है हिंदी यूं हीन।।
है हिंदी यूं हीन।।
-डॉ. सत्यवान सौरभ-

बोल-तोल बदले सभी, बदली सबकी चाल।
परभाषा से देश का, हाल हुआ बेहाल।।
जल में रहकर ज्यों सदा, प्यासी रहती मीन।
होकर भाषा राज की, है हिंदी यूं हीन।।
अपनी भाषा साधना, गूढ ज्ञान का सार।
खुद की भाषा से बने, निराकार, साकार।।
हो जाते हैं हल सभी, यक्ष प्रश्न तब मीत।
निज भाषा से जब जुड़े, जागे अन्तस प्रीत।।
अपनी भाषा से करें, अपने यूं आघात।
हिंदी के उत्थान की, इंग्लिश में हो बात।।
हिंदी माँ का रूप है, ममता की पहचान।
हिंदी ने पैदा किये, तुलसी ओ” रसखान।।
मन से चाहे हम अगर, भारत का उत्थान।
परभाषा को त्यागकर, बांटे हिंदी ज्ञान।।
भाषा के बिन देश का, होता कब उत्थान।
बात पते की जो कही, समझे वही सुजान।।
जिनकी भाषा है नहीं, उनका रुके विकास।
परभाषा से होत है, हाथों-हाथ विनाश।।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट