टक्कू की प्यारी बहना (बाल कहानी)

टक्कू की प्यारी बहना (बाल कहानी)

टक्कू आठ साल का बालक था। वह चैथी कक्षा में पढ़ता था। उसके स्कूल में आज छुट्टी थी… आज की छुट्टी कैसे बीते वह सोच ही रहा था कि उसके घर की डोर बेल बज उठी वह तुरंत ही दरवाजे की तरफ भागा, दरवाजे पर उसके दोस्त मिकी व जोजो थे। अपने दोस्तों को देखकर टक्कू को बहुत खुशी हुई। टक्कू ने कहा- मैं सोच ही रहा था कि आज की छुट्टी कैसे बीते, चलो अच्छा हुआ तुम हमारे घर आ गए। आज हम खूब खेल सकेंगे।

जोजो ने कहा- लेकिन टक्कू! हम आज थोड़ी देर ही खेल सकेंगे, फिर हमारे घर पर राखी का कार्यक्रम है। हमारी बहिनें राखी बांधेंगी और हम सभी मिलजुल कर राखी सैलीब्रेट करेंगे। टक्कू को याद आया कि आज रक्षाबंधन है… टक्कू के कोई बहिन नहीं थी इसलिए उसके घर पर ऐसा कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं हुआ था। टक्कू के साथ कुछ ही देर खेलकर जब उसके दोस्त घर वापस जाने लगे तो टक्कू की उदासी उसके चेहरे पर साफ दिख रही थी।

टक्कू चुपचाप उदास सा अपनी पढ़ाई की कुर्सी टेबल पर जा बैठा। वह टेबल पर पड़ी अपनी डायरी पर यूं ही उदास मन से कुछ लिखने लगा। लिखते-लिखते टक्कू के मन में यही विचार चल रहा था कि काश उसके भी कोई बहिन होती और वह भी आज रक्षाबंधन की खुशियां मना रहा होता।

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शाम होने पर जब टक्कू अपनी टेबल से उठने को हुआ तब उसकी नजर डायरी पर लिखे अपने शब्दों पर पड़ी। टक्कू ने देखा कि इस बीच उसके द्वारा उसकी डायरी पर रक्षाबंधन पर एक छोटी सी सुंदर कविता- मेरी प्यारी बहिना लिखी जा चुकी थी। टक्कू के कुर्सी के पीछे ही उसके पिताजी खड़े थे, जो टक्कू की लिखी कविता बड़े ध्यान से देख रहे थे। टक्कू के पिताजी ने उसकी लिखी कविता की खूब तारीफ की।

टक्कू ने कहा- लेकिन पापा मैं तो रक्षाबंधन के बारे में सोच रहा था, मैंने कब अपनी पेंसिल उठाई और कब यह कविता इस डायरी पर लिख डाली मुझे पता ही न चला। टक्कू के पिताजी ने कहा- अपनी कविता को देखो, रक्षाबंधन पर तुम्हें कितनी अच्छी बहिन मिली है। टक्कू को पिताजी की बात बहुत पसंद आई और वह भी अपने इस रक्षाबंधन से बहुत खुश हुआ। टक्कू ने अपनी कविता अपनी मम्मी को व स्कूल में अपने गुरुजनों को भी सुनाई। सबने उसकी कविता को बहुत पसंद किया। टक्कू की वह कविता कई सारी पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई।

रक्षाबंधन के उस दिन ने टक्कू को कवि बना दिया था। अब उसका एक दिन भी ऐसा नहीं बीतता था जिस दिन वह अपनी टेबल पर बैठकर कोई अच्छी कविता न लिख लेता। बड़े होने तक टक्कू की कविताएं कई स्कूल की किताबों में भी आ गईं थीं। टक्कू को जब भी उसकी कोई कविता के लिए बड़ा पुरस्कार मिलता वह लोगों को यह बताना न भूलता कि यह सब प्रसिद्धी रक्षाबंधन पर उसे मिली उसकी प्यारी बहिन उसकी पहली कविता की वजह से है, जिसने उसे आज यहां तक पहुंचाया है।

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