भाई दूज (3 नवंबर) पर विशेष: परमात्मा की याद में टिके रहने को बहन लगाती है टीका!

भाई दूज (3 नवंबर) पर विशेष: परमात्मा की याद में टिके रहने को बहन लगाती है टीका!

-डॉ. श्रीगोपाल नारसन-

भाई बहन के प्यार का
प्रतीक है भैय्या दूज
पवित्र सोच का पर्याय है
सम्बंध होते मजबूत
बहन तिलक करें भाई को
मांगे रब से खैर
उसका भाई खुशहाल रहे
न हो किसी से बैर
भाई भी बहन की खातिर
सर्वस्व न्योछावर को आतुर
बहन सदा रहे सुखी
दुख हो जाये सब काफूर
आत्म स्वरूप में रहने को
तिलक करती है बहना
पांचो विकारो से मुक्ति मिले
देवत्व सुख हो गहना।
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि यानी भाई दूज की तिथि 2 नवंबर को रात 8:21बजे से शुरू हो जाएगी और इसका समापन 3 नवंबर को रात 10:05 बजे होगा। ऐसे में उदिया तिथि के अनुसार भाई दूज का त्योहार 3 नवंबर को ही मनाया जा रहा है।भाई दूज पर 3 नवंबर को दोपहर 01 बजकर 10 मिनट से दोपहर 03 बजकर 22 मिनट तक तिलक करने का शुभ मुहूर्त बन रहा है। इस दिन 2 घंटे और 12 मिनट का टीका करने का शुभ मुहूर्त है।
भैया दूज जिसे भाई टीका, यम द्वितीया भी कहा जाता है। भाई दूज के दिन भाई को तिलक लगाने का सबसे अधिक महत्व होता है। इस दिन बहन भाई का टीका करती हैं ,ताकि भाई परमात्मा की याद में रहे और सर्वगुण सम्पन्न हो,बहन भाई की लंबी उम्र की कामना भी करती हैं। ये प्रथा सदियों पुरानी है। कहा जाता है कि इस दिन यदि विधि-विधान से पूजा की जाए, तो जीवन भर यम का भय नहीं सताता और भाई-बहनों की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती। भाई दूज के दिन तिलक लगाने से भाई को लंबी उम्र के साथ सुख संपन्नता का आशीर्वाद भी मिलता है।मान्यता है कि इस दिन यम अपनी बहन यमुना के घर भोजन करने गए थे। ऐसे में जो बहने शादी-शुदा हैं उनके भाईयों को अपनी बहन के घर जाना चाहिए। कुंवारी लड़कियां घर पर ही भाई का तिलक करें।भाई दूज के दिन सबसे पहले भगवान गणेश का ध्यान करते हुए पूजा अवश्य करनी चाहिए। वहीं भाई का तिलक करने के लिए पहले थाली तैयार करें उसमें रोली, अक्षत और गोला रखें तत्पश्चात भाई का तिलक करें और गोला भाई को दे दें। फिर प्रेमपूर्वक भाई को मनपसंद का भोजन करवाएं। उसके बाद भाईयों को भी अपनी बहन से आशीर्वाद लेना चाहिए और उन्हें भेंट स्वरूप कुछ उपहार देना चाहिए। भाई दूज के पर्व को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि ये पर्व भाइयों और बहनों के बीच के समर्पण का प्रतीक है। भाई दूज बहनें अपने भाई के माथे पर हल्दी और रोली का तिलक लगाती हैं। ऐसी मान्यता है कि यदि भाई बहन यमुना नदी के किनारे बैठकर भोजन करते हैं तो जीवन में समृद्धि आती है। हल्दौर के गांव चूड़ियाखेड़ा के जंगल में भाई-बहन का एक प्राचीन मंदिर आस्था का प्रतीक है। भैयादूज के अवसर पर मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। भाई-बहन मंदिर में देव रूपी भाई-बहन के सम्मुख माथा टेक कर एक-दूसरे के जीवन की मंगल कामना करते हैं।बताते है कि सतयुग में एक भाई अपनी बहन को उसकी ससुराल से पैदल लेकर इस स्थान से होकर अपने घर लौट रहा था, इसी दौरान कुछ डाकुओं ने उसे रोक लिया और बहन के साथ बदसलूकी और अभद्र व्यवहार करना शुरू कर दिया,उन्होंने भाई को पिटाई भी की। इसी दौरान भाई-बहन ने डाकुओं से अपनी रक्षा के लिए ईश्वर से प्रार्थना की और स्वयं को पाषाण बनाने की मांग की। उसी दौरान भाई-बहन पत्थर की प्रतिमा के रूप में परिवर्तित हो गए और डाकू की प्रताड़ना से बच गए। मंदिर में भाई-बहन की पत्थर की प्रतिमा देवी-देवताओं के रूप में आज भी विराजमान है।इस मंदिर की मान्यता है कि जो भाई बहन भैयादूज पर यहां पूजा अर्चना करते है उनकी मनोकामना पूरी होती है।वही बिहार के सीवान में भी भाई बहन का मंदिर आस्था का केंद्र है।भैयादूज की कहानी भी है,सूर्य भगवान की स्त्री का नाम संज्ञादेवी था, इनकी दो संताने पुत्र यमराज तथा कन्या यमुना थी. संज्ञा रानी पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को न सह पाने के कारण उत्तरी धुर्व परदेश की छाया में जाकर रहने लगी। उसी छाया से ताप्ति नही तथा शनिचर का जन्म हुआ। इसी छाया से अश्विनी कुमारों का भी जन्म बतलाया जाता है जो कि देवताओं के वैद्य माने जाते हैं।
इधर छाया का यम तथा यमुना से विमाता सा व्यवहार होने लगा, इससे खिन्न होकर यम ने अपनी एक नई नगरी यमपुरी को बसाया, यमपुरी में पापियों को दंड देने का कार्य संपादित करते भाई को देखकर यमुना जी गो लोक में चली गई जो उस समय कृष्णावतार की भूमि थी।
बहुत समय व्यतीत हो जाने पर एक दिन सहसा यम को अपनी बहिन की याद आई, उन्होंने दूतों को भेजकर यमुना जी को बहुत खोजवाया, मगर मिल न सकी। फिर यमराज स्वयं ही गोलोक गये जहा विश्राम घाट पर यमुना जी से भेट हुई। भाई को देखते ही यमुना ने हर्ष विभोर से स्वागत सत्कार किया और उन्हें भोजन कराया, इससे प्रसन्न हो यमराज ने वर मांगने को कहा।
यमुना ने कहा- हे भैया, मैं आपसे यह वरदान माँगना चाहती हूँ कि इस दिन मेरे जल में स्नान करने वाली नर नारी यमपुरी में न जाए।
प्रश्न बड़ा कठिन था, यम के ऐसे वर से यमपुरी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता। भाई को असमंजस में देखकर यमुना बोली- आप चिंता न करे।मुझे यह वरदान दे कि जो लोग आज यानि भैया दूज के दिन अपनी बहिन के घर जाकर भोजन करके, इस मथुरा नगरी स्थित विश्राम घाट पर स्नान करे, वह तुम्हारे लोक को न जाए।इसे यमराज ने स्वीकार कर लिया। इस दिन भाई, बहन के घर जाकर भोजन करता तो सौभाग्यशाली माना जाता है।
(लेखक आध्यात्मिक चिंतक व वरिष्ठ साहित्यकार है)

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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