कविता : एक नाजुक कली..
कविता : एक नाजुक कली..

-कविता-
लमचूला, उत्तराखंड
आशाओं में बढ़ रही वो नाजुक कली,
क्यों है वह किसी से डरी हुई?
सपने सजा कर आई है वो,
आखिर क्यों है परायों से घिरी हुई?
इस संसार में क्यों है वह खिली हुई?
क्यों रहती वह हर वक्त मुरझाई?
आस लगा कर अभी भी बैठी है वो,
मगर आंखों से आंसू बहाती है वो,
आज भी है वो एक नाजुक सी कली,
अपनो के इंतज़ार में बैठी है वो भली,
इस दुनिया में कौन है अपना और पराया,
इस भेद को नहीं जानती वो नाजुक कली।।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट