छात्र आत्महत्या पर सुप्रीम कोर्ट का संज्ञान, उम्मीद की किरण जगी..
छात्र आत्महत्या पर सुप्रीम कोर्ट का संज्ञान, उम्मीद की किरण जगी..

शैक्षणिक संस्थानों के लिए मानसिक स्वास्थ्य पर 15 दिशा-निर्देश अनिवार्य
नई दिल्ली, 11 अगस्त। देश में बढ़ते छात्र आत्महत्या के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताते हुए मानसिक स्वास्थ्य को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग माना है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने छात्रों की सुरक्षा के लिए 15 अहम दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
निर्देशों के अनुसार, 100 या उससे अधिक छात्रों वाले संस्थानों में प्रशिक्षित काउंसलर, मनोवैज्ञानिक या सोशल वर्कर की नियुक्ति अनिवार्य होगी। कम संख्या वाले संस्थानों को भी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से सहयोग लेना होगा। लापरवाही को अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने यौन शोषण, रैगिंग और जाति, लिंग, धर्म, यौन रुझान या दिव्यांगता के आधार पर होने वाले उत्पीड़न के खिलाफ सशक्त, गोपनीय और सुलभ शिकायत तंत्र बनाने का आदेश दिया। पेरेंट-टीचर मीटिंग में मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों को शामिल करना भी अनिवार्य होगा।
एनसीआरबी के मुताबिक, 2022 में 13,044 छात्रों ने आत्महत्या की, जिनमें से 2,248 ने परीक्षा में असफल होने के कारण जान दी। कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें दो महीने में स्थाई नियम बनाएं।
मुख्य दिशा-निर्देश
मानसिक स्वास्थ्य नीति बनाना अनिवार्य।
प्रशिक्षित काउंसलर और साइकेट्रिस्ट की नियुक्ति।
हॉस्टलों में छत, बालकनी और पंखों पर सुरक्षा उपकरण।
मेरिट आधारित बैच सिस्टम खत्म।
आपातकालीन हेल्पलाइन व अस्पताल सुविधा।
साल में दो बार स्टाफ की मानसिक स्वास्थ्य ट्रेनिंग।
अभिभावकों के लिए जागरूकता अभियान।
विशेषज्ञों की राय
अधिवक्ता अनुराग जैन ने कहा, “मानसिक स्वास्थ्य को गरिमा और सुरक्षा से जोड़ना प्रगतिशील कदम है।” अधिवक्ता अपूर्वा सिंघल के अनुसार, यह निर्णय छात्रों में आत्महत्या के मामलों को कम करने में मदद करेगा।
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सुमित गुप्ता ने चेताया कि कई बार परिवार के दबाव में इलाज बंद करना घातक साबित होता है, इसलिए समाज में जागरूकता बेहद जरूरी है।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट