मेरी कृति..

मेरी कृति..

कुछ कहते हैं…
ये सितारे,
जो रहते हैं…
हमसे दूर,
क्षितिज़ के पार….
सह कर नियति की प्रताड़ना को,
बार -बार….
हर अँधेरी रातों के
दिलों में जलते हैं,
हमसे कुछ कहते हैं,

निज कर्म में लीन…
बनाती हैं
प्रकृति को रंगीन,
ये नदियाँ…..
ऊँचे शिखरों से अवतरित,
मिलने को….
सिंधु से आतुर,
करके स्वीकार…
चट्टानों की मार,
बार -बार…
अभिराम बाट में बहती हैं,
हमसे कुछ कहती हैं,

कुछ खड़े…
प्रकृति के आँचल में,
कुछ पड़े…
प्रकृति की गोद में,
सब हैं
ब्रह्माण्ड के भागीदार,
पिरो कर….
एक ही प्रेम सूत्र में
बनते प्रकृति का अटूट हार,
कुछ मूक… कुछ बाचाल…
हर छण… हर काल…
सब हमें
समर्पित रहते हैं,
हमसे कुछ कहते हैं,

आओ सुन लें…..
इस मूक वृंद को,
इनके करुणामय
शांत क्रन्द को,
ये सहते….
चुप रहते हैं,
सुंदर प्रकृति के…
मधुर उपहार,
सभ्य मानव के…
क्रूर हथियार,
इनकी सास्वत स.र.ग.म में,
जो सन्देश हमेशा रहते हैं…
……शायद……
हमसे ही कुछ कहते हैं,
हमसे ही कुछ कहते हैं……

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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