रक्षाबंधन (09 अगस्त) पर विशेष: बहन- भाई के अमर प्रेम का पवित्र पर्व है रक्षाबंधन!….

रक्षाबंधन (09 अगस्त) पर विशेष: बहन- भाई के अमर प्रेम का पवित्र पर्व है रक्षाबंधन!….

-डॉ. श्रीगोपाल नारसन-

रक्षाबंधन बहन -भाई के अमर प्रेम एवं विश्वास के प्रतीक का पवित्र पर्व है। दोनों का एक दूसरे के प्रति हित चिंतक होना और जब भी आवश्यकता हो, मदद व रक्षा के लिए तत्पर रहना ही इस रिश्ते में मिठास पैदा करता है। भाई-बहन दोनो को संकल्प करना चाहिए कि परमात्मा इतनी शक्ति दे कि परमात्म अनुभूति के साथ पवित्रता का संकल्प करते हुए हम देव समान बनें। यही रक्षाबंधन की मूल अवधारणा है। चूंकि हम सभी परमात्मा की संतान हैं और परमात्मा हमारा पिता है। इसी कारण उसकी संतान होने के नाते हम आपस में भाई-भाई या फिर भाई बहन एक दूसरे को मानें और समझें तथा आवश्यकता पड़ने पर एक दूसरे की रक्षा करें इसी संकल्प को बंधन रुप में मानते हुए यह पर्व मनाया जाता है। भाई-बहन का रिश्ता चूंकि सबसे पवित्र और पावन है चाहे बहन हो या भाई दोनों ही एक दूसरे के प्रति शुभ भावना रखते हैं और एक दूसरे की प्रगति चाहते हैं, वह भी बिना किसी स्वार्थ के। हालांकि रक्षाबंधन पर जब बहन भाई को राखी बांधती है तो भाई बदले में उसे उपहार देता है। ऐसा इसलिए है ताकि भाई बहन के बीच प्रेम और सदभाव उत्तरोत्तर बढ़ता रहे और कम से कम एक दिन ऐसा हो जब भाई बहन एक दूसरे से मिलकर खुशी मना सकें।
आज भी गांव देहात में पंडित द्वारा अपने यजमानों को रक्षासूत्र यानि राखी बांधने का प्रचलन है। इसके पीछे भी यही अवधरणा है कि पंडित को विद्वान और पवित्र माना जाता है और वह रक्षासूत्र बांधने के पीछे अपने यजमान को बुद्धिमान और पवित्र रहने का संदेश देता है। रक्षाबंधन के पर्व पर जब बहन भाई की कलाई पर राखी बांधती है तो उन्हें विकारों को त्यागने का संकल्प लेना चाहिए। जिसकी शुरूआत प्रति रक्षाबंधन एक विकार को त्यागने के संकल्प के साथ हो सकती है। क्योंकि मनुष्य में व्याप्त विकार एक नहीं अनेक होते हैं। जिनमें काम क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार जहां प्रमुख हैं वहीं ईष्र्या, द्वेष, घृणा जैसे विकार भी मनुष्य की प्रगति में बाधक हैं। सच पूछिए तो रक्षाबंधन है ही पवित्रता का पावन पर्व, जिसमें भाई बहन के पवित्र रिश्ते की रक्षा के लिए रक्षासूत्र बांधने की वर्षों से परम्परा है। इस पर्व के माध्यम से जहां हम अपनी बहनों की सुख समृद्धि और प्रगति की कामना करते हैं वहीं बहन भी अपने भाई की दीर्घायु की कामना के साथ-साथ उसकी उन्नति की प्रार्थना करती हैं। रक्षा बन्धन शब्द से ही इस पर्व के अर्थ का पता चल जाता है। भावनात्मक रिश्तो को बनाये रखने और एक दूसरे की रक्षा को कृतसंकल्पित होने के अवसर का नाम है रक्षा बन्धन। भले ही आज यह पर्व भाई बहन की रक्षा के संकल्प के निमित मनाया जाता हो और बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उनसे संकट के समय रक्षा करने का वरदान लेती हो परन्तु यह वास्तव में हर रिश्ते को पवित्रता की डोर में बांधकर रक्षा के संकल्प का पर्व है। भाई बहन ही नही पति पत्नी भी इस रक्षा सूत्र से बंधे है ऐसा शास्त्रों में उल्लेख मिलता है। स्वर्गलोक के राजा इन्द्र की पत्नी शचि ने वैदिक मन्त्रों से अभिमन्त्रित रक्षा सूत्र अपने पति की भुजा पर बांधकर उनकी शत्रुओं से रक्षा की थी। तभी से प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षाबन्धन का पर्व मनाया जाने लगा है। हालाकि अब यह पर्व भाई बहन का त्यौहार बन गया है और बहन ही अपने भाई की दीर्घायु की कामना व रक्षा की अपेक्षा के साथ भाई की कलाई पर राखी बांधती है और भाई अपनी बहन को शगुन देकर उसकी खुशहाली की कामना करता है। परन्तु भविष्य पुराण के अनुसार रक्षाबन्धन की वास्तविक शुरूआत इन्द्र की पत्नी शचि द्वारा अपने पति को राखी बांधने से हुई थी।
रानी कर्णावती ने मुगल शासक हुमांयु को सकंट के समय राखी भेजकर उनसे अपनी रक्षा की याचना की थी। हुमायुं ने भी प्रेम और स्नेह की प्रतीक राखी के बधंन को निभाते हुए कण्र्ाावती की रक्षा अपने प्राणों की बाजी लगाकर की थी। इसी तरह रूपनगर की राजकुमारी की राखी की लाज रखने के लिए महाराजा राजसिंह ने मुगल शासक औरंगजेब से लौहा लिया था। इसी दिन अनिष्ट शमन के लिए भगवान श्री कृष्ण का रक्षा बन्धन किया गया था। यानि रक्षा बन्धन का पर्व भावनात्मक रिश्तों को मजबूत करने, भाई -बहन में प्यार और विश्वास बढाने तथा एक दूसरे की रक्षा को वचनबद्ध रहने का पर्व है। वही इस पर्व को बुराई छोडने के सकंल्प दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
प्रजापिता ब्रहमाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय इस पर्व को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाता है। ब्रहमाकुमारी बहनें समाज के शीर्ष पदों पर विराजित महानुभावों से लेकर आमजन तक राखी पर्व का संदेश उन्हें राखी बांधकर देती हैं। वें राखी बांधने के बदले कोई उपहार या नगदी कभी ग्रहण नहीं करती हैं अपितु चाहती हैं कि जिस भाई केो उन्होंने राखी बांधी है वह कम से कम अपने भीतर व्याप्त एक अवगुण का त्याग हमेंशा के लिए करें। तभी यह पर्व सार्थक माना जाता है। इस संस्था में रक्षाबंधन पर्व मनाने की शुरूआत 15 दिन पहले से ही हो जाती है और बाद तक चलती रहती है। ताकि समाज अवगुणों से मुक्त हो और एक स्वर्णिम सद्गुणी समाज की स्थापना हो सके। रक्षाबंधन यानी भाई बहन का त्यौहार। कहा जाता है कि भाई और बहन के रिश्ते से पवित्र दुनिया में कोई भी रिश्ता नहीं होता। इस दिन बहनें अपने भाईयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई जीवनभर उसकी रक्षा का प्रण लेता है। हालांकि सभी दिन परमपिता परमात्मा के बनाये हुए हैं जब परमात्मा की कृपा होती है तो सभी कार्य स्वतः ही सिद्ध होने लगते हैं। लेकिन फिर भी सनातन धर्म के अनुसार कुछ दिनों का महत्व अलग होता है, जिसे हम त्यौहार कहते हैं। जबकि परमात्मा की दृष्टि में सभी दिन एक जैसे ही होते हैं। उनमें विशेष कुछ है तो वह है शुभ और अशुभ लग्न। जिसे हम साधारण भाषा में शुभ व अशुभ समय भी कहते हैं। जिसके बारे में जानकारी प्राप्त कर सभी बहनें अपने भाईयों की कलाई पर शुभ समय में ही रक्षासूत्र को बांधने का प्रयास करे। यदि शुभ लग्न अनुसार रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाए तो अधिक फलदायी हो जाता है। हालांकि यह ऐसा पर्व है जिसे कभी भी और किसी भी समय व किसी भी दिन मनाया जा सकता है।
(लेखक सामाजिक मुद्दों एवं पर्वो के चर्चित साहित्यकार है)

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