बच्चों को वैवाहिक लड़ाई में हथियार बनाना ‘मनोवैज्ञानिक क्रूरता’, तलाक का वैध आधार: दिल्ली हाईकोर्ट…
बच्चों को वैवाहिक लड़ाई में हथियार बनाना ‘मनोवैज्ञानिक क्रूरता’, तलाक का वैध आधार: दिल्ली हाईकोर्ट…

नई दिल्ली, 23 सितंबर। दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवादों में बच्चों के इस्तेमाल को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि पति या पत्नी द्वारा जानबूझकर नाबालिग बच्चे को दूसरे माता-पिता से दूर करना न केवल मनोवैज्ञानिक क्रूरता है, बल्कि यह तलाक का एक वैध आधार भी हो सकता है। यह फैसला न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने 19 सितंबर को सुनाया।
फैमिली कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट ने रखा बरकरार
यह मामला एक महिला की याचिका से संबंधित है, जिसने सितंबर 2021 में फैमिली कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें उसके पति को क्रूरता के आधार पर तलाक दिया गया था। कोर्ट ने महिला की याचिका को खारिज करते हुए निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया। कोर्ट ने अपने 29 पन्नों के आदेश में इस बात पर जोर दिया कि वैवाहिक संघर्ष में बच्चे को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने से न केवल दूसरे माता-पिता को पीड़ा होती है, बल्कि बच्चे के भावनात्मक स्वास्थ्य को भी गंभीर नुकसान पहुंचता है और इससे पारिवारिक सद्भाव की नींव हिल जाती है।
2008 से अलग रह रहा था जोड़ा
यह युगल मार्च 1990 में विवाह बंधन में बंधा था और उनका एक बेटा है। महिला ने 2008 से अपने पति से अलग रहना शुरू कर दिया था, जिसके बाद पति ने 2009 में तलाक के लिए अर्जी दी। फैमिली कोर्ट ने सितंबर 2021 में पति को तलाक की अनुमति दी, जिसके खिलाफ महिला ने हाईकोर्ट में अपील की थी।
मनोवैज्ञानिक क्रूरता के कई पहलू उजागर
याचिका में महिला ने दावा किया कि उसने अपने पति को नहीं छोड़ा, बल्कि तलाक की अर्जी के बाद भी वह अपने बेटे के साथ ससुराल में ही रहती रही। उसने यह भी आरोप लगाया कि उसका पति उससे यौन संबंध बनाने के लिए तैयार नहीं था और उसके ससुराल वालों ने उसके साथ मारपीट की। वहीं, पति ने कोर्ट को बताया कि मुलाकात के आदेशों के बावजूद वह अपने बेटे से नहीं मिल पाया क्योंकि बच्चे ने उससे बात करने से इनकार कर दिया। पति ने यह भी दावा किया कि तलाक की अर्जी के बाद महिला ने उसके और उसके परिवार के खिलाफ कई आपराधिक शिकायतें दर्ज कराईं।
इस मामले पर फैसला सुनाते हुए, न्यायमूर्ति शंकर ने लिखा, “नाबालिग बच्चे को प्रतिवादी से जानबूझकर अलग-थलग करना मनोवैज्ञानिक क्रूरता का एक गंभीर रूप है।”
वैवाहिक यौन संबंध से इनकार भी क्रूरता
कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि वैवाहिक यौन संबंध से लगातार इनकार करना भी क्रूरता की पराकाष्ठा है। कोर्ट ने कहा कि यौन संबंध और वैवाहिक कर्तव्यों का निर्वहन विवाह का आधार होता है और इनसे लगातार इनकार करना न केवल विवाह के बिखराव को दर्शाता है, बल्कि यह क्रूरता का भी प्रतीक है जिसके लिए न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक है। यह फैसला वैवाहिक विवादों में बच्चों की सुरक्षा और उनके भावनात्मक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

