बाल कहानी : मिंकी बन्दर की होली.

बाल कहानी : मिंकी बन्दर की होली.

-हरीश कुमार ‘अमित’-

अब तक की हर होली में मिंकी बन्दर का काम दूसरों को ऐसे गहरे रंगों से रंग देना होता था जो कई-कई दिन तक छूटते नहीं थे. सिर्फ़ यही नहीं, वह होली के बहाने दूसरों को कीचड़ वाले पानी से सराबोर करने से भी नहीं चूकता था, मगर इस साल होली आने से कई दिन पहले ही उसने यह घोशणा कर दी थी कि इस बार वह रंगों और कीचड़ वाली होली नहीं खेलेगा.

इस बार की होली पर उसने अपने दोस्तों को अपने घर जलपान के लिए बुलाया था. उसने यह भी कहा था कि कोई दोस्त उसे रंग वगैरह न लगाए क्योंकि इस बार वह अलग तरह की होली मनाना चाहता है. मिंकी बन्दर की बात का उसके दोस्तों पर भी असर हुआ और उन्होंने भी रंगोवाली होली न खेलने की बात सोच ली.

मिंकी बन्दर के निमन्त्रण के अनुसार होली वाले दिन पिंकू खरगोश, टीटू पिल्ला, ननकू चूहा, पिनपिन लोमड़ और बंटी गीदड़ सुबह नौ बजे जलपान के लिए मिंकी के यहाँ पहुंच गए. जैसे ही उन्होंने मिंकी के घर का दरवाज़ा खटखटाया, उसने झट-से दरवाज़ा खोल दिया. मिंकी के दोस्त मन-ही-मन डर रहे थे कि कहीं वह पिछले वर्शों की तरह उन पर रंगों और कीचड़ की बौछारें न कर दे, मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. इससे दोस्तों के मन का डर दूर हो गया.

मिंकी ने अपने दोस्तों को सोफे पर बिठाया. फिर वह रसोईघर से गुजिया और गुलाबजामुन की दो प्लेटें ले आया. पहले उसने गुजिया की प्लेट सबके आगे की. मिंकी के सब दोस्तों ने एक-एक गुजिया उठा ली और उसे खाने लगे. गुजिया बड़ी मीठी और स्वादिश्ट थी. उसके बाद मिंकी ने गुलाब जामुन वाली प्लेट आगे बढ़ाई. सब जानवरों ने एक-एक गुलाब जामुन उठा लिया.

तभी मिंकी कहने लगा, ‘‘दोस्तो, गुलाब जामुन को खाने का असली मज़ा तो तभी आता है जब उसे पूरे-का-पूरा मुँह में डालकर गपागप खाया जाए.’’

मिंकी की बात सुनकर उसके दोस्तों ने पूरे-का-पूरा गुलाब जामुन मुँह में डाल दिया और उसे गपागप खाने लगे, मगर यह क्या. गुलाब जामुन तो मीठा था ही नहीं. ऐसा लगता था जैसे उसे तलने के बाद नमक के गाढ़े घोल में डुबोकर रखा गया हो.

पिंकू खरगोश बोला, ‘‘यह गुलाब जामुन है या नमक का ढेला!’’

बंटी गीदड़ और बाकी दोस्तों ने भी पिंकू की हाँ में हाँ मिलाई.

इस पर मिंकी भोली-सी सूरत बनाते हुए कहने लगा, ‘‘ओ हो, लगता है गुलाब जामुनों के लिए चाशनी बनाते समय गलती से चीनी की जगह नमक पड़ गया. माफ़ी चाहता हूँ दोस्तो. मैं तुम लोगों के लिए गुजिया की एक और प्लेट लाता हूँ. गुजिया से तुम लोगों के मुँह का स्वाद बदल जाएगा.’’

यह कहकर मिंकी गुजिया की एक और प्लेट ले आया. सब दोस्तों ने जल्दी से एक-एक गुजिया उठा ली और गपागप खाने लगे. लेकिन यह क्या? गुजिया में तो लाल मिर्च का पाउडर भरा था. मिंकी के दोस्तों का मिर्चों के मारे बुरा हाल हो गया. वे ज़ोर-ज़ोर से खाँसने लगे और उनकी आँखों और नाक से पानी बहने लगा.

उन सबकी यह दशा देखकर मिंकी बन्दर भोला-सा मुँह बनाते हुए कहने लगा, ‘‘ओह, लगता है गुजिया बनाते समय गलती से मिर्चें भी पड़ गई हैं. तुम लोग घबराओ नहीं. मैं अभी तुम सबके लिए शर्बत लाता हूँ. उसे पीने के बाद तुम ठीक हो जाओगे.’’

यह कहकर मिंकी बन्दर रसोईघर में चला गया. कुछ देर बाद वह लौटा तो उसके हाथ में एक ट्रे थी जिसमें शर्बत से भरे पाँच गिलास थे. मिर्चों के मारे सभी दोस्तों का हाल इतना बुरा था कि उन्होंने कुछ भी सोचे-समझे बिना ट्रे से एक-एक गिलास उठा लिया और गटागट पीने लगे.

मगर यह क्या? शर्बत में तो ख़ूब सारा गर्म मसाला डाला हुआ था. शर्बत पीते ही दोस्तों की हालत और भी खराब हो गई. टीटू पिल्ला अभी काफी छोटा था. वह तो दर्द और परेशानी से चीखने लगा और फर्श पर गिरकर तड़पने लगा.

टीटू पिल्ले की ऐसी हालत देखकर पिंकू खरगोश, ननकू चूहा, पिनपिन लोमड़ और बंटी गीदड़ बहुत घबरा गए. टीटू पिल्ले की हालत और खराब होती जा रही थी.

बंटी गीदड़ बोला, ‘‘टीटू को किसी डॉक्टर के पास ले जाना पड़ेगा. कहीं इसकी हालत और न बिगड़ जाए.’’

इस पर पिंकू खरगोश कहने लगा, ‘‘मगर बंटी, होली के दिन कोई डॉक्टर मिलेगा कैसे?’’

‘‘अब क्या होगा मेरे प्यारे दोस्त का!’’ कहते-कहते ननकू चूहा मानो रोने लगा.

मिंकी बन्दर पास ही खड़ा उन सबकी बातें सुन रहा था. वह बोला, ‘‘डॉ. बबलू जिराफ़ मेरे मामा जी हैं. वे यहाँ से ज़्यादा दूर भी नहीं रहते. मैं उन्हें फोन करके यहाँ आने की विनती कर देता हूँ. वे अपनी कार में आ जाएँगे.’’

कुछ ही देर में डॉ.बबलू जिराफ़ होली के हुड़दंग से बचते-बचाते अपनी कार में मिंकी बन्दर के यहाँ पहुँच गए. मिंकी ने सारी बात डॉ. जिराफ़ को बता दी. उन्होंने टीटू पिल्ले का अच्छी तरह से मुआयना किया. फिर वे कहने लगे, ‘‘मैं ये दवाइयाँ दे रहा हूँ. इन्हें फौरन टीटू को खिला दो. इसके बाद भी इसे अगले तीन दिनों तक दवाई खिलानी पड़ेगी तभी यह पूरी तरह से ठीक हो पाएगा. अच्छा हुआ कि मुझे अभी बुला लिया, नहीं तो इसकी हालत बहुत ज़्यादा बिगड़ सकती थी. मगर मिंकी, यह बताओ कि होली के बहाने अपने दोस्तों पर इतना अत्याचार करते तुम्हें शर्म नहीं आई?’’

‘‘मगर यह सब तो होली का मज़ाक था, मामा जी!’’ मिंकी बन्दर कहने लगा.

‘‘मिंकी, होली का मतलब यह नहीं कि तुम जो जी में आए, करते रहो. होली वाले दिन पहले तुम रंगों और कीचड़ से दूसरों को परेशान किया करते थे और अब खाने की चीज़ों में नमक, मिर्च और गर्म मसाला मिलाकर लोगों को परेशान कर रहे हो. मान लो, अगर तुम्हारे साथ कोई इस तरह का मज़ाक करे, तो कैसा लगेगा तुम्हें?’’ डॉ. बबलू जिराफ़ कह रहे थे.

मिंकी बन्दर को बात समझ आती जा रही थी. उसने सिर झुका लिया. फिर वह कहने लगा, ‘‘मामा जी, मैं वाकई बहुत शर्मिंदा हूँ. मैं अपने दोस्तो से माफ़ी माँगता हूँ. आज के बाद ऐसी शरारत मैं कभी नहीं करूँगा.’’

‘‘ठीक है मिंकी, शाबाश! लेकिन तुम्हें इस शरारत की सज़ा भी मिलनी चाहिए.’’ डॉ. जिराफ़ बोले.

‘‘मुझे हर सज़ा मंज़ूर है, मामा जी.’’ मिंकी ने कहा.

‘‘तुम्हारी सज़ा यह है कि तुम अभी बढ़िया-सा जलपान बनाओगे और अपने सब दोस्तों को खिलाओगे.’’ डॉ. जिराफ़ ने कहा.

‘‘सिर्फ़ हमें ही नहीं, आपको भी खिलाना होगा.’’ पिनपिन लोमड़ बोला.

‘‘हाँ-हाँ, मामा जी, आप थोड़ी देर रूकिए. मैं अभी लाया बढ़िया-सा जलपान सबके लिए.’’ कहते हुए मिंकी बन्दर फुर्ती से रसोईघर की तरफ़ चला गया.

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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