तिजोरी खोलने की तैयारी: बांग्लादेश खोजेगा दुनिया के सबसे बेशकीमती हीरा- दरिया-ए-नूर…
तिजोरी खोलने की तैयारी: बांग्लादेश खोजेगा दुनिया के सबसे बेशकीमती हीरा- दरिया-ए-नूर…

ढाका, 08 सितंबर । बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस सरकार देश के एक सरकारी समय में लंबे समय से बंद पड़ी एक तिजोरी को खोलने की तैयारी कर रही है। इसमें कोहनूर की बहन माने जाने वाले एक हीरे की तलाश होगी। माना जा रहा है कि इस तिजोरी में दुनिया के सबसे रहस्यमय और बेशकीमती हीरों में से एक दरिया-ए-नूर को छिपाकर रखा गया है। इस नायाब हीरो को अक्सर कोहिनूर की बहन के नाम से भी जाना जाता है। 26 कैरेट के इस हीरे को भारत की मशहूर गोलकुंडा की खदानों से निकाला गया था। यह मुगल, मराठा और सिख शासकों के पास रहा है और जनता की नजरों से ओझल होने से पहले एक लंबी यात्रा तय की है।
दरिया-ए-नूर की आज के दौर में अनुमानित कीमत लगभग 1.3 करोड़ डॉलर (114.5 करोड़ रुपये) है। अदालती दस्तावेजों का हवाला देते हुए रिपोर्ट में बताया है कि यह हीरा 108 खजानों के संग्रह का हिस्सा था। इस खजाने को रखने वाली तिजोरी को आखिरी बार 1985 में खोला गया था। हालांकि, 2017 में ऐसी रिपोर्ट आई जिसमें दावा किया गया कि हीरा गायब हो गया।
दशकों से इस बेशकीमती हीरे को लेकर कोई जानकारी सामने नहीं आई है, ऐसे में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के इस कदम ने उम्मीदों को फिर से जगा दिया है। बांग्लादेशी मीडिया आउटलेट द बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार, दरिया-ए-नूर एक 26 कैरेट का हीरा है। इसकी सतह आयताकार और मेज के आकार की है। कहा जाता है कि कोहिनूर की तरह ही इस हीरे को भी दक्षिण भारत में गोलकुंडा की खदानों से निकाला गया था।
ब्रिटिशकालीन ज्वैलर्स हैमिल्टन एंड कंपनी के रिकॉर्ड से पता चलता है कि यह हीरा लंबे समय तक मराठा शासकों के पास रहा। बाद में इसे हैदराबाद के एक मंत्री नवाब सिराजुल्लाह मुल्क के परिवार ने खरीद लिया। कोहिनूर और दरिया-ए-नूर हीरा, दोनों ही बाद में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के पास आ गए। वे इन्हें दोनों हाथों में बाजूबंद की तरह पहनते थे। उनकी मौत के बाद 19वीं शताब्दी में ये रत्न ब्रिटिश हाथों में चले गए।रिपोर्ट के अनुसार, कोहिनूर की तरह दरिया-ए-नूर भी लाहौर से महारानी विक्टोरिया के पास भेजा गया था। यह हीरा महाराजा रणजीत सिंह के बेटे दलीप सिंह से जबरन लिया गया था। हालांकि, दरिया-ए-नूर महारानी को प्रभावित नहीं कर सका।
वायसराय लॉर्ड डफरिन और लेडी डफरिन ने इसे 1887 में कलकत्ता के बल्लीगंज स्थित नवाब के घर पर इसे देखा था। ढाका के पहले नवाब ख्वाजा अलीमुल्लाह ने 1862 में एक नीलामी में यह हीरा खरीदा था। 1908 में आर्थिक तंगी से गुजर रहे उनके वंशज नवाब सलीमुल्लाह ने ब्रिटिश अधिकारियों से कर्ज लिया था। इस दौरान ढाका की संपत्ति के साथ-साथ हीरे और दूसरे खजानों को भी गिरवी रख दिया था। समय के साथ यह हीरा इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया से स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान और आखिर में बांग्लादेश के सरकारी सोनाली बैंक में ट्रांसफर हो गया। यह इसके बारे में आखिरी जानकारी थी।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट