बाल कहानी : ख़ुद से शुरुआत
बाल कहानी : ख़ुद से शुरुआत
गरमी की छुट्टियों में नितिन अपने पापा के साथ अपने चाचा जी के यहाँ कानपुर जा रहा था। वे लोग रेलगाड़ी से जा रहे थे। गाड़ी के डिब्बे में खिड़की के पास बैठा हुआ नितिन हाथ में पकड़े बिस्कुट के पैकेट से बिस्कुट खा रहा था। साथ ही वह बाहर के प्राकृतिक दृश्य भी देख रहा था।
तभी रेलगाड़ी एक नदी के ऊपर बने पुल पर से गुज़रने लगी। नदी का पाट चौड़ा था। नितिन ने देखा कि नदी के पानी का रंग काला-भूरा-सा था। उसने पास बैठे पापा से पूछा, ‘‘पापा, इस नदी के पानी का रंग इस तरह का क्यों है?’’
‘‘बेटा, ऐसा इसलिए है क्योंकि नदी का पानी साफ़ नहीं है।’’ पापा ने उत्तर दिया।
‘‘पानी साफ़ क्यों नहीं है, पापा? नदी तो पहाड़ों से निकलती है न?’’ पैकेट से बिस्कुट निकालते हुए नितिन पूछने लगा।
पापा बोले, ‘‘हाँ बेटा, नदी पहाड़ों पर जमी बर्फ के पिघलने से ही निकलती है। शुरू में तो नदी का पानी साफ़ होता है, पर जैसे-जैसे नदी आगे बढ़ती है, इसमें कूड़ा-कचरा डलता जाता है और नदी का पानी अशुद्ध होने लगता है।’’
‘‘कैसा कूड़ा-कचरा, पापा?’’ नितिन ने फिर प्रश्न पूछा।
‘‘बेटा, नदियों के पानी में कारखानों और फैक्ट्रियों का कूड़ा-कचरा, शहरों और कस्बों का कूड़ा-कचरा वगैरह डलता रहता है। इससे नदियों का पानी साफ़ नहीं रहता। यहाँ तक कि यह पानी पीने लायक भी नहीं रहता।’’ पापा ने समझाया।
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‘‘हूँ।’’ बिस्कुट कुतरते हुए नितिन पापा की बातों को समझने की कोशिश कर रहा था।
‘‘यहाँ तक कि कई बार ऐसे पानी में घुले हुए रसायनों आदि की मात्रा इतनी अधिक हो जाती है कि यह पानी मानव के लिए कई बीमारियों का कारण भी बन सकता है।’’ पापा बता रहे थे।
तभी नितिन के मन में एक बात आई और वह पापा से पूछने लगा, ‘‘तो पापा, पानी में रहने वाली मछलियों और दूसरे जन्तुओं पर ऐसे गंदे पानी का बुरा असर नहीं पड़ता क्या?’’
‘‘पड़ता है असर, ज़रूर पड़ता है। पानी में मिले जहरीले रसायनों आदि से बहुत-सी मछलियाँ और पानी में रहने वाले दूसरे जन्तु या तो मर जाते हैं या उन्हें कई रोग लग जाते हैं।’’ पापा ने जवाब दिया।
‘‘हम लोगों के घरों में जो पानी आता है, वह भी इसी तरह की नदियों से ही तो आता है न पापा?’’ नितिन ने पूछा।
‘‘हाँ बेटा, हमें इन नदियों का पानी ही तो मिलता है। बस इतना ज़रूर है कि उसे घरों में सप्लाई करने से पहले साफ़ किया जाता है। मगर यह बात ध्यान में रखने की है कि पानी जितना ज़्यादा गंदा होगा, उसमें जितने ज़्यादा रसायन आदि मिले होंगे, उसे साफ़ करना उतना ही ज़्यादा मुश्किल होगा। साथ ही उसे साफ़ करने में समय और धन भी उतना ही ज़्यादा लगेगा। इसके बावजूद यह ज़रूरी नहीं कि पानी पूरी तरह से साफ़ हो ही जाए और इस्तेमाल करने लायक बन सके।’’ पापा ने विस्तार से समझाया।
‘‘तो इसका मतलब है पानी में कूड़ा-कचरा नहीं डालना चाहिए।’’ नितिन कहने लगा।
‘‘बिल्कुल ठीक कहा तुमने, इस बारे में सरकारी कानून भी हैं, मगर बहुत से लोग इनका पालन नहीं करते।’’ पापा कह रहे थे।
‘‘पापा, मैं तो अब समझ गया हूँ। मैं तो अब डालूँगा नहीं पानी में कूड़ा-कचरा।’’ कहते हुए नितिन ने बिस्कुट के खाली पैकेट का रैपर अपने बैग की जेब में डाल दिया, नहीं तो पहले वह ऐसी चीज़ों को इधर-उधर फेंक दिया करता था।
‘‘शाबास बेटा। अच्छा काम करने की हमें ख़ुद से ही शुरुआत करनी चाहिए।’’ नितिन की बात सुनकर पापा मुस्कुराए और नितिन की पीठ पर शाबासी से भरा हाथ फेरने लगे।
(रचनाकार से साभार प्रकाशित)
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