विनोद दुआ: पत्रकारिता के एक युग का अंत -डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट-

विनोद दुआ: पत्रकारिता के एक युग का अंत -डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट-

एनडीटीवी पर ‘ख़बरदार इंडिया’ ‘विनोद दुआ लाइव’ ‘ज़ायका इंडिया का’ जैसे चर्चित कार्यक्रमो के प्रस्तोता विनोद दुआ ने दूरदर्शन पर ‘जनवाणी’ से भी पहचान बनाई थी। दूरदर्शन पर चुनाव विश्लेषण के लिए उन्हें खास प्रसिद्धि मिली। कुछ समय पहले उन्हें कोरोना संक्रमण हुआ था।उनकी बेटी मल्लिका दुआ ने पिता के निधन की जानकारी दी,तो पूरा देश स्तब्ध रह गया। विनोद दुआ को डॉक्टरों की सलाह पर पिछले दिनों दिल्ली के एक हास्पिटल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था।मल्लिका ने कहा, हमारे निर्भय और असाधारण पिता हमारे बीच नहीं

रहे।कोरोना वायरस से संक्रमित होने के चलते ही इसी साल जून माह में उन्होंने अपनी पत्नी रेडियोलॉजिस्ट पद्मावती दुआ को खो दिया था। उन्होंने एक अद्वितीय जीवन जिया, दिल्ली की शरणार्थी कॉलोनी से अपने कैरियर की शुरुआत कर वे 42 सालों तक श्रेष्ठ पत्रकारिता के शिखर तक पहुंचे और हमेशा सच के साथ खड़े रहे। देश में कोरोना की दूसरी लहर के चरम पर रहने के दौरान विनोद दुआ और उनकी पत्नी गुरुग्राम के एक अस्पताल में भर्ती कराए गए थे। उनकी सेहत तब से खराब थी और उन्हें बार-बार अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता था और अंततः वे जीवन की जंग हार गए।उस समय जब टेलीविजन की दुनिया दूरदर्शन तक सिमटी हुई थी और टेलीविजन पत्रकारिता का कही नाम तक नही

था उस समय विनोद दुआ एक नक्षत्र की तरह उभरे थे। वे साढ़े तीन दशकों तक किसी मीडिया जगत के बीच जगमगाते रहे।दूरदर्शन पर उनकी शुरुआत ग़ैर समाचार कार्यक्रमों की ऐंकरिंग से हुई थी, मगर बाद में वे समाचार आधारित कार्यक्रमों की दुनिया में दाखिल हुए और छा गए। चुनाव परिणामों के जीवंत विश्लेषण ने उनकी शोहरत को आसमान तक पहुँचा दिया था। प्रणय रॉय के साथ उनकी जोड़ी ने पूरे भारत को सम्मोहित कर लिया था। विनोद दुआ का अपना विशिष्ट अंदाज़ था। इसमें उनका बेलागपन शामिल था।जनवाणी कार्यक्रम में वे मंत्रियों से जिस तरह से सवाल पूछते या टिप्पणियाँ करते थे, उसकी कल्पना करना उस ज़माने में एक असंभव सी बात हुआ करती थी।

दूरदर्शन में कोई ऐंकर किसी मंत्री को यह कहे कि उनके कामकाज के आधार पर वे दस में से केवल तीन अंक देते हैं तो ये मंत्री के लिए बहुत ही शर्मनाक बात थी। लेकिन विनोद दुआ में ऐसा कहने का साहस था। इसीलिए मंत्रियों ने प्रधानमंत्री से इसकी शिकायत करके उनके कार्यक्रम को बंद करने के लिए दबाव भी बनाया था, मगर मन्त्रीगण कामयाब नहीं हुए थे,जो विनोद दुआ के बड़े प्रभाव का प्रमाण था।विनोद दुआ ने अपना यह अंदाज़ जीवनपर्यंत नहीं छोड़ा।

लिंक पर क्लिक कर पढ़िए ”दीदार ए हिन्द” की रिपोर्ट

जब 19 साल के नौजवान ने बलराज को दिया अभिनय का मंत्र -अजय कुमार शर्मा-

आज के दौर में जब अधिकांश पत्रकार और ऐंकर सत्ता की चापलूसी करते हैं, विनोद दुआ नाम का यह व्यक्ति सत्ता से टकराने में भी कभी नहीं घबराया।उन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि सत्ता उनके साथ क्या करेगी। सत्तारूढ़ दल ने उनको राजद्रोह के मामले में फँसाने की कोशिश की गई, मगर उन्होंने ल़ड़ाई लड़ी और सुप्रीम कोर्ट से जीत भी हासिल की।उनका मुकदमा मीडिया के लिए भी एक राहत साबित हुआ।

हिंदी और अँग्रेज़ी दोनों भाषाओं पर दुआ साहब की अच्छीपकड़ थी।प्रणय रॉय के साथ चुनाव कार्यक्रमों में उनकी प्रतिभा पूरे देश ने देखी और उसे सराहा भी गया। त्वरित अनुवाद की क्षमता ने उनकी ऐंकरिंग को ऊंचाई तक पहुँचा दिया था।

देश की पहली हिंदी साप्ताहिक वीडियो पत्रिका परख की उनकी लोकप्रियता का प्रमाण थी। इस पत्रिका के वे न केवल ऐंकर थे बल्कि निर्माता-निर्देशक भी थे। इसके लिए उन्होंने देश भर में संवाददाताओं का जाल बिछाया और विविध सामग्री का संयोजन करके पूरे देश को मुरीद बना लिया। वे अपने सहयोगियों को भरपूर आज़ादी देते थे। वे ज़ी टीवी के लिए एक कार्यक्रम चक्रव्यूह करते थे।ये एक स्टूडियो आधारित टॉक शो था, जिसमें ऑडिएंस के साथ किसी मौज़ू सामाजिक मसले पर चर्चा की जाती थी। इस शो में विनोद दुआ के व्यक्तित्व और ऐंकरिंग का एक और रूप देखा जा सकता था।

विनोद दुआ की पत्रकारीय समझ सहारा टीवी पर उनके द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला कार्यक्रम प्रतिदिन भी कहा जा सकता है।इस कार्यक्रम में वे पत्रकारों के साथ उस दिन के अख़बारों में प्रकाशित ख़बरों की समीक्षा करते थे। इस कार्यक्रम में उनकी भूमिका को देखकर कोई कह ही नहीं सकता था कि ऐंकर पत्रकार नहीं है।

विनोद दुआ टीवी पत्रकारिता की पहली पीढ़ी के ऐंकर थे। उन्होंने उस दौर में ऐंकरिंग शुरू की थी, जब लाइव कवरेज न के बराबर होता था।1974 में युवा मंच और 1981 में आपके लिए जैसे कार्यक्रम प्रसारित होते थे। सन 1985 में समाचार आधारित चुनाव विश्लेषण लाइव प्रसारण शुरू हुआ और उन्होंने अपनी महारत साबित कर दी। जब डिजिटल पत्रकारिता का दौर आया तो वे बड़ी आसानी से वहाँ भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाने में कामयाब रहे।

लिंक पर क्लिक कर पढ़िए ”दीदार ए हिन्द” की रिपोर्ट

बहुआयामी गरीबी की चुनौती

Related Articles

Back to top button