द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत को मान्यता देने वाले देशों की संख्या बढ़ी, इजरायल ने जतायी नाराजगी..
द्विराष्ट्रवाद सिद्धांत को मान्यता देने वाले देशों की संख्या बढ़ी, इजरायल ने जतायी नाराजगी..

नयी दिल्ली/तेल अवीव, 23 सितंबर । संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य 193 देशों में से 147 देश फ़िलिस्तीन को राष्ट्र के तौर पर मान्यता दे चुके हैं और अब ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के बाद पुर्तगाल ने भी फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर औपचारिक मान्यता देने की घोषणा कर दी है।
भारत नवंबर 1988 में पहले ही फिलिस्तीन को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दे चुका है और उसके साथ तभी राजनयिक संबंध स्थापित कर लिये थे।
पुर्तगाल ने अपने ऐलान में कहा कि द्वि-राष्ट्र समाधान ही “न्यायसंगत और स्थायी शांति का एकमात्र मार्ग” है।
यह भी आशा की जा रही है कि फ़्रांस और कई अन्य देश इस सप्ताह संयुक्त राष्ट्र महासभा में ऐसा ही करेंगे। दशकों से इज़रायल के मज़बूत सहयोगी रहे इन पश्चिमी देशों ने द्वि-राष्ट्र समाधान की दिशा में प्रगति न होने पर गहरी निराशा भी व्यक्त की है।
उधर इसके जवाब में, इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने संकल्प लेते हुए कहा कि “कोई फ़िलिस्तीनी राज्य नहीं होगा।” श्री नेतन्याहू ने रविवार को एक बयान में कहा, “सात अक्टूबर के भयानक नरसंहार के बाद फ़िलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने वाले नेताओं के लिए मेरा एक स्पष्ट संदेश है: आप आतंकवाद को एक बड़ा इनाम दे रहे हैं।”
श्री नेतन्याहू ने आगे कहा कि हमारी धरती में एक आतंकवादी राज्य को थोपने की इस ताज़ा कोशिश का जवाब दिया जाएगा, इंतज़ार कीजिए। इज़रायल के राष्ट्रपति इसाक हर्ज़ोग ने इसमें सुर मिलाते हुए एक्स पर एक पोस्ट में कहा, “यह उन लोगों के लिए एक दुखद दिन है जो सच्ची शांति चाहते हैं।”
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र के 140 से ज़्यादा अन्य सदस्य पहले ही फ़िलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं, और यह संख्या गाज़ा में इज़रायल के हमले को लेकर बढ़ती चिंता के बीच बढ़ी है।
कनाडाई प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने एक्स हैंडल पर कहा कि उनका देश “फ़िलिस्तीन को मान्यता देता है और फ़िलिस्तीन एवं इज़राइल, दोनों के लिए एक शांतिपूर्ण भविष्य के निर्माण में अपनी भागीदारी की पेशकश करता है।” उनका साहस भरा बयान ऐसे समय में आया है जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प यह कह चुके हैं कि अगर कनाडा ऐसा करता है तो उसे व्यापार वार्ता में नुकसान हो सकता है।
ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर की यह घोषणा जुलाई में किए उनके वादे को पूरा करती है। इसमें उन्होंने फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने की बात कही थी। श्री स्टारमर ने एक वीडियो संबोधन में कहा, “मध्य पूर्व में बढ़ते आतंक के मद्देनजर, हम शांति की संभावना को जीवित रखने के लिए काम कर रहे हैं।” उनके ऐलान के बाद ब्रिटेन के विदेश मंत्रालय की साइट पर “अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों” को हटा कर “फ़िलिस्तीन” कर दिया गया।
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ ने एक बयान में कहा कि कनाडा और ब्रिटेन के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया की मान्यता, द्वि-राष्ट्र समाधान के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय प्रयास का हिस्सा है। विदेश मंत्री पेनी वोंग के साथ एक संयुक्त बयान में श्री अल्बानीज़ ने कहा कि यह निर्णय द्वि-राष्ट्र समाधान के लिए गति को पुनर्जीवित करने के लिए है। इसकी शुरुआत गाजा में युद्धविराम और गाजा में बंदियों की रिहाई से होगी।लेकिन बयान में दोहराया गया कि हमास की “फिलिस्तीन में कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए।”
पुर्तगाल के विदेश मंत्री पाउलो रंगेल ने न्यूयॉर्क में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि फ़िलिस्तीन राज्य को मान्यता देना पुर्तगाली विदेश नीति की एक मौलिक, स्थायी और बुनियादी नीति का साकार रूप है। उन्होंने कहा कि “पुर्तगाल दो-राष्ट्र समाधान को न्यायसंगत और स्थायी शांति के एकमात्र मार्ग के रूप में समर्थन करता है। ”
फ्रांस के प्रधानमंत्री इमैनुएल मैक्रों ने रविवार को हमास और इज़राइल के बीच चल रहे युद्ध के बीच फ़िलिस्तीन राज्य को मान्यता देने के अपने देश के फ़ैसले का बचाव किया। एक साक्षात्कार में, श्री मैक्रों ने कहा कि फ्रांस इस क्षेत्र में “शांति और सुरक्षा” चाहता है। उन्होंने आगे कहा, “फ़िलिस्तीनी राज्य को आज मान्यता देना ही उस स्थिति का राजनीतिक समाधान प्रदान करने का एकमात्र तरीका है जिसे रोकना होगा।”
बेल्जियम, लक्ज़मबर्ग और सैन मैरिनो उन अन्य सरकारों में शामिल हैं जो इस हफ़्ते फ़िलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने की योजना बना रही हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य 193 देशों में से 147 देश फ़िलिस्तीन राज्य को मान्यता दे चुके हैं, लेकिन मान्यता देने के मामले में फ़्रांस पश्चिमी गठबंधन के अन्य देशों से आगे था।
इज़रायल ने इन कदमों की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि ये हमास को 7 अक्टूबर, 2023 को हुए आतंकवादी हमले के लिए पुरस्कृत और प्रोत्साहित करेंगे, जिसमें लगभग 1,200 लोग मारे गए थे और लगभग 250 अन्य बंधक बनाए गए थे।
गौरतलब है कि यहूदी और फ़िलिस्तीनी आबादी के लिए एक-दूसरे के साथ शांतिपूर्वक रहने हेतु एक राष्ट्र की स्थापना का विचार 1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना से भी पहले का है। तब से बार-बार तैयार की गई यह अवधारणा दर्जनों संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों, कई शांति वार्ताओं एवं विशेष सत्रों में भी दिखाई देती है।
ग्रेट ब्रिटेन ने 1947 में फ़िलिस्तीन पर अपने अधिकार को त्याग दिया और “फ़िलिस्तीनी प्रश्न” को संयुक्त राष्ट्र के संज्ञान में लाया गया। संयुक्त राष्ट्र ने फ़िलिस्तीन को दो स्वतंत्र राष्ट्रों, एक फ़िलिस्तीनी अरब और दूसरा यहूदी, में विभाजित करने का प्रस्ताव रखा, जिसमें यरुशलम का अंतर्राष्ट्रीयकरण किया गया, जो द्वि-राष्ट्र समाधान की रूपरेखा के रूप में कार्य करता है।
सन 1991 में मैड्रिड में एक शांति सम्मेलन आयोजित किया गया ,जिसका उद्देश्य सीधी बातचीत से एक शांतिपूर्ण समाधान प्राप्त करना था। यह समाधान इज़रायल और अरब राज्यों के बीच और इज़रायल और फ़िलिस्तीनियों के बीच, सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 242 (1967) और 338 (1973) के आधार पर तय किया गया।
सन 1993 में, इज़रायली प्रधानमंत्री यित्ज़ाक राबिन और फ़िलिस्तीन मुक्ति संगठन के अध्यक्ष यासर अराफ़ात ने ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर किये और पश्चिमी तट तथा गाज़ा में एक फ़िलिस्तीनी अंतरिम स्वशासन की नींव रखी।
1993 के ओस्लो समझौते ने कुछ मुद्दों को स्थायी स्थिति पर बाद की वार्ताओं के लिए स्थगित कर दिया, जो 2000 में कैंप डेविड और 2001 में ताबा में आयोजित की गईं, लेकिन अनिर्णायक साबित हुईं।
ओस्लो समझौते के तीन दशक बाद भी, संयुक्त राष्ट्र का व्यापक लक्ष्य फ़िलिस्तीनियों और इज़रायलियों को संघर्ष का समाधान करने और संयुक्त राष्ट्र के प्रासंगिक प्रस्तावों, अंतर्राष्ट्रीय कानून और द्विपक्षीय समझौतों के अनुरूप कब्ज़ा समाप्त करने में सहायता करना है ताकि दो देशों – इज़रायल और एक स्वतंत्र, लोकतांत्रिक, सन्निहित, व्यवहार्य और संप्रभु फ़िलिस्तीनी राष्ट्र – के दृष्टिकोण को प्राप्त किया जा सके, जो 1967 से पहले की रेखाओं के आधार पर सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर शांति और सुरक्षा के साथ-साथ रह सकें, और दोनों राष्ट्रों की राजधानी यरुशलम हो।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट


