चुनाव जिन्ना-पाकिस्तान!
चुनाव जिन्ना-पाकिस्तान!
विडंबना है कि उप्र में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, लेकिन बात पाकिस्तान और उसके संस्थापक आका जिन्ना की हो रही है। आम आदमी के सरोकारों पर मुद्दे बुलंद किए जाने चाहिए। रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा, किसान और गन्ने, बिजली, सड़क, पानी, जन-कल्याण आदि के स्थानीय सवालों पर राजनीतिक दलों को कटघरे में खड़ा करना चाहिए। बीते 5 सालों के दौरान गरीबों की करीब 53 फीसदी आय कम क्यों हो गई और अमीरों की ‘अमीरी’ में करीब 39 फीसदी की बढ़ोतरी कैसे हुई? सवाल वोट मांगने वाले नेताओं से पूछे जाने चाहिए। देश का मध्य-वर्ग करीब 9 फीसदी और गरीब कैसे हुआ? कोरोना-काल में करीब 84 फीसदी परिवारों की आमदनी घटी है, तो अब उसकी भरपाई कैसे होगी? राजनीतिक दल जि़ंदगी से जुड़े ऐसे अहम सवालों और गुत्थियों के समाधान पेश करें, लेकिन विडंबना है कि चर्चा इन बिंदुओं पर छिड़ी है कि चीन और पाकिस्तान में से कौन-सा देश ज्यादा खतरनाक दुश्मन है! पाकिस्तान तो हमारा दुश्मन ही नहीं है। वह ‘राजनीतिक दुश्मन’ हो सकता है! पाकिस्तान के साथ भारत की कौन-सी राजनीति साझा है, उन नेताओं से ऐसे सवालों के जवाब मांगें।
हालांकि ऐसे सवाल अभी तक अनुत्तरित रहे हैं। सपा अध्यक्ष एवं उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक बड़े, अंग्रेजी अख़बार के साथ साक्षात्कार में फिर जिन्ना और पाकिस्तान का राग अलापा, तो हिंदूवादी भाजपा ने उसमें समवेत स्वर मिला दिया। मुद्दे को एकदम ‘हज हाउस’ बनाम ‘कैलाश मानसरोवर भवन’ बना दिया गया। हमारे राजनीतिक दल और नेता मुग़ालते में रहते हैं कि जिन्ना-पाकिस्तान का राग अलापने से मुसलमानों के भरपूर वोट मिलेंगे। जिन्ना-पाकिस्तान का विरोध करने से हिंदुओं के ज्यादातर वोट भाजपा के पक्ष में धु्रवीकृत होंगे। मतदाताओं को इतना बेवकूफ मत समझें। अखिलेश ने पाकिस्तान को भारत का दुश्मन नहीं माना, तो भाजपा प्रवक्ताओं और उनके समर्थक विश्लेषकों ने
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टीवी चैनलों पर दोफाड़ बहसों का आगाज़ कर दिया। चैनलों पर आजकल ऐसी बहसों की बहार है, जिनसे देश का कोई बुनियादी सरोकार नहीं। चैनल पाकपरस्त और हिंदूपरस्त करार देने में व्यस्त हैं। सपा प्रवक्ता अक्सर ऐसी बहसों में गरीबी, बेरोज़गारी, महंगाई, महिला सुरक्षा और किसानों के मुद्दों पर बहुत चीखते हैं मानो वोट इसी तरीके से मिल सकते हैं! ये सवाल भी किए जाते हैं कि पाकिस्तान में जिन्ना की मज़ार पर मत्था टेकने कौन गया था? जिन्ना पर किताब किसने लिखी थी? कौन-सा प्रधानमंत्री अचानक पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम की बेटी की शादी में शिरकत करने पाकिस्तान चला गया था? यही नहीं, आज़ादी से पहले के गड़े मुर्दे उखाड़ते हुए भी सवाल किए जाते हैं कि जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने मुस्लिम लीग के गठबंधन में तत्कालीन ग्रेट कलकत्ता में सरकार क्यों बनाई थी?
दरअसल हम 2022 के विधानसभा चुनावों की बात कर रहे हैं, इतिहास-लेखन नहीं कर रहे। फिलहाल भारत में केंद्र सरकार के लिए चुनाव नहीं हो रहे हैं। देश की विदेश नीति, कूटनीति, सामरिक नीति आदि की चिंता अखिलेश यादव न करें। यदि ज्यादा ही चिंता है, तो अपने पिता और देश के रक्षा मंत्री रह चुके मुलायम सिंह यादव से ही जान लें कि उन्होंने पाकिस्तान पर लोकसभा में क्या वक्तव्य दिया था। पाकिस्तान हमारा दुश्मन है अथवा नहीं है! यह जानकारी तो देश के बच्चे-बच्चे को है कि पाकिस्तान हमारे संदर्भ में कैसा देश है। पाकिस्तान भारत में आतंकवाद और हजारों हत्याओं, सैनिकों की शहादतों, के लिए जिम्मेदार, हत्यारा देश है। यहां हम पंजाब के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी टोकना चाहते हैं कि क्या उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की सिफारिश पर नवजोत सिंह सिद्धू को अपनी कैबिनेट में लिया था? कैप्टन अब भाजपा गठबंधन के सदस्य हैं। आज पाकिस्तान के नाम पर राजनीतिक विभाजन बेमानी है। भारत एक सार्थक, मजबूत और सत्यापित लोकतंत्र है। यहां के जनादेश पाकपरस्त नहीं हो सकते। भारत जैसे लोकतंत्र में आज ‘गणतंत्र दिवस’ मनाया जा रहा है। यदि भारत में संविधान के जरिए ढेरों अधिकार दिए गए हैं, तो कई दायित्व भी तय किए गए हैं। मतदान और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सरीखे अधिकारों की गलत व्याख्या मत करें। चुनाव आम आदमी से जुड़े मुद्दों पर ही होने चाहिए, जाति-संप्रदाय के आधार पर नहीं। और यह सब कुछ देश का सम्मानित मतदाता ही कर सकता है कि चुनाव जिन्ना-पाकिस्तान पर भी आधारित नहीं होने चाहिए। उन आह्वानों का बहिष्कार कर दें।
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प्रयोग बनाम संयोग, चुनाव चला पाकिस्तान…