रक्षाबंधन (09 अगस्त) पर विशेष: भाई बहन के पवित्र संबंध का प्रतीक है रक्षाबंधन…

रक्षाबंधन (09 अगस्त) पर विशेष: भाई बहन के पवित्र संबंध का प्रतीक है रक्षाबंधन…

-मुकेश तिवारी-

श्रावणी और रक्षाबंधन प्रति बर्ष श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाये जाते है। गौरतलब है कि दोनों को ही एक ही पर्व समझ लिया जाता है। लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं। असल में दोनों भिन्न-भिन्न पर्व है। श्रावणी विशेष रूप से ब्राह्मणों और पंडितों का पर्व है जिसे शास्त्रों में ऋषि तर्पण और उपाकर्म नाम से भी पुकारा गया है। यह अति प्राचीन पर्व है और इसे वैदिक पर्व का नाम दिया गया है। इस दिन यज्ञोपवीत धारण करने का भी चलन है। आज भी बंगाल, उड़ीसा, दक्षिण भारत और गुजरात में इस दिन का बहुत महत्व है।
रक्षाबंधन की प्रथा कब, कहां और कैसे प्रारंभ हुई, इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन इस संदर्भ में देवताओं और असुरों की एक पौराणिक कथा अवश्य प्रसिद्ध है। एक बार देवताओं और असुरों में भीषण युद्ध छिड़ गया। शनै शनै जो परिणाम सामने आए, उनसे यह लगा कि देवता युद्ध में पराजित हो रहे हैं। युद्ध में असुरों की विजय निश्चित थी। इन्द्र की हताशा की कोई सीमा नहीं थी। इसी हताशा के दौरान एक दिन इन्द्र अपनी सभा में बैठे -बैठे अपने गुरु बृहस्पति से इस बारे में विचार विमर्श करने में व्यस्त थे। सभा में इंद्र की पत्नी इंद्राणी भी बैठी हुई थी। गुरुदेव कुछ बोले, इससे पहले ही वह उठी और बिना किसी हिचकिचाहट के बोली इसका उपाय मुझे मालूम है। मैं वचन देती हूं कि जी देवताओं की ही होगी।
सभा के अगले दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। इंद्राणी ने शास्त्रीय विधि से एक रक्षा कवच तैयार किया और उसे इंद्र की कलाई पर बांध दिया। रक्षा कवच को बांधकर जैसे ही इन्द्र युद्ध में गए तो असुर अपने प्राण बचाए रखने के लिए युद्ध के मैदान से भागने लगे। अन्त में उस रक्षा कवच के प्रभाव से देवता की विजय हुई और असुरों की पराजय। लोगों का मानना है कि धर्मशास्त्र के मुताबिक तैयार किए हुए रक्षा -कवच को श्रावण की पूर्णिमा के दिन बांधने से व्यक्ति साल भर स्वस्थ सुखी और विजयी रहता है।
सच तो यह है कि रक्षाबंधन की शुरुआत कब, कहां और कैसे भी हुई हो, लेकिन वर्तमान में उक्त त्योहार भाई बहन के पवित्र संबंध का प्रतीक बन गया है। भाई चाहे बहन से दूर किसी अन्य शहर में रहता हो, इस दिन तो बहन भाई की कलाई पर राखी बांधेगी ही। राखी का महत्व इसी बात से जाना जा सकता है यदि कोई अपरिचित लड़की भी किसी लड़के की कलाई पर राखी बांध दे तो उस दिन के बाद वे दोनों भाई बहन बन जाते हैं। खून के रिश्ते से कहीं पवित्र, कहीं पक्का है यह रिश्ता।
रक्षाबंधन से एक पखवाड़े पहले हाट बाजार से लेकर माॅल तरह-तरह की रंग बिरंगी राखियों से पट जाते हैं। छोटे शहरों में तो राखियों का पूरा का पूरा अस्थाई बाजार लग जाता है। हर तरफ राखियां ही राखियां। लाल पीली नीली हरी गुलाबी राखियां छोटी बड़ी राखियां गोल- चौरस राखियां।
इन सजी-धजी दुकानों पर खरीदती छोटी बड़ी लड़कियों और बड़ी बूढ़ी महिलाओं में एक साथ उल्लास दिखाई देता है। जैसी रंग बिरंगी सुंदर राखियां, वैसे ही रंग-बिरंगे सुंदर कपड़े पहने राखियां खरीदती बहने। हालांकि दाम बढने के कारण चांदी की राखियों की मांग इस बार 20प्रतिशत तक कम है, वहीं सोने की राखी के खरीद करने वाली बहने इस बार चांदी के धागे और नगर। वाली राखी खरीद रही है वे ऐसा सोनेके दाम अधिक होने की वजह से कर रही है। 2रुपए से लेकर 250मूल्य तक की राखियां जिस किसी दुकान से चाहो, खरीद लो।
वहीं रक्षा बंधन से दो तीन दिन पहले मिठाई की दुकानें भी इतनी सज-धजकर तैयार हो जाती है कि एक नजर देखो तो आकषिर्त हुए बिना नहीं रह सकते, लड्डू बर्फी, घेवर, रसगुल्ले, गुलाब जामुन, चमचम, बालूशाही, काजू कतली, सहित अनेक प्रकार की मिठाईयां ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए काउंटर पर सजा कर क़रीने से रख दी जाती है।
रक्षाबंधन के दिन बहनों का उल्लास देखते ही बनता है। इस दिन बहनें अल सुबह उठकर नहा धोकर नये वस्त्र पहन कर दिया तैयार हो जाती है। भाई भी अपनी बहन से टीका कराने के लिए नहा-धोकर तैयार हो जाता है। जब तक राखी नहीं बंधती तब कुछेक बहिन और भाई कुछ भी खाते पीते नहीं है। बहने एक थाली लेकर उसमें टीका करने के लिए रोली, चावल, नारियल, मिठाई और राखी रखकर भाई कलाई पर राखी बधाने के भाई के पास जा पहुंचती है। बहिन के हाथ में राखी की थाली देखकर भाई मुस्काते हुए अपनी कलाई आगे बढा देता है। बहन सबसे पहले भाई के माथे पर रोली और चावल का टीका लगाती है, फिर भाई की कलाई पर राखी बांध देती है और इसके पश्चात वह भाई के हाथ में नारियल थमा कर उसके मुंह में मिठाई का टुकड़ा रख देती है। भाई भी पूरी श्रद्धा के साथ बहन का चरण स्पर्श कर बहन के हाथ में रुपए थमा देता है।
बहन भी भाई की सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हुए मंगल कामना करती है, वहीं भाई भी बहन की रक्षा का वचन देता है।
रक्षाबंधन के दिन ब्राह्मण और पुरोहित भी अपने अपने यजमानों को राखी बांधते हैं जिसके एवज में उन्हें यजमान से दक्षिणा मिलती है। कहीं-कहीं इस दिन घर की दीवार पर एक चित्र सा बना कर उसकी पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। सेवई और खीर का नैवेदय चढ़ाया जाता है और घर के द्वार के दोनों तरफ हाथ का छापा लगाकर उस पर राखियां चिपकाई जाती है। घर के बड़े-बूढ़े व्यक्ति पूजा करने के पश्चात अपने से छोटों की कलाई पर राखी बांधते हैं।
हिन्दुस्तान एक विशाल देश है। यहां एक ही त्योहार को पृथक -पृथक स्थान पर मनाने में थोड़ा बहुत फर्क आ जाना स्वाभाविक है। इसलिए रक्षाबंधन को भी पृथक पृथक स्थानों पर थोड़े बहुत अंतर के साथ बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसके अनेकों नाम भी है, राखी, रखड़ी, और सलूनी।
खास बात यह है कि राॅखी के त्योहार में न पटाखे छूटते हैं, न ढोलक बजते हैं, न रंग-बिरंगी रोशनी से घरों को सजाया जाता है, लेकिन फिर भी रक्षाबंधन के त्यौहार का अपना अलग ही महत्व है। कहने को तो बस इतनी सी बात है की बहन हर साल सावन की पूर्णिमा को अपने भाई कि कलाई पर राखी बांधती है और उसके एवज में भाई भी अपनी बहन की रक्षा का संकल्प लेते हुए, कुछ रुपए बहन के हाथ में दक्षिण के तौर पर थमा देता है। लेकिन अगर इस छोटी सी लगने वाली बात का मूल्यांकन किया जाए तो शायद सारी दुनिया की दौलत भी इसकी आगे तुच्छ जान पड़े। हमारे इतिहास में ऐसे सैंकड़ों उदाहरण हैं जिनसे कलाई पर बंधे इन धागों का महत्व जाना जा सकता है।
महारानी कर्मवती या करुणावती की गाथा इसके लिए अत्यधिक बहुचर्चित है। भगवान श्रीकृष्ण को द्रोपती ने रक्षा सूत्र बांधा भगवान श्रीकृष्ण ने राखी का मान रखना सिखाया। भगवान श्री कृष्ण ने सभी कर्तव्यो में बहन द्रोपती की हर वक्त हर परिस्थितियों में रक्षा की। एक बार गुजरात के शासक बहादुर शाह ने कर्मवती के राज्य पर आक्रमण कर दिया। बहादुर शाह की अपार सैनिक शक्ति देखकर कर्मवती की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा। तभी उसे बादशाह हुमायू की याद आई और उसने हुमायूं को राखी भेजकर उसे अपना भाई बना लिया। देखा जाए तो हुमायू को सामान्यता बहादुर शाह जफर के विरुद्ध हिंदू स्त्री की सहायता नहीं करनी चाहिए थी, लेकिन यह राखी का आकर्षण ही था कि हुमायूं तत्काल अपनी फौज को लेकर मेवाड़ पहुंच गया। लेकिन तब तक रानी जौहर व्रत करके अपने प्राण दे चुकी थी। बहन के जौहर कर लेने का हुमायूं को बहुत दुख हुआ। लेकिन उसने बहादुर शाह का पीछा नहीं छोड़ा और आखिर में उसे करारी हार दी। मुगल इतिहास में इसके बाद भी कई सम्राटों ने हिंदू बहनों से राखी बंधवा कर उनका सम्मान किया है। राजस्थान में राखी बांधने वाली बहन की लाज के लिए कुर्बान होने वाले वीर भाइयों की अनेक कथाएं हमारे इतिहास में भरी पड़ी है। इसी तरह से स्वतंत्रता संग्राम के समय में भी बहने अपने भाई को राखी बांधकर आजादी के लिए मर मिटने के लिए भेजती थी। संभवत इसी भावना से बंगाल के प्रसिद्ध नेता सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने राखी के त्योहार को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने का काफी प्रयास किया था। जिस बहन का भाई न हो या जी भाई की बहन न हो उसके दुख की कल्पना आप सहज ही कर सकते हैं। राखी के दिन यदि ईश्वर भाई बहन से कोई वर मांगने को कहे तो वे अपने लिए किसी सुख या ऐश्वर्य की बजाय भाई अथवा बहन की मांग करेंगे।
(लेखक मध्य प्रदेश शासन से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है)
(यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है)

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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