संस्कृति के रक्षक
संस्कृति के रक्षक
-मनीशा देवी-
महाराणा प्रताप के वीर पुत्र अमर सिंह ने युद्धभूमि में मुगल सेनापति अब्दुल रहीम खां को परास्त कर दिया। उन्होंने तैश में आकर मुगल सरदारों के साथ ही मुगलों के हरम को भी बंदी बना लिया। महाराणा प्रताप को जब यह समाचार मिला तो वह रुग्णावस्था में ही युद्ध क्षेत्र में जाकर अमर सिंह पर गरज पड़े, अमर सिंह! ऐसा नीच काम करने से पहले तू मर क्यों नहीं गया। हमारी भारतीय संस्कृति को कलंकित करते तुझे लाज न आई?
राणा अमर सिंह पिता के समक्ष लज्जित मुद्रा में खड़े रहे। महाराणा प्रताप ने तत्काल मुगल हरम में पहुंचकर बड़ी बेगम को प्रणाम करते हुए कहा, बड़ी बी साहिबा, जो सिर शहंशाह अकबर के समक्ष नहीं झुका, मैं आपके सामने झुकाता हूं। मेरे पुत्र अमर सिंह से जो अपराध हुआ, उसे क्षमा करें। हमारे लिए स्त्री पूजनीय है, आप लोगों को बंदी बनाकर उसने हमारी संस्कृति का अपमान किया है। उधर शहंशाह अकबर ने जब मुगल हरम की चिंता करते हुए सेनापति अब्दुल रहीम खां को फटकारा तो उसने बादशाह को आश्वस्त करते हुए कहा, क्षमा करें महाराज, बेगम वहां उतनी ही सुरक्षित हैं, जितनी शाही महल में।
पर महाराणा प्रताप हमारे शत्रु हैं,्य अकबर ने चिंता जताते हुए कहा।
बादशाह सलामत, शत्रु होने से पहले महाराणा प्रताप हिंदुस्तानी संस्कृति के रक्षक हैं, वह बेगम को कुछ न होने देंगे। बादशाह को सांत्वना देते हुए सेनापति बोले।
जब दूसरे दिन राजपूत सैनिकों की कड़ी सुरक्षा में राजकीय सम्मान के साथ शाही बेगमों की पालकी आगरा के किले में पहुंची तो बादशाह अकबर के मुख से अकस्मात निकला, श्महाराणा प्रताप जैसा राजा इतिहास में शायद ही दूसरा कोई होगा। वह जमीन और प्रजा के ही राजा नहीं, अपनी तहजीब के भी सच्चे रखवाले हैं।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट