भरा जलन का खार!!

भरा जलन का खार!!

-सत्यवान सौरभ-

घर-घर में मनभेद है, बचा नहीं अब प्यार!
फूट-कलह ने खींच दी, हर आँगन दीवार!!
बड़े बात करते नहीं, छोटों को अधिकार!
चरण छोड़ घुटने छुए, कैसे ये संस्कार!!
स्नेह और आशीष में, बैठ गई है रार!
अरमानों के बाग़ में, भरा जलन का खार!!
कहाँ प्रेम की डोर अब, कहाँ मिलन का सार!
परिजन ही दुश्मन हुए, छुप-छुप करे प्रहार!!
अगर करें कोई तीसरा, सौरभ जब भी वार!
साथ रहें परिवार के, छोड़े सब तकरार!!
बच पाए परिवार तब, रहता है समभाव!
दुःख में सारे साथ हो, सुख में सबसे चाव!!
बगुले से बगुला मिले, और हंस से हंस!
कहाँ छुपाने से छिपे, सच्चाई के अंश!!
चुप था तो सब साथ थे, न थे कोई सवाल!
एक सत्य बस जो कहा, मचने लगा बवाल!!
काम निकलते हो जहां, रहो उसी के संग!
सत्य यही बस सत्य है, यही आज के ढंग!!
नंगों से, नंगा रखे, बे-मतलब व्यवहार!
बजा-बजाकर डुगडुगी, करते नाच हज़ार!!
जपते ऐसे मंत्र वो, रोज सुबह औ’ शाम।
कीच -गंद मन में भरी, और जुबाँ पे राम।।
कौन पालता दुश्मनी, कौन बांटता प्यार।
शिक्षा-संस्कार सदा, दिखते हैं साकार।।
धन-दौलत से हैं बढे, सदा धरा पर पाप।
केवल अच्छी शिक्षा ही, मिटा सके अभिशाप।।

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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