व्हीलचेयर के पहिये..
व्हीलचेयर के पहिये..
-केतन मिश्रा-

मैं जोकर का इक मुखौटा पहन
तुम्हारी नस काटती यादों की व्हीलचेयर पर बैठा हूं,
जिसे धकेलता है मेरा बीता हुआ वो कल
जिसमें हमने इक उजले शहर में घर बसाने के सपने देखे थे.
मैं बेवकूफ था,
एक चमकती गली में घुस आया
उसको उजला समझ,
और अपने आज की मरम्मत करते करते
अपनी बाहें कटवा बैठा.
अब मैं किराए पर हंसी बांटता हूं
चढ़ाकर अपनी खानाबदोशी का जिल्द,
पसीने को निचोड़ मिला लेता हूं उसमें कुछ बोतल शराब,
और दुनिया कहती है
वो देखो, नशे की राह चलता एक और सड़कछाप
कल रात व्हीलचेयर के पहियों तले कुचला गया।।
(रचनाकार से साभार प्रकाशित)
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट


