बाल कहानी : वचन
बाल कहानी : वचन
-सार्थक देवांगन-
एक गांव में एक लड़का रहता था। उसका नाम श्याम था। वह पढ़ने में अच्छा नहीं था। फिर भी वह चाहता था कि वैज्ञानिक बने लेकिन वह अपने कक्षा में हमेशा पीछे रहता था। एक बार उसने रात को सपने में देखा कि वह वैज्ञानिक बन गया। सुबह उठते ही अपने मित्रों को जैसे ही बताया, तो वे सब हंसने लगे और मजाक उड़ाते कहने लगे कि तू बस सपने देख, पढ़ने का काम तेरा नहीं है। वह बहुत रोने लगा। दूसरे दिन उसका परीक्षा परिणाम आने वाला था। वह रात भर बेचैन रहा, ठीक से सो नहीं सका। आखिर वही हुआ जिसका। वह फेल हो गया। दोस्तों को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह गया। उसकी मां ने उसे बहुत समझाया। इस बार उसने बहुत अच्छा करने की ठान ली। उसे अपने मेहनत पर भरोसा था कि वह एक दिन सफल इंसान बनेगा और गांव का नाम रोशन करेगा। दूसरी तरफ उसके पिताजी को उससे बहुत उम्मीद नहीं थी इसलिए पिताजी ने उसके लिए दुकान खोलने का निर्णय ले लिया और उसके लिये पैसे जमा करना शुरू कर दिया।
वह इसलिए वैज्ञानिक बनना चाहता था क्योंकि उसकी मां बीमार रहती थी। वह चल नहीं पाती थी, ना कुछ काम कर पाती थी। वह हरेक दिन अपनी मां के बारे में सोचता था। वह किसी भी तरह अपनी मां के तकलीफ को दूर करना चाहता था। एक तरफ पढ़ाई का बोझ, दूसरी तरफ मां को फिर से खड़ा कर देने की जिद थी। वह कोई ऐसा गजेट बनाना चाहता था जो उसकी मां के काम में मदद करे। एक तरफ उसकी मां की परेशानी दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी दूसरी ओर श्याम की चिंता। वह मेहनत तो काफी कर रहा था पर पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करने के लिए नहीं बल्कि कुछ नया कर गुजरने के लिए। एक दिन उसे रोबोट और उसके कार्यप्रणाली के संबंध में जानकारी देने वाली किताब मिल गई। उसने अपनी मेहनत से रोबोट बना लिया। उसकी मां की काम करने की तकलीफ तो दूर हो गई परंतु, शारीरिक समस्या कम नहीं हुई।
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परमाणु हथियारों का खात्मा
वह अभी भी परेशान था, वह अपनी मां की शारीरिक समस्या दूर करने के लिए दिन भर सोचता रहता, लेकिन वह कुछ कर नहीं पा रहा था दूसरी ओर उसकी मां की परेशानी और बढ़ती जा रही थी। वह देखकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था और बेचैन रहता था। मां दिनोंदिन कमजोर होती जा रही थी। एक दिन उसकी मां ने श्याम को अपने पास बुलाकर कहा-बेटा, अब तू बड़ा हो गया है, अपने पैरों पर खड़ा होने का दिन आ गया है, तू जल्दी से अपने पैरों पर खड़ा हो जा ताकि मैं सुकून से मर सकूं। मां श्याम को पकड़कर रोने लगी। श्याम ने कहा-मां मैं, जब तक तुम्हें अपने पैर पर खड़ा नहीं कर लेता तब तक, और कुछ सोच नहीं सकता। मां ने बताया-अब मेरे जाने के दिन बहुत करीब है बेटा, तुम अपनी मां को कुछ देना चाहते हो तो सिर्फ यही करो कि, तुम कोई ऐसा गजेट बना दो ताकि, कोई तुम्हारी मां की तरह परेशान होकर न मरे।
श्याम के हां कहते ही, मां ने दम तोड़ दिया। श्याम के पिता ने श्याम को काम धंधा करने के लिए खूब समझाया, किंतु श्याम मां को दिये वचन को पूरा करने के लिये जी जान से जुट गया। उसने खूब पढ़ाई की, डाक्टर बन गया और हड्डी रोग पर रिसर्च करने लगा। उसने पैर की हड्डी में होने वाली तकलीफों के कारणों को पता लगाया। इस तरह की बीमारी से बचने का उपाय खोज, किताबें लिख डाली। उसकी किताबों ने मेडिकल क्षेत्र में खूब नाम कमाया। उसके खोज के कारण दुनिया में पैरों की तकलीफ की बीमारी कम होती चली गई। उसे नोबल पुरस्कार मिला। पुरस्कार लेते समय किसी ने उसकी निजी जिंदगी के बारे में पूछ दिया। उसकी आंखों के सामने मां आ गई, उसकी आंख से आंसू बहने लगे। वह अपनी मां को दिये वचन को पूरा करने में कामयाब हो गया। दुनिया के कई लोग उसकी वजह से सफलता पूर्वक खड़े थे। उसे पुरस्कार से अधिक इसी बात की खुशी थी।
(रचनाकार से साभार प्रकाशित)
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