परमबीर सिंह का पता चलने तक कोई सुरक्षा, कोई सुनवाई नहीं : उच्चतम न्यायालय

परमबीर सिंह का पता चलने तक कोई सुरक्षा, कोई सुनवाई नहीं : उच्चतम न्यायालय

ई दिल्ली, 18 नवंबर। उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह से अपना पता बताने को कहा और साथ ही कहा कि ‘‘जब तक हमें यह नहीं पता चल जाता कि आप कहां हैं तब तक कोई सुरक्षा नहीं दी जाएगी, कोई सुनवाई नहीं होगी।’’

न्यायालय ने उनके वकील को सिंह का पता बताने के लिए कहा और मामले पर अगली सुनवाई के लिए 22 नवंबर की तारीख तय कर दी। न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि सुरक्षा देने का अनुरोध करने वाली उनकी याचिका पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए दायर की गयी है।

पीठ ने कहा, ‘‘आप सुरक्षात्मक आदेश देने का अनुरोध कर रहे हैं लेकिन कोई नहीं जानता कि आप कहां हैं। मान लीजिए आप विदेश में बैठे हैं और पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए कानूनी सहारा ले रहे हैं तो क्या होगा। अगर ऐसा है, तो अदालत यदि आपके पक्ष में फैसला देती है तभी आप भारत आयेंगे होगा, हम नहीं जानते कि आपके दिमाग में क्या चल रहा है। जब तक हमें यह पता नहीं चल जाता कि आप कहां हैं, तब तक कोई सुरक्षा नहीं, कोई सुनवाई नहीं होगी।’’

न्यायालय ने कहा, ‘‘याचिका पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए दायर की गयी है। आप कहां हैं। आप देश में हैं या देश से बाहर? आप कहां हैं। पहले जब हमें पता चलेगा कि आप कहां हैं तभी हम आगे कुछ करेंगे?’’

मुंबई में एक मजिस्ट्रेट अदालत ने बुधवार को सिंह को उनके खिलाफ दर्ज वसूली मामले में ‘‘भगोड़ा अपराधी’’ घोषित किया। सिंह इस साल मई में आखिरी बार कार्यालय आए थे जिसके बाद वह अवकाश पर चले गए। राज्य पुलिस ने बंबई उच्च न्यायालय को पिछले महीने बताया कि सिंह के बारे में उसके पास कोई जानकारी नहीं है।

अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर अदालत के फैसले के विरोध में अपील कर सकता है एनजीओ: न्यायालय नई दिल्ली, 18 नवंबर (वेब वार्ता)। उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को एक गैर सरकारी संगठन को दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश के विरुद्ध अपील दायर करने की अनुमति दे दी। इस आदेश में उच्च न्यायालय ने आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना को सेवानिवृत्ति की तारीख 31 जुलाई से चार दिन पहले दिल्ली पुलिस आयुक्त बनाने के केन्द्र के फैसले को बरकरा रखा था।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि गैर सरकारी संगठन की याचिका और अपील पर 26 नवंबर को सुनवाई होगी। गैर सरकारी संगठन ‘सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन’ (सीपीआईएल) की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने पीठ से कहा कि अस्थाना की नियुक्ति के विरोध में उसकी याचिका न्यायालय ने 25 अगस्त को लंबित रखी थी और उच्च न्यायालय से इसी प्रकार की एक याचिका पर जल्दी फैसला लेने का आग्रह किया था।

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भूषण ने कहा, “अब जब उच्च न्यायालय ने याचिका पर फैसला दे दिया है तो इस शीर्ष अदालत को इसका लाभ लेना चाहिए। मैं न्यायालय से अनुरोध करता हूं कि वह हमारी याचिका पर फैसला दे जो अस्थाना की नियुक्ति को चुनौती देती है।”

केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तकनीकी आधार पर प्रारंभिक आपत्ति दर्ज कराई कि यह एक रिट याचिका है और अगर भूषण उच्च न्यायालय के आदेश से असंतुष्ट हैं तो उन्हें इस शीर्ष अदालत की अनुमति से एक अपील दायर करनी चाहिए।

पीठ ने कहा कि पूर्व में ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें यदि कोई पक्ष उच्च न्यायालय से असंतुष्ट है तो वह न्यायालय की अनुमति से अपील दायर कर सकता है।

पीठ ने कहा, ‘‘हम आपको अपील दायर करने की छूट प्रदान करते हैं और रिट याचिका तथा अपील दोनों पर एक साथ विचार करके फैसला करेंगे क्योंकि हमने ही 25 अगस्त के आदेश में आपको हस्तक्षेप करने वाले के रूप में उच्च न्यायालय जाने के लिए कहा था।’’

अस्थाना की ओर से वरिष्ठ अधिवक्त मुकुल रोहतगी ने कहा कि अगर न्यायालय गैर सरकारी संगठन को अपील दायर करने की अनुमति दे रहा है तो उसे रिट याचिका लंबित नहीं रखनी चाहिए। पीठ ने कहा कि वह 26 नवंबर को इस पहलू पर गौर करेगी।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 अक्टूबर को अपने फैसले में अस्थाना को दिल्ली का पुलिस आयुक्त नियुक्त करने का केन्द्र का फैसला सही ठहराते हुए कहा था कि उनके चयन मे कोई भी अवैधता या अनियमित्ता नहीं है।

उच्च न्यायालय ने अस्थाना के चयन को चुनौती देने वाली जनहित खारिज करते हुए कहा था कि इस नियुक्ति के बारे में केन्द्र द्वारा बताये गये कारण ठीक हैं और इसमें न्यायिक समीक्षा की आवश्यकता नहीं है।

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि प्रकाश सिंह मामले में शीर्ष अदालत का फैसला दिल्ली के पुलिस आयुक्त की नियुक्ति के मामले में लागू नहीं होता है और उसका उद्देश्य राज्यों में पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति के संबंध में है।

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