कविता : गोबर संवाद”
कविता : गोबर संवाद”
-प्रियंका सौरभ-

कभी रिसर्च की चुप्पी में,
दीवारों पर गोबर उतरा।
तो कभी प्रतिरोध की गर्मी में,
वही गोबर उल्टा फेरा।
मैडम बोलीं — ‘ये संस्कृति है’,
छात्र बोले — ‘ये राजनीति!’
एसी हटाओ, मिट्टी लगाओ,
सच्ची रिसर्च की चलो नीति।
डूसू का प्रेसिडेंट आया,
और हाथ में बाल्टी लाई।
क्लासरूम का उल्टा पाठ,
प्रिंसिपल पर छाया भाई।
ज्ञान की बात गई किनारे,
अब गोबर से फैले अर्थ।
कभी प्रयोगशाला बना कॉलेज,
कभी प्रतिकार का स्थल यह पर्थ।
अब कौन सही, कौन गलत —
ये बहस बेमानी लगती है।
जब शिक्षा भी ट्रेंड में बिके,
तो विद्रोह भी कहानी लगती है।
“शोध अगर सत्ता को चिढ़ाए,
तो विद्रोह भी शोध बन जाएगा।
कभी दीवारों पर पोता जाएगा,
कभी कुर्सियों पर बैठाया जाएगा।”
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट