बाल कहानी : जीत और हार….

बाल कहानी : जीत और हार….

-हरीश कुमार ‘अमित’-

पुल्कित और रवि बड़े गहरे दोस्त थे। स्कूल की परीक्षाए खत्म हुईं, तो उन दोनों ने सोचा कि कुछ ख़ास किया जाए। थोड़ा सोच-विचार करने के बाद उन्होंने तय किया कि पास की पहाड़ी की चोटी तक की चढ़ाई की जाए। बचपन से आज तक वे उस पहाड़ी को देखते आए थे, पर उस पर चढ़ाई करने का मौका कभी बना नहीं था। पहाड़ी अधिक ऊँची नहीं थी, फिर भी उसकी चोटी तक पहुंचने में करीब डेढ़ घंटे का समय तो लग ही जाना था। दोनों दोस्तों ने यह भी तय किया कि पहाड़ी की चोटी पर पहले पहुंच जाने वाले को दूसरा जना एक वीडियो गेम ख़रीदकर देगा।
आने वाले इतवार को पहाड़ी पर चढ़ने का फैसला हुआ। चढ़ाई पहाड़ी की तलहटी में उगे पीपल के पेड़ से सुबह के ठीक नौ बजे शुरू होनी थी। यह भी तय किया गया कि कोई जना दूसरे का नौ बजे के बाद इन्तज़ार नहीं करेगा। नौ बजे तक अगर उन दोनों में से कोई जना पीपल के पेड़ तक नहीं पहुंच पाया, तो दूसरा जना पेड़ के चबूतरे पर एक पत्थर के नीचे कागज़ के टुकड़े पर अपना नाम लिखकर रख देगा और पहाड़ी पर चढ़ना शुरू कर देगा।
अगले इतवार की सुबह नाश्ता-वाश्ता करके पुल्कित जब उस पीपल के पेड़ के पास पहुंचा, तो नौ बजकर पाँच मिनट हो चुके थे। रवि वहां नहीं था। पुल्कित के दिमाग़ में आया कि रवि ने नौ बजे पहाड़ी की चढ़ाई शुरू कर दी होगी। तभी पुल्कित ने देखा कि पेड़ के चबूतरे पर एक पत्थर के नीचे कागज़ का एक टुकड़ा पड़ा है। पुल्कित ने पत्थर हटाकर कागज़ को उठाया तो पाया कि उस पर रवि का नाम लिखा हुआ था।
अब पुल्कित को तो मानो पसीना ही आ गया। उसके दिमाग़ में आया कि रवि तो अब तक न जाने कितनी चढ़ाई चढ़ चुका होगा। उसका हौसला जैसे जवाब देने लगा।
फिर भी प्रतियोगिता में हिस्सा तो उसे लेना ही था। वह बुझे मन से पहाड़ी पर चढ़ने लगा। मगर उसकी चाल में तेज़ी और उत्साह नहीं था। वह जैसे कोई रस्म पूरी करने के लिए पहाड़ी की चढ़ाई चढ़ रहा था।
पुल्कित बार-बार अपना सिर उठाकर ऊपर की ओर देखने लगता कि रवि कहीं नज़र आ जाए, लेकिन पहाड़ी पर उगे पेड़-पौधों के बीच वह उसे देख नहीं पाया। पुल्कित को लगने लगा कि तेज़ चाल से चढ़ाई चढ़ते हुए रवि अब तक तो बहुत ऊपर पहुंच चुका होगा।
करीब आधी चढ़ाई चढ़ते-चढ़ते पुल्कित को थकावट-सी महसूस होने लगी। उसने अपनी चाल और धीमी कर दी। यही बात उसके दिमाग़ में आ रही थी कि जब प्रतियोगिता में उसे हारना ही है, तो फिर इससे क्या फर्क़ पड़ता है कि पहाड़ी की चोटी पर वह कितनी देर में पहुंचे।
सुस्त रफ़्तार से चढ़ाई चढ़ते हुए आखिरकार वह पहाड़ी की चोटी के काफी करीब पहुंच गया। उसे उम्मीद थी कि रवि वहां पहले से मौजूद होगा, मगर बड़े ध्यान से देखने पर भी रवि उसे कहीं नज़र नहीं आया।
‘‘रवि आखि़र गया कहा?’’ पुल्कित अभी यह सब सोच ही रहा था कि तभी तेज़-तेज़ कदमों से चढ़ाई चढ़ते हुए रवि उसके पास से निकलकर पहाड़ी की चोटी पर पहुंच गया। हैरानी से पुल्कित का मुँह खुले-का-खुला रह गया। इसका मतलब रवि उसके आगे नहीं, पीछे था। तभी यह बात भी उसके दिमाग़ में आई कि अगर उसने सुस्त चाल के बजाय चुस्त चाल से पहाड़ी की चढ़ाई चढ़ी होती, तो निश्चित तौर से वही इस प्रतियोगिता को जीतता।
कुछ देर में पुल्कित भी पहाड़ी की चोटी पर पहुंच गया, वहां पहुंचते ही उसने हैरानी से रवि से पूछा कि वह तो उससे पहले चला था, फिर उससे पीछे कैसे रह गया।
इस पर रवि बोला, ‘‘यार पुल्कित, जब सुबह नौ बजे मैं पहाड़ी की तलहटी पर पहुंचा, तो तुम वहां नहीं थे। मैंने जेब से अपना नाम लिखा कागज़ निकाला और उसे पीपल के पेड़ के चबूतरे पर पत्थर के नीचे रखकर पहाड़ी की चढ़ाई चढ़नी शुरू कर दी। मैं कुछ दूर ही गया था कि मुझे याद आया कि मैं जल्दी-जल्दी में अपना खाना साथ लाना तो भूल ही गया था। अब बग़ैर खाने के दोपहर बाद तक कैसे रहा जा सकता था यार, इसलिए मैं जल्दी-जल्दी अपने घर की ओर भागा ताकि खाना ला सकूं। तभी मैंने तुम्हें दूर से पीपल के पेड़ की तरफ़ आते देख लिया था। अपने घर से खाना लाकर वापिस उस पेड़ पर पहुंचते-पहुंचते मुझे करीब पन्द्रह मिनट लग गए थे। मैं हल्का-हल्का हांफने भी लगा था, मगर मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैं अपनी पूरी ताक़त से पहाड़ी की चढ़ाई चढ़ता गया। पहाड़ी की चोटी के करीब पहुंचकर मैंने देखा कि तुम सुस्त चाल से चढ़ाई कर रहे हो। तुम्हारी सुस्त चाल देखकर मेरा जोश बढ़ गया और मैं तेज़-तेज़ कदम बढ़ाता हुआ तुम्हारे पास से निकलकर पहाड़ी की चोटी पर पहुंच गया।’’
रवि की बात सुनकर पुल्कित कहने लगा, ‘‘यार रवि, यह प्रतियोगिता तो तुम जीत गए हो और मैं हार गया हूं, लेकिन सच तो यह है कि मैं तो प्रतियोगिता शुरू होते ही हार गया था जब पत्थर के नीचे तुम्हारे नामवाला कागज़ देखकर मैंने यह सोच लिया था कि तुम मुझसे पहले पहाड़ी की चढ़ाई शुरू कर चुके हो, इसलिए तुम ही जीतोगे।’’
रवि कहने लगा, ‘‘यार, अगर तुम यह सोचते कि चढ़ाई चढ़ने के दौरान मैं भी किसी वजह से तुमसे पिछड़ सकता हूं तो तुम्हारा उत्साह कम नहीं होता। तुमने तो शुरूआत में ही अपने-आप को हारा हुआ मान लिया था, इसलिए जीतने का मौका होते हुए भी तुम जीत नहीं पाए।’’
रवि की बात सुनकर पुल्कित कुछ नहीं बोला, मगर सारी बात उसे समझ आ गई थी।

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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