा आग बबूला हो गए-अरे! तब न जात था न पात…न सिफारिश की चिट्ठी चलती थी…मिनिस्टरों के इतने रिश्तेदार भी पैदा नहीं हुए थे।..हे भगवान! यह कैसा कालचक्र चला है।..टॉप करके घर में खाली हाथ बैठा है और तीस-चालीस नंबरिया सब पर भारी पड़ रहा है।..उसके गुस्से को देखकर वह चुप ही रही। ज्यादा बोलने से उनका गुस्सा कंट्रोल से बाहर हो जाता है। जानती है, काम-काज न रहने से आदमी चिड़चिड़ा हो जाता है। दोनों कुछ देर चुप रहे। टुकुर-टुकुर एक-दूसरे का मुंह ताकते रहे। मन के भावों को आंखों से समझते-बूझते रहे। वर्मा कुछ नार्मल हुए। इधर-उधर ताका। खोजती आंखों का आशय समझकर वर्मा की पत्नी बोली-अखबार बंद कर दिया है।..पढ़ लेना इधर-उधर कहीं से…राशन-पानी कितना महंगा होता जा रहा है।..आटे का रेट तो देखो…और दालें?
क्या खाएं क्या न खाएं… दाल-रोटी खाकर प्रभु का गुण गाने की बात संभव नहीं… वर्मा फिर उत्तेजित हो गया-अगर सरकार चलानी नहीं आती तो छोड़ दो…
तो तुम चलाओगे? उसकी श्रीमती सरलता से बोली।
सब गोरखधंधा इन्हीं का किया धराया है।.. बेघर को घर देंगे… बेकारों को नौकरी… दी क्या? महंगाई पर कंट्रोल कर देते तब भी फर्क नहीं पड़ता…
अपने तो तीन बेकार बैठे हैं।.. मकान मालिक घबराया-सा है।.. पेंशन वाला किराया दे पाएगा क्या, सोचता होगा… गरीब की कोई जिंदगी नहीं…
रजनी, सजनी और देव्या की मां, यहां तो किसान ही भूखा सोता है।.. प्रकृति की मार किसानों को ही सहनी पड़ती है।.. किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं, मगर सरकार दावा करती है यह किसानों का देश है।..
वर्मा की पत्नी सिर पर पल्लू रख कर बोली-बहुत बोलते हो… नेता जैसा पटर-पटर… इसी लाइन में लग गए होते तो सारा कुनबा पार हो जाता… बोलते-बोलते थक गए हो तो सूखी रोटी के संग पुदीने की चटनी धकिया लो गले से… अनमने मन से ना करके चलने को उठे तो पत्नी को संबोधित करके कहा-एक चक्कर लगा आता हूं चंद्रप्रकाश के यहां कोई जोगाड़ -वोगाड़ किया कि नहीं… भूत है साला गंवार… रोज टरकाता है।..
अब उससे क्या काम पड़ गया? कर्जा-वर्जा तो नहीं पकड़ रहे हो? आशंकित हो उठी वर्मा की पत्नी।
नौकरी में था तो एक धेला उधार नहीं मांगा कभी… पत्नी बोली-पेंशन वाले को भी कोई उधार देता है क्या? वर्मा झट बोले-अरे भाग्यवान! उधार नहीं काम की तलाश करने को कहा था।..
देव्या के लिए? मां की आंखें चमक उठीं।
उसके बाप के लिए… रिटायर्ड बाप के लिए… समझी?…
नौकरी करोगे बुढ़ापे में?
पेंशन से दाल-रोटी खा तो सकते हैं।.. या तो दिन को खा लो या रात को… एक टाइम… बाकी बिना टैक्स का खुली हवा और बावड़ी का पानी…नल में पानी कभी आता है, कभी नहीं…
चुप करो भी, वर्मा की पत्नी बोली-सरकार ने सुन लिया तो टैक्स लगा देगी… जोरदार ठहाका लगाया वर्मा ने। बहुत दिनों के बाद उसके चेहरे में सुबह की पहली धूप-सा उजालापन दिखा… उसे याद आया दफ्तर में हड़कंप मच गया था। टैक्स को लेकर। बातूनी मिश्रजी बोले थे-भाई साहब! यह सरल टैक्स है या जी का जंजाल? कौन हिसाब-किताब लिखता है इतना… हमें भी एकाउंटेंट रखना पड़ेगा?…
समझ नहीं आ रहा है, यह सब क्या हो रहा है।.. महंगाई इतनी है, बचता तो कुछ है नहीं…नौकरी के सिवा कोई ठोस आमदनी का जरिया नहीं… सेक्शन आॅफिसर बाॅस के कमरे में जाने से पहले बोले। उनकी बात सुनकर बतरा बोले-आपका यह हाल है तो हमारा भगवान के भरोसे… जै राम जी की… लाठी ठुकवाते वर्मा जी दफ्तर के ख्याल को मस्तिष्क से निकाल बाहर करने की चेष्टा में मंद-मंद मुस्कुरा दिए। थोड़ी देर मे सांझ। धुंधलका घना हो गया। मक्खियों ने दिन पाली समाप्त कर दी और मच्छरों ने रात पाली का काम संभाल लिया। वर्मा बुदबुदाते आ गए-सांझ होते ही आंखों की रोशनी कम हो जाती है।.. सोचा था मिल आऊं उस कम्बख्त से… अब देर हो गयी… डर लगता है कहीं मोटर साइिकल वाला धक्का न मार दे… साठ हजार की गाड़ी में बैठ चलते-चलते मोबाइल पर बातें करेगा तो आगे आदमी है या जानवर उस आंख बोले अंधे को दिखाई देगा भला…
दिखाई नहीं देता तो चश्मा का नंबर बदल लो… पत्नी ने एक बार परामर्श दिया था। गुस्से से ताका था। वर्मा थककर बरामदे में पसर गए। मच्छरों ने डंक मारा तो बौखला गए-चूस लो गरीब का खून… सभी चूस रहे हैं।.. क्या फर्क पड़ेगा… पत्नी आकर बोली-अब अंदर चलो… रहा-सहा खून भी मच्छरों को चुसा दोगे तो पेंशन लेने जाना भी मुश्किल पड़ जाएगा… वर्मा उठ कर अंदर चल दिए। पुराने और बुढ़े हुए सोफे पर धंस गए। इतना लचर हो गया है कि स्प्रिंग की चुभन साफ चुभती है। कपड़ों का बनाया मोटा गद्दां भी काम नहीं देता। मरम्मत कराना आसान है क्या? एक दिन तो भूखा रहा जा सकता है, महीने भर भूखा रह पाना मुिश्कल है। महीने भर का राशन-पानी तो उसे मरम्मत करने में लग जाएगा। वह तो रिटायर्ड हो गया। इसे भी रिटायर्ड हो जाना चाहिए। मतलब इसे फेंक देना होगा। तब क्या जमीन पर बैठे। नया खरीदना बहुत मुश्किल होगा। अभी भी वर्मा बीडब्ल्यू टीवी पर डटे हैं।
रात ने पूरी तरह पांव पसार दिए। रजनी कह रही थी सजनी से-अब इंतजार करने से कोई फायदा नहीं-मैं कुछ भी करने को तैयार हूं…
मसलन… सजनी को लगा कि उसकी बहन कुछ अनुिचत कदम उठाने जा रही है।
अब कैबरे डांसर तो बन नहीं सकती… वहां भी गोलमाल है।.. मसलन डिपार्टमेंटल सेल्सगर्ल… मसलन डोर टू डोर सेल्सगर्ल… मसलन पीसीओ में…
पढ़ाई-लिखाई से यहां क्या ताल्लुक… और चारा भी क्या है? काल सेंटर में ट्राई करो न दीदी…
गुड़गांव में एक सहेली लगी है।.. काल सेंटर में है।.. ट्राई करती हूं… तू क्या करेगी?…
एक प्राइवेट स्कूल में जाॅब तो है।.. स्कूल मालिक बड़ा भ्रष्ट है।.. टार्चर करता है।.. शोषण भी करेगा… रजिस्टर में लिखा कुछ, दिया कुछ…
काल सेंटर में पैसा तो खूब है।.. चलो देखते हैं- सो जा… अभी बत्ती बुझाने की देर थी कि बाहर सीटी की आवाज गूंज उठी… शायद चोर-पुलिस का खेल चल रहा था।.. बूटों की आवाज दूर चली गयी… और सीटी का स्वर भी दूर होता हुआ धीमा पड़ने लगा। तभी खड़ाक से दरवाजा खुला। बाप ने जानबूझकर पूछा-कौन है? बहनें फुसफुसायीं-दिव्या है।.. इतनी रात गए क्या करता फिरता है?…
मां पूछती है-कुछ खाया-पिया कि नहीं?…
भूख नहीं है,-दिव्या अंदर घुसा। उसके चेहरे पर पसीने की हल्की बूंदें और सांसों का उतार-चढ़ाव था। मां उसके पीछे-पीछे आयी। अचानक उसके हाथों से कुछ पैकेट नीचे गिर पड़ा। मां ने हैरानी से कहा-चीनी लाया था बेटा तो पकड़ा देता… फट जाता लिफाफा तो नुकसान हो जाता…
दिव्या मां का मुंह उल्लू की तरह ताकने लगा।
तुम इतना घबराए क्यों हो? मां शंकित थी। दोनों बहनों को लगा भूचाल आ गया है। बिस्तर हिलने लगा है। बाप के दिल की धड़कन तेज हो गयी। दिव्या जमीन पर उकड़ूं बैठकर रोने लगा।
पुलिस के बूटों की तेज ध्वनि फिर वापस आ रही थी… और एक मौत-सा सन्नाटा सबको थर्रा गया। लगा यहां अभी-अभी एक शक्तिशाली बम फटा है और सबके चिथड़े-चिथड़े हो गए हैं।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट