वंदे मातरम गाने से इनकार करने पर सियासत गर्म

बिहार में वंदे मातरम गाने से इनकार करने पर सियासत गर्म

पटना, 06 दिसंबर। बिहार विधानसभा में एआईएमआईएम के विधायक अख्तरूल इमाम के वंदे मातरम के गाने से इंकार किए जाने के बाद राज्य की राजनीति गर्म हो गई है। बिहार में सत्ताधारी गठबंधन में शामिल जदयू के नेता उपेंद्र कुशवाहा को जहां एआईएमआईएम के विधायक को साथ मिला है, वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इसे नकली सेकुलरों के लिए फैशन बता रही है।

दरअसल, इस मुद्दे की शुरूआत सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के विधायकों ने बिहार विधानसभा की शीतकालीन सत्र के समापन पर वंदे मातरम गाने से इंकार करने से हुई। विधायक अख्तरूल इमाम ने कहा कि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।

इसके बाद बिहार में सियासत प्रारंभ हो गई। इस बीच, जदयू के नेता उपेद्र कुषवाहा का एआईएमआईएम विधायक को साथ मिल गया। कुशवाहा ने कहा कि देश के किसी नागरिक को राष्ट्र गीत गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। यह धारणा भी गलत है कि राष्ट्र गीत गाने वाले लोग ही देशभक्त हैं।

उन्होंने तो यहां तक कहा, पढ़े लिखे लोगों को छोड़ दें तो गांवों में रहने वाली बड़ी आबादी को राष्ट्र गीत याद नहीं है। वे नहीं गा सकते। इसका मतलब यह नहीं है कि गांव के लोग देशभक्त नहीं हैं।

लिंक पर क्लिक कर पढ़िए ”दीदार ए हिन्द” की रिपोर्ट

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उन्होंने कहा कि यह बेकार का मामला है। इधर, भाजपा के उपाध्यक्ष राजीव रंजन ने वंदे मातरम पर चल रही सियासत पर बिफरते हुए कहा कि बात-बात में वंदे मातरम और जन गण मन का अपमान आजकल नकली सेकुलरों के लिए फैशन हो गया है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान इस देश की अस्मिता का प्रतीक है। देश के टुकड़े करने का ख्वाब देखने वाले कुछ जिन्नावादी और जेहादी मानसिकता के लोगों को इससे एलर्जी होना स्वाभाविक है।

रंजन ने कहा कि राष्ट्रगान का अपमान उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों के अपमान है, जिन्होंने इससे प्रेरणा लेकर अपने प्राण देश पर कुर्बान कर दिए। उन्होंने बिना किसी के नाम लिए कहा कि चंद अराजक वोटों के लिए ऐसे लोगों का बचाव करने वाले एक नेताजी के मुताबिक राष्ट्रप्रेम दिखाने के लिए राष्ट्रगान गाना जरूरी नहीं है।

भाजपा नेता ने सवाल करते हुए कहा कि इन नेताजी को बताना चाहिए कि जनसेवा के लिए राजनीति में आना और कुर्सी पकड़ना भी जरूरी नहीं है तो वह राजनीति छोड़ क्यों नहीं देते?

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