धूप बेचारी..

धूप बेचारी..

-बीनू भटनागर-

धूप बेचारी,
तरस रही है,
हम तक आने को।
धूल, जीवाणु, विषाक्त गैसें,
उसका रस्ता रोके खड़ी हैं।
वायु प्रदूषण के कारण,
अब आंखें जले लगी हैं।
ये धुंध है, ना कोहरा है,
ना ही बादल का घेरा है,
दूर दूर तक वायु प्रदूषण का,
जाल बना गहरा है।
साल के अंतिम छोर पर भी,
ठंड का नामोनिशान नहीं है।
सूरज को भी अब तो,
धूप पर अभिमान नहीं है। ।

(प्रवक्ता डाॅट काॅम से साभार)

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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