विद्युत और सूर्य

विद्युत और सूर्य

सूर्य उदास था

उसका सब कुछ

उजास था

किन्तु ये अधिकार

उसका छिना था

बिजली ने विश्वास

उसका छला था

सूर्य को अपनी प्रतिष्ठा

दांव पर लगना खला था

रोशनी ने छीन लिये थे

उसके ये अधिकार सारे

जो कि उसके थे सहारे

उगते सूर्य को नमन करते

गुम गये इन्सान सारे

सूर्य की निश्चेतना में

चांद तारे बिन सहारे

सुबह हो, शाम छाये

लोग बैठे हैं घरों में

सूर्य आराधना के ढह

गये अरमान सारे

घट रहा था प्रताप सारा

सूर्य ने अपमान धारे

किन्तु यूं भी तप रहा है

सूर्य का सम्मान सारे

दिग्भ्रान्त जग को है संभलना

न भूले सूर्य के एहसान सारे

बिजली का है क्या भरोसा

कब छोड दें साथ सारे

सूर्य के निश्चित क्रम ने

छोडा नहीं है साथ जग का

जब भी छाया है अंधेरा

सूर्य लाया है सवेरा

आभासित कृत्रिम सी

रोशनी से

प्रकृति के न नियम तोडें..

(सभार: रचनाकार)

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