रामफल ऐसा फल है, जिसमें न तो बीज हाेता है और न ही छिलका : असंग देव महाराज..

रामफल ऐसा फल है, जिसमें न तो बीज हाेता है और न ही छिलका : असंग देव महाराज..

अयाेध्या। तीर्थनगरी अयाेध्याधाम की प्रतिष्ठित पीठ श्रीरामवल्लभाकुंज, जानकीघाट के प्रांगण में चल रहे सुखद सत्संग कथा में तृतीय दिवस संत असंग देव महाराज ने श्रद्धालुओं को रसपान कराते हुए कहा सद्गुरु कबीर रामरस की महिमा समझाते हैं। वह कहते हैं कि रामफल ऐसा फल है, जिसमें न तो बीज हाेता है और न ही छिलका। उसमें सिर्फ रस ही रस भरा हाेता है। जाे न कभी टपकता है। ऐसा भी नहीं कि यदि हम उस रामरूपी वृक्ष के नीचे खड़े हाे जाएं और उस रामरस में भीग जायेंगे। उसमें न ताे हम भीगेंगे, न ही हमारा अंग। जाे दास व भाैरा बनेगा वह भी इस रस का पान नहीं करता है। भाैरा सिर्फ उस रामरस के इर्द-गिर्द भुनभुना सकता है। उसका पान नहीं कर पायेगा। उस रामरूपी रस काे सुख पंक्षी ही अपनी चाेंच से पान कर सकता है। अर्थात जिसके पास श्रद्धा रूपी चाेंच है। वही रामरस रूपी रस का पान कर सकता है।

श्रद्धा विहीन व्यक्ति को न राम में और न दर्शन में रस आता है। श्रद्धावान काे ज्ञान प्राप्त हाेता है। बिना श्रद्धा के ज्ञान नहीं है। जिसके अंदर अगर श्रद्धा नहीं है। ताे उसे कितना भी उपदेश सुनाओ। ताे वहां उसकी मर्यादा खत्म हाेती है। राष्ट्रीय संत ने कहाकि यदि हम दुख व चिंता में रहते हैं। ताे वह चेहरे की लालिमा से पढ़ा जा सकता है कि हम कितने तनाव में हैं। चेहरा छिपाना कठिन है। लेकिन असंभव नहीं। आंखों काे देखकर पढ़ा जा सकता है। हमारे अंदर क्या भावना है। भावनाओं को देखना हमारे अंदर की किताब है। जिसे देखने के तरीके से पढ़ा जा सकता है। उन्होंने कहा कि हमारी हंसी में भी अंतर है। एक पवित्रता और दूसरी मलीनता भरी हंसी हाेती है। मनुष्य का हाव-भाव का प्रतिफल उसके भीतर की भावनाओं को प्रदर्शित करता है। अगर हमारे कर्म सीधे हैं। ताे भाग्य भी सीधे रहेंगे। क्याेंकि कर्म से ही भाग्य बनता है। कर्म बछड़ा व आत्मा गाय है। जिस प्रकार हजारों गायाें के बीच में बछड़ा अपनी मां काे ढूंढ लेता है एवं दूध पीने लगता है। उसी तरह हजारों रूपी कर्म के बाद वह बछड़ा हमें ढूंढ लेता है। हमें अपना कर्म करते रहना चाहिए। पैसा परमात्मा नहीं है। पैसाें से जीवन, यापन व काेई चीज श्रृजन किया जा सकता है। वह सिर्फ उसी के लिए है। पैसा दाे प्रकार से कमाया जाता है। पहला पाप व दूसरा पुण्य करके। अन्याय से कमाया धन कभी फलता नहीं।

संत असंग देव महाराज ने कहा कि मरने से लाेग बहुत डरते हैं। काेई मरना नहीं चाहता है। जाे आया है वह जायेगा। काेई अजर-अमर नहीं है। लेकिन इस संसार में रहते-रहते लाेगाें काे माेह हाे जाता है। वह माया-आशक्ति में डूब जाते हैं। मनुष्य काे अपने जीवन में ही दान-पुण्य करना चाहिए। तृष्णा वैतरणी नदी है। दान ही हमें भवसागर काे पार कराता है। तीर्थ नगरी में दान का प्रभाव 10 गुना बढ़ जाता है। इसलिए दान-पुण्य अवश्य करना चाहिए। तीर्थ में स्नान, भगवान का दर्शन करें। यदि कहीं सत्संग हाे रहा है। ताे वह जरूर जाएं। श्रीरामजन्मभूमि की वजह से अयाेध्याधाम का महत्व लाखाें गुना बढ़ जाता है। जब सद्गुरु मिलते हैं ताे बहुत सुख मिलता है। इस संसार में बहुत ही सुख है। दुख ताे मिलता नहीं। लेकिन कुछ लाेग ईर्ष्या, द्वेष, गुस्सा आदि करके दुख पैदा करते हैं। हम सब नर्क काे भी स्वर्ग बना सकते हैं।

इस अवसर पर श्रीरामवल्लभाकुंज अधिकारी राजकुमार दास, वैदेही भवन महामंडलेश्वर महंत रामजी शरण, कबीर मठ के महंत उमाशंकर दास, कार्यक्रम प्रभारी प्रवीन साहेब, हरीश साहेब, रवींद्र साहेब, शील साहेब समेत देश के विभिन्न प्रांताें से आए बड़ी संख्या में भक्तगण अमृतमयी सुखद सत्संग कथा का श्रवण कर रहे थे।

दीदार ए हिन्द की रिपोर्ट

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