राखी के धागों में बँधी दुआएँ”…
राखी के धागों में बँधी दुआएँ”…
-डॉ. प्रियंका सौरभ-

राखी के धागों में बँधी दुआएँ,
हर साल बहना की आँखें भर लाएँ।
सपनों में जब भी तू आता है भैया,
मन आँगन मेरा मुस्काए।
तेरे बचपन की शरारतें याद हैं मुझे,
वो किताबों के बीच छुपाई मिठाइयाँ।
हर रक्षाबंधन पर करती हूँ इंतज़ार,
तेरे हाथों से बँधी मेरी कलाईयाँ।
ना चाँदी की ज़रूरत, ना सोने की डोरी,
तेरा प्यार ही है मेरी सबसे बड़ी कोरी।
माँ की ममता और तेरे प्यार का चंदन,
हर बंधन से पवित्र ये राखी का बंधन।
जब तू कहता है – “मैं हूँ ना”,
तो सारी दुनिया छोटी लगती है।
तेरे भरोसे पर जीती हूँ मैं,
तेरी बहन हर हाल में तुझसे जुड़ी लगती है।
बचपन की झगड़े, अब याद बन गए,
मगर वो रक्षा का वादा आज भी जिंदा है।
कभी तू दूर है, कभी पास है,
मगर मेरा विश्वास हमेशा तुझमें बंदा है।
आज फिर एक राखी बाँध रही हूँ,
तेरी सलामती की दुआ के साथ।
भले तू हजारों मील दूर सही,
मगर दिल में है तू हर साँस के साथ।
रक्षा बंधन पर कविता
-डॉ. प्रियंका सौरभ-
राखी का ये प्यारा त्यौहार,
भाई-बहन के रिश्ते का उपहार।
नन्ही कलाई पर बंधी एक डोर,
भावनाओं से भरी, स्नेह का शोर।
हर बहन की आंखों में सपना,
भाई का साथ, न कोई अपना।
वचन है रक्षा का, प्रेम अपार,
सिर्फ धागा नहीं, है संस्कार।
मीठी-सी मुस्कान लिए बहना आई,
थाल सजाकर आरती लाई।
रोली, चावल, और मिठाई साथ,
बंधा है इसमें बचपन का हाथ।
भाई ने भी मुस्कुराकर कहा,
“तू ही तो है मेरा खुदा।”
तेरे आंचल की छांव में पलूं,
हर जनम में तुझको ही बहन बनाऊं।
राखी की इस रीत में है अपनापन,
दूरी भी हो, फिर भी है बंधन।
ना कोई छल, ना दिखावा है,
ये प्रेम तो बस भावना का बहाव है।
सावन की खुशबू, बारिश की फुहार,
हर दिल में बसता रक्षाबंधन का त्यौहार।
संस्कारों की ये सुनहरी थाली,
हर घर में लाए खुशहाली।
चलो मिलकर मनाएं ये पर्व,
रिश्तों को दें फिर एक गर्व।
हर राखी बने भाई की ढाल,
हर बहना बने उस पर मिशाल।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट


