साउथ कोरिया : विपक्ष ने यून की माफी को बताया ‘निराशाजनक’ , कहा- इस्तीफे या महाभियोग के अलावा कोई रास्ता नहीं…
साउथ कोरिया : विपक्ष ने यून की माफी को बताया ‘निराशाजनक’ , कहा- इस्तीफे या महाभियोग के अलावा कोई रास्ता नहीं…
सियोल, मुख्य विपक्षी ‘डेमोक्रेटिक पार्टी’ (डीपी) ने शनिवार को दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल द्वारा इस सप्ताह की गई आपातकालीन मार्शल लॉ घोषणा के संबंध में मांगी गई माफी को निराश करने वाला बताया। पार्टी ने कहा कि उनके तत्काल इस्तीफे या महाभियोग के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
योनहाप समाचार एजेंसी के अनुसार, प्रतिनिधि ली जे-म्यांग ने नेशनल असेंबली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “राष्ट्रपति के तत्काल इस्तीफे या महाभियोग के माध्यम से तुरंत पद को त्यागने के अलावा कोई रास्ता बचा नहीं है।”
ली की यह टिप्पणी यून द्वारा सार्वजनिक माफी मांगने के बाद आई है।
यून ने कहा था कि मार्शल लॉ लगाने के लिए वो “ईमानदारी से खेद” प्रकट करते हैं और यकीन दिलाते हैं कि आगे ऐसी कोई कोशिश नहीं की जाएगी।
डीपी प्रमुख ने कहा कि यून की टिप्पणी “लोगों की अपेक्षाओं के बिल्कुल विपरीत” थी और इसने “लोगों में विश्वासघात और गुस्से की भावना को और बढ़ा दिया है”।
नेशनल असेंबली यून के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर मतदान करेगी। 3 दिसंबर को राष्ट्रपति ने मार्शल लॉ लगाने के बाद उसे छह घंटे में हटा भी दिया था। इस आपातकालीन स्थिति ने दक्षिण कोरिया में राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर दी थी।
शनिवार को, ली ने नेशनल असेंबली के सदस्यों से महाभियोग प्रस्ताव पारित करने का आग्रह किया। साथ ही सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों से इसका समर्थन करके साहस दिखाने की अपील की।
ली ने संवाददाताओं से कहा, “परिणाम की भविष्यवाणी करने के बजाय, यह जरूरी है कि प्रस्ताव को मंजूरी दी जाए।”
उन्होंने बताया कि निर्णय सत्तारूढ़ पीपुल पावर पार्टी (पीपीपी) के सांसदों के रुख पर निर्भर करता है।
प्रस्ताव को पारित करने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है, जिसके लिए कम से कम आठ पीपीपी सांसदों के समर्थन की आवश्यकता होगी।
ली ने सांसदों से साहस दिखाने की अपील करते हुए कहा, “व्यक्तिगत संवैधानिक संस्थाओं के रूप में, सांसदों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि वे क्यों मौजूद हैं और उनके कर्तव्य क्या हैं?”
“लोग महाभियोग की आवश्यकता को जानते हैं और इसकी मांग कर रहे हैं। पीपीपी के सांसद समझते हैं कि न्याय का क्या मतलब है, लेकिन उन पर न्याय और लोगों की इच्छा के विरुद्ध काम करने का दबाव डाला जाता है।”
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट