छोटे शहरों की प्रतिभाओं को मिले उचित अवसर : सिद्धांत चतुर्वेदी..
छोटे शहरों की प्रतिभाओं को मिले उचित अवसर : सिद्धांत चतुर्वेदी..

मुंबई, 02 दिसंबर । बॉलीवुड अभिनेता सिद्धांत चतुर्वेदी का कहना है कि छोटे शहरों की प्रतिभाओं को उचित अवसर दिया जाना चाहिये। रचनात्मकता और संस्कृति का जश्न मनाने वाले दुनिया के सबसे बड़े उत्सवों में से एक इंडिया फ़िल्म प्रोजेक्ट (आईएफपी) के 15वें एडिशन की शुरुआत 29 नवंबर को मुंबई के महबूब स्टूडियो में हुई और इस रोचक सेशन की शुरुआत हुई, अभिनेता सिद्धांत चतुर्वेदी के सेशन से, जिसका शीर्षक था ‘रूटेड इन रिएलिटी’ यानी ‘वास्तविकता में रचा बसा’। वैभव मुंजाल के साथ इस खुले और ईमानदार संवाद में सिद्धांत ने अपनी अभिनय यात्रा के साथ आज के भारतीय सिनेमा और असली भारत की कहानियाँ बताने के महत्व पर दिल से ढेर सारी बातें की।
‘गली बॉय’ और ‘गहराइयाँ’ जैसी फिल्मों के लिए मशहूर सिद्धांत चतुर्वेदी से आज के एंटरटेनमेंट माहौल पर बात करते हुए जब पूछा गया कि क्या आज के दौर में कलाकारों को कंटेंट क्रिएटर्स से प्रतिस्पर्धा महसूस होती है? तो उन्होंने बिना झिझक जवाब देते हुए कहा, “यदि आप कह रहे हैं कि कम्पिटीशन है, तो हाँ, है। लेकिन इसे खतरे के रूप में देखने के बजाय, इसे सिनेमा की पुरानी स्टार कल्चर से जोड़ा जाए तो बेहतर होगा। पहले के समय में भी इतने स्टार्स थे, जिनमें बच्चन साहब, धरमजी, राजेंद्र कुमार, राजेश खन्ना, दिलीप कुमार, शम्मी जी, ऋषि जी, संजीव कुमार का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। सो तब भी ध्यान खींचने की होड़ थी, क्योंकि कोई दूसरा माध्यम नहीं था। लेकिन मुझे लगता है कि एक अच्छी फिल्म हमेशा टिकती है, और अच्छा कंटेंट हमेशा याद रहता है।”
इसके बाद सिद्धांत ने एक ऐसी समस्या की ओर सबका ध्यान खींचा, जो उन्हें बेहद परेशान करती है, और वो है छोटे शहरों से आने वाले लेखकों के पास पहुँच (एक्सेस) की कमी। हालांकि उनके मुताबिक, समस्या टैलेंट की नहीं, अवसर की है। उन्होंने कहा, “राइटर्स को उतनी पहुँच नहीं मिल रही जितनी चाहिए। हमें टियर 2, टियर 3 की कहानियाँ चाहिए। सिर्फ मासी नहीं, बल्कि ‘लापता लेडिज़’ जैसी कहानियाँ भी हमें चाहिए। हालांकि इसकी एक वजह यह भी है कि हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री अभी भी मुंबई के कुछ इलाकों तक ही सीमित है, जिससे कहानी कहने में विविधता रुक जाती है। आप खुद देखिए, पूरी इंडस्ट्री बॉम्बे के जुहू, बांद्रा, या ज़्यादा से ज़्यादा अंधेरी तक सीमित है। तो अगर कोई राइटर भोपाल, ग्वालियर, बलिया या बनारस से आता, तो शायद वो सही जगह पहुँच ही नहीं पाता। कई बार इंग्लिश न आना भी उसके लिए चुनौती बन जाती है। शायद यही वजह है कि खुद दर्शक भी कई बार मुख्यधारा की हिंदी फिल्मों से नहीं जुड़ पाते।”
सिद्धांत ने भाषा पर बात करते हुए कहा, “आज हिंदी अभिनेता और अभिनेत्री, जब भी हिंदी इंटरव्यू देते हैं, तो शुरुआत तो हिंदी में होती है, लेकिन दो लाइन के बाद ही उन्हें पता नहीं चलता और वो अंग्रेज़ी बोलने लगते हैं। ऐसे में दर्शक डिसकनेक्ट हो जाता है।” हालांकि भाषा से जुड़ी फ़िल्म इंडस्ट्री की खामियां गिनाते समय सिद्धांत ने नए दर्शकों, विशेष रूप से आज की युवा पीढ़ी की खूब तारीफ की। उन्होंने कहा “जेनेरेशन जेड, जिन्हें हम जेन ज़ी कहते हैं, वे काफी स्मार्ट हैं। वो तुरंत सच पहचान लेते हैं। उन्हें तुरंत समझ में आ जाता है कि कहानी जुनूनीयत और सच्चाई से भरी है या नहीं। ऐसे में मुझे लगता है कि हमारी सिनेमैटिक ग्लोरी वापस लाने का यही समय है और हमें भारत के दिल से और ज्यादा कहानियाँ लाने की बेहद ज़रूरत है।”
गंभीर बातों के बीच सिद्धांत ने कॉमेडी का तड़का लगाते हुए एक बेहद मजेदार किस्सा सुनाया कि कैसे एयरपोर्ट पर एक फैन ने उन्हें कॉमेडियन समय रैना समझ लिया था। उन्होंने बताया, “मैंने देखा कि एक आदमी दूर से मुझे देख रहा है, फिर वो मेरे पास आया, मेरी तारीफ की, सेल्फी ली, और फिर उसने मुझसे पूछा, “एक बात बताओ, तुम्हारा शो बंद क्यों हुआ?” मुझे कुछ समझ नहीं आया फिर भी मैंने उसे अपनी वेब सीरीज़ ‘इनसाइड एज 3’ के बारे में समझाने की कोशिश की, लेकिन जाते-जाते उसने अपने दोस्त से कहा, “भाई, समय रैना।” सिद्धांत के इस किस्से को सुनकर पूरा हॉल हँसी से गूंज उठा।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट



