दशावतार व्रत (02 सितम्बर 2025) पर विशेष: भगवान विष्णु के दशावतारों का संयुक्त पूजन दशावतार व्रत…

दशावतार व्रत (02 सितम्बर 2025) पर विशेष: भगवान विष्णु के दशावतारों का संयुक्त पूजन दशावतार व्रत…

-अशोक “प्रवृद्ध”-

वैदिक मतानुसार सर्वत्र व्यापक, सर्वशक्तिमान, निराकार परमात्मा का अवतरण संभव नहीं, लेकिन पौराणिक मान्यताओं में अवतार का अर्थ प्रायः उतरना माना जाता है। पौराणिक मान्यतानुसार पंचम भूमि असंसक्ति अवस्था है। इस अवस्था में योगी समाधिस्थ हों अथवा उससे उठे हों, वह ब्रह्मभाव से कभी विचलित नहीं होते अथवा संसार के दृश्यों को देखकर विमुग्ध नहीं होते। यही शुद्ध, पक्की योगारूढ़ावस्था है। इस अवस्था में रहकर सब काम किया भी जा सकता है और नहीं भी किया जा सकता है। साधारणतः महायोगीश्वर पुरूष तथा अवतारी पुरुष इसी अवस्था में रहते हैं और इसी अवस्था में रहकर समस्त जगत लीला का संपादन करते हैं।

भागवत पुराण के अनुसार समस्त जगत लीला का संपादन करने के लिए विष्णु के असंख्य अवतार हुए हैं, किन्तु उनके दस अवतारों अर्थात दशावतार को प्रमुख अवतार माना जाता है। भागवत पुराण, अग्निपुराण और गरुड़पुराण में उल्लिखित विष्णु के दस अवतार से संबंधित सूची में मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, वेंकटेश्वर, कल्कि नाम शामिल हैं। भागवत पुराण की भविष्यवाणी के अनुसार इस युग के अंत में कल्कि अवतार होगा। इससे अन्याय और अनाचार का अंत होगा तथा न्याय का शासन होगा जिससे सत्य युग की फिर से स्थापना होगी।

पुराणों के अतिरिक्त आम भारतीयों में सर्वप्रचलित ग्रंथ सुखसागर के अनुसार भगवान विष्णु के चौबीस अवतार हैं- सनकादि ऋषि, वराहावतार, नारद मुनि, हंसावतार, नर-नारायण, कपिल, दत्तात्रेय, यज्ञ, ऋषभदेव, पृथु, मत्स्यावतार, कूर्म अवतार, धन्वन्तरि, मोहिनी, हयग्रीव, नृसिंह, वामन, श्रीहरि गजेंद्रमोक्ष दाता, परशुराम, वेदव्यास, राम, कृष्ण, वेंकटेश्वर, कल्कि। सिखों के दशम गुरु गुरु गोविन्द सिंह द्वारा रचित दशम ग्रंथ में विष्णु के चौबीस अवतारों में मछ (मत्स्य), कच्छ (कच्छप या कूर्म), नारायण, महा मोहिनी (मोहिनी), बैरह (वाराह), नर सिंह (नृसिंह), बावन (वामन), परशुराम, ब्रह्म, जलन्धर, बिशन (विष्णु), शेशायी (शेष), अरिहन्त देव, मनु राजा, धन्वन्तरि, सूरज, चन्दर, राम, बलराम, कृष्ण, नर (अर्जुन), बुद्ध. कल्कि शामिल हैं।

भारतीय संस्कृति व परंपरा में अवतारवाद की व्याख्या कई प्रकार से की गई हैं। आध्यात्मिक, पौराणिक ढंग से तो इनकी व्याख्या पौराणिक ग्रंथों व रामायण, महाभारत आदि महाकाव्यों में की ही गई है, अन्य ढंग से इनकी व्याख्या समय-समय पर की जाती रही है, उनमें पस्पर असमानताएं, विषमताएं व विरोधाभास भी है। एक मत के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतार की कथाएं सृष्टि की जन्म प्रक्रिया को दर्शाते हैं। इस मतानुसार जल से ही सभी जीवों की उत्पति हुई। इसलिए भगवान विष्णु सर्वप्रथम जल के अन्दर मत्स्य रूप में प्रगट हुए। फिर कूर्म बने। तत्पश्चात वराह रूप में जल तथा पृथ्वी दोनों का जीव बने। नरसिंह, आधा पशु- आधा मानव, पशु योनि से मानव योनि में परिवर्तन का जीव है। वामन अवतार बौना शरीर है, तो परशुराम एक बलिष्ठ ब्रह्मचारी का स्वरूप है, जो राम अवतार से गृहस्थ जीवन में स्थानांतरित हो जाता है।

कृष्ण अवतार एक वानप्रस्थ योगी, और बुद्ध पर्यावरण के रक्षक हैं। पर्यावरण के मानवी हनन की दशा सृष्टि को विनाश की ओर धकेल देगी। अतः विनाश निवारण के लिए कलंकि अवतार की भविष्यवाणी पौराणिक ग्रन्थों में पूर्व से की गई है। एक अन्य मतानुसार दस अवतार मानव जीवन के विभिन्न पड़ावों को दर्शाते हैं। मत्स्य अवतार शुक्राणु है, कूर्म भ्रूण, वराह गर्भ स्थति में बच्चे का वातावरण, तथा नर-सिंह नवजात शिशु है। आरम्भ में मानव भी पशु जैसा ही होता है। वामन बचपन की अवस्था है, परशुराम ब्रह्मचारी, राम युवा गृहस्थी, कृष्ण वानप्रस्थ योगी तथा बुद्ध वृद्धावस्था का प्रतीक है। कलंकि मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म की अवस्था है। दशावतार को विकासवादी डार्विन के सिद्धान्त से जोड़ने की कोशिश करते रहे हैं। इस विचार के अनुसार अवतार जलचर से भूमिवास की ओर बढ़ते क्रम में हैं, फिर आधे जानवर से विकसित मानव तक विकास का क्रम चलते गया है। इस प्रकार दशावतार क्रमिक विकास का प्रतीक अथवा रूपक की तरह है।

भारतीय संस्कृति में भगवान विष्णु के इन दशावतारों के स्वतंत्र व संयुक्त रूप से पूजन- अर्चन की भी परंपरा है। स्वतंत्र रूप से पृथक-पृथक अवतरण दिवस तथा संयुक्त रूप से दशावतार व्रत विधि- विधान से मनाए जाने का वृहत उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में हुआ है। भगवान विष्णु के दस अवतारों को समर्पित दशावतार व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को किए जाने की पौराणिक परिपाटी है। यह व्रत समस्त पाप नाश, सम्पूर्ण कष्ट निवारण और मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाता है। मान्यता है कि इस तिथि को भगवान विष्णु की पूजा विधि- विधानानुसार सच्ची श्रद्धा और भक्ति भाव से करने पर जीवन आनंदमय व्यतीत होता है। इसलिए भाद्रपद शुक्ल दशमी के दिन ब्रह्मबेला में स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर रोली, अक्षत, दीपक, पुष्प, नारियल आदि सामग्रियों से भगवान विष्णु का ध्यान कर दीपक जलाकर पंचोपचार पूजन करने का विधान किया गया है। विष्णु मंत्र- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप तथा विष्णु सहस्रनाम, दशावतार की कथा का पठन- पाठन, श्रवण- श्रावण शुभ व उत्तम फलदायी माना गया है।

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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